प्रेगनेंसी में डिप्रेशन से शिशु को हो सकता है नुकसान
punjabkesari.in Tuesday, Apr 07, 2020 - 01:49 PM (IST)
कोई भी महिला जब प्रैग्नैंट होती है तो कई तरह से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव के दौर से गुजरती है। हार्मोन में बदलाव के कारण तनाव महसूस करना सामान्य है लेकिन अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान डिप्रैशन (अवसाद) की शिकार हो जाती है तो उसके बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। हाल ही में हुए शोध के मुताबिक मां के मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी से है।
प्रैग्नेंसी के दौरान एक महिला का मानसिक स्वास्थ्य बच्चे के इम्यूनिटी सिस्टम के विकास को सीधा प्रभावित करता है। शोधकत्र्ताओं ने 1,043 मांओं और शिशुओं के हैल्थ रिकॉर्ड की जांच की। यह नई स्टडी अल्बर्टा यूनिवॢसटी में बाल रोग विशेषज्ञों ने की थी। शोध के लिए मांओं से प्रैग्नैंसी के दौरान और उसके बाद में उनके मूड के बारे में सवाल पूछे गए।
जिन महिलाओं ने प्रैग्नैंसी के पहले 3 महीनों में या बच्चे के जन्म के पहले या बाद में डिप्रैशन का मामला दर्ज किया उनके बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उन बच्चों की तुलना में आधी थी जिनकी मांओं की मानसिक स्थिति प्रैग्नैंसी के दौरान सामान्य थी। खास बात यह है कि इन महिलाओं में डिप्रैशन के लक्षण इतने ज्यादा भी नहीं थे कि किसी तरह का इलाज करवाया जाए। अगर बच्चा अक्सर सर्दी-जुकाम, कान के इन्फैक्शन, पेट की गड़बड़ी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त है तो इसका मतलब है कि बच्चे की इम्यूनिटी मजबूत नहीं है।
स्तनपान से बढ़ती है इम्यूनिटी
बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए सबसे पहले तो स्तनपान एक शानदार तरीका है। इसमें सभी प्रकार के प्रोटीन वसा मौजूद होते हैं जो स्वस्थ रहने के लिए जरूरी होते हैं। स्तनपान से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनती है। डॉ. लक्ष्मीदत्ता शुक्ला का कहना है कि हरी सब्जियों में विटामिन ए, बी, सी, आयरन, कैल्शियम और फाइबर जैसे तत्व भरपूर होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए फल और सब्जी जैसे सेब, गाजर, ब्रोकली, कीवी, खरबूजे, नारंगी और स्ट्रॉबेरी को आहार में शामिल करें।
इम्यूनिटी कम होने से कई बीमारियों का खतरा
शोधकर्ताओं ने कहा कि इम्यूनिटी यानी बीमारियों से लडऩे की ताकत कम होने से शिशुओं को सांस संबंधी या गैस्ट्रोइंटेस्टिनल इन्फैक्शन के साथ-साथ अस्थमा और एलर्जी का खतरा होता है और इससे अवसाद, मोटापा व मधुमेह जैसे ऑटोइम्यून रोगों का खतरा बढ़ सकता है।
नवजात शिशु के लिए 18 घंटे की नींद जरूरी
नवजात शिशु के लिए 18 घंटे की नींद जरूरी है। फिर उम्र के आधार पर एक दिन में 10 से 14 घंटे की नींद बच्चे के लिए आवश्यक है। विटामिन डी भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है इसलिए बच्चों को धूप में बैठाना जरूरी है ताकि पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल सके। बेहतर होगा कि एंटी-बायटिक ज्यादा न दें। इन दवाओं का अधिक इस्तेमाल इम्यून सिस्टम को कमजोर बनाता है।