प्रीमेच्योर शिशु के लिए मुश्किल होता है ब्रेस्टफीड करना, जानें 5 आसान तरीके

punjabkesari.in Friday, Mar 28, 2025 - 03:48 PM (IST)

नारी डेस्क: प्रेग्नेंसी के 37 हफ्ते से पहले अगर डिलीवरी होती है, तो उसे प्रीमेच्योर डिलीवरी कहा जाता है। ऐसे शिशुओं का वजन कम होता है, और उनका शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य समय से कुछ धीमा होता है। प्रीमैच्योर शिशुओं को अक्सर NICU (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) में रखा जाता है, ताकि उनका विशेष ध्यान रखा जा सके और वे स्वस्थ रह सकें। इस दौरान, शिशु को ब्रेस्टफीड कराना एक चुनौती हो सकती है, लेकिन यह बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं कि प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना क्यों मुश्किल होता है और इसे कैसे बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना क्यों मुश्किल होता है?

प्रीमेच्योर शिशु जन्म के समय बहुत कमजोर होते हैं और उनके शरीर के कई अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते। इस कारण कई समस्याएं हो सकती हैं।

चूसने की क्षमता कमजोर होना: प्रीमेच्योर शिशु के मुंह और होंठ का विकास पूरी तरह से नहीं हुआ होता, इसलिए वे दूध चूसने और निगलने में मुश्किल महसूस करते हैं।

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एनर्जी का अभाव: इन शिशुओं के पास ज्यादा ऊर्जा नहीं होती, जिसके कारण वे लंबे समय तक दूध नहीं पी पाते। वे जल्दी थक जाते हैं।

पेट और पाचन समस्याएं: इन शिशुओं का पाचन तंत्र कमजोर होता है, जिससे उन्हें दूध पचाने में दिक्कत हो सकती है।

सांस लेने में परेशानी: कुछ शिशुओं के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते, जिससे वे दूध पीने के दौरान सांस लेने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं।

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कम वजन: वजन कम होने के कारण शिशु शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और वे खुद से दूध पान नहीं कर पाते।

प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना क्यों महत्वपूर्ण है?

प्रीमेच्योर शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है। यह शिशु के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है, जैसे:

इम्युनिटी बढ़ती है:मां के दूध में ऐसे तत्व होते हैं जो शिशु के शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता को मजबूत करते हैं।

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पाचन में मदद मिलती है: मां का दूध शिशु के पाचन तंत्र को मजबूत करता है, जिससे उन्हें सही तरीके से पोषण मिलता है।

बीमारियों से बचाव: मां का दूध शिशु को विभिन्न संक्रमणों और बीमारियों से बचाने में मदद करता है।

ब्रेन डेवलपमेंट: मां के दूध में DHA (डोकोज़ाहेक्साइनोइक एसिड) होता है, जो शिशु के ब्रेन के विकास के लिए बहुत लाभकारी है।

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वजन बढ़ने में मदद: मां का दूध शिशु के वजन को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे शिशु जल्दी स्वस्थ होता है।

मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग: ब्रेस्टफीडिंग से मां और शिशु के बीच मजबूत संबंध बनते हैं, जो शिशु की मानसिक स्थिति के लिए अच्छा होता है।

प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराने की तकनीकें

दूध पंप करना (Breast Pumping)

अगर शिशु बहुत कमजोर है और खुद से दूध नहीं पी पा रहा, तो मां ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करके दूध निकाल सकती हैं। दूध निकालने के बाद, उसे किसी साफ बोतल, कप या फीडिंग ट्यूब में डालकर शिशु को दिया जा सकता है। ब्रेस्ट पंप को मैन्युअली या इलेक्ट्रिक पंप से किया जा सकता है।

ट्यूब फीडिंग (Tube Feeding)

जब शिशु खुद से दूध नहीं पी सकता, तो डॉक्टर एक पतली नली (Nasogastric Tube) का उपयोग करते हैं, जिससे दूध शिशु के पेट में पहुंचाया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है और शिशु को दूध देने का एक और तरीका है।

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कंगारू केयर (Kangaroo Care)

यह तकनीक शिशु को मां की त्वचा से चिपकाकर रखने की है। इसे स्किन टू स्किन कांटेक्ट कहा जाता है। इस प्रक्रिया से शिशु को गर्माहट मिलती है और ब्रेस्टफीडिंग में भी मदद मिलती है।

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कप फीडिंग (Cup Feeding)

अगर शिशु को बोतल से दूध पीने में दिक्कत होती है, तो मां शिशु को एक छोटे कप से दूध पिला सकती हैं। यह बोतल के मुकाबले अधिक सुरक्षित तरीका है और इससे शिशु को ब्रेस्टफीडिंग की प्रैक्टिस भी मिलती है।

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फिंगर फीडिंग (Finger Feeding)

इसमें शिशु को दूध पिलाने के लिए मां या परिवार का कोई सदस्य अपनी साफ उंगली शिशु के मुंह में डालता है और दूध से भरी सिरिंज या ट्यूब के जरिए उसे दूध पिलाया जाता है। इससे शिशु को चूसने और निगलने की प्रैक्टिस होती है।

अगर शिशु ब्रेस्टफीड न कर पाएं, तो मां को क्या करना चाहिए?

शिशु धीरे-धीरे चूसने और निगलने की क्षमता विकसित करते हैं, इसलिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है। अगर शिशु नियमित रूप से दूध नहीं पी रहे हैं, तो मां को हर 2-3 घंटे में दूध पंप करना चाहिए, ताकि दूध की आपूर्ति बनी रहे। अगर कोई समस्या हो, तो डॉक्टर और लैक्टेशन कंसल्टेंट से परामर्श लेना चाहिए। मां को सही और संतुलित आहार लेना चाहिए, ताकि दूध की मात्रा बनी रहे। मां को मानसिक तनाव से बचना चाहिए, क्योंकि तनाव से ब्रेस्टफीडिंग की प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

प्रीमैच्योर शिशुओं के लिए ब्रेस्टफीड करना थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह शिशु के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सही तकनीक अपनाकर और धैर्य से काम लेकर मां अपने शिशु को अच्छे से ब्रेस्टफीड करा सकती हैं। यह न केवल शिशु के शारीरिक विकास में मदद करता है, बल्कि मां और शिशु के बीच के संबंध को भी मजबूत बनाता है।


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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