Navratri Special: मां चंद्रघंटा को समपर्ति नवरात्र का तीसरा दिन, पढ़िए जन्मकथा और पूजन विधि
punjabkesari.in Wednesday, Apr 14, 2021 - 05:19 PM (IST)
नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गाजी के तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है इसलिए तीसरा दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। मां चंद्रघटा का ध्यान और पूजा करने से समस्त पाप और बाधाएं खत्म हो जाती है। वहीं, मां के घंटे की ध्वनि भक्तों को प्रेत बाधा से बचाती है।
मां चंद्रघंटा की जन्म कथा
माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होने के कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। सिंह की सवारी करने वाली मां चंद्रघंटा के शरीर पर स्वर्ण के समान उज्ज्वल, 10 भुजाओं में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, मां दुर्गा ने असुरों का स्वामी महिषासुर का संहार करने के लिए यह रूप धारण किया था। राक्षस महिषासुर और देवाताओं के बीच युद्ध चल रहा है। खुद को हारते हुए देख देवता त्रिदेव के पास पहुंचे और मदद मांगी। उनकी कहानी सुन त्रिदेव को गुस्सा आ गया और उसी से मां चंद्रघटा का जन्म हुआ। भगवान शंकर ने देवी को अपना त्रिशूल,भगवान विष्णु ने चक्र, देवराज इंद्र ने एक घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र दे दिए, जिसके बाद उन्होंने राक्षस का वध कर दिया।
मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा विधि
इसके लिए सबसे पहले चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें और फिर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। इसके बाद पीतल, चांदी, तांबे या मिट्टी के बर्तन में जल भरकर उसे नारियल से ढक दें। पूजन का संकल्प लेते हुए वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों का जाप करें। साथ ही मां को वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, पुष्पांजलि अर्पित करें। इसके बाद मंत्र का जाप करें और फिर आरती करें।
कैसे करें देवी मां को प्रसन्न
देवी मां को भूरे या ग्रे रंग की कोई चीज अर्पित करें, इससे मां जल्दी प्रसन्न होगी। नवरात्रि के तीसरे दिन कपड़े भी इसी रंग के पहनें। देवी के इस स्वरूप को दूध, मिठाई और खीर का भोग लगाया जाता है।
चंद्रघंटा स्वरूप ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
चंद्रघंटा स्वरूप का स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥