इस दिन शुरु हो रहा है छठ का महापर्व , यहां जान लें अर्घ्य का समय और खरना की डेट
punjabkesari.in Wednesday, Nov 15, 2023 - 06:28 PM (IST)
त्योहारों का सीजन चल रहा है। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर छठ पूजा का पर्व शुरु होता है, जो 4 दिनों तक चलता है। पंचमी को खरना,षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। कहा जाता है कि छठ पूजा का व्रत बहुत ज्यादा मुश्किल होता है, क्योंकि पूरे 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है। इस बार ये त्योहार 17 नवंबर 2023 से शुरु हो कहा है और इसका समापन 20 नवंबर को होगा। मान्यता है कि इस व्रत के जरिए संतान के सुखी जीवन की कामना की जाती है। आइए आपको बताते हैं इस महापर्व पर सूर्य पूजन और नहाय- खरान का सही समय...
नहाय-खाय
छठ पूजा का यह महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस साल नहाय-खाय 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे होगा वहीं, सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा। छठ पूजा की नहाय खाय परंपरा में व्रती नदी में स्नान के बाद नए कपड़े पहनते हैं कर शाकाहारी खाना खाते हैं। इस दिन व्रती के खाना के बाद ही घर के दूसरे लोग खाना खाते हैं।
खरना
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस साल खरना 18 नवंबर को है। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा खाना खाते हैं। इस दिन गु़ड़ से बनी चावल की खीर खाने की परंपरा है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।
उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। इस साल 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।
संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा। 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अर्घ्य दिया जाता है।