“हीरो ऑफ़ हर पीढ़ी” – धर्मेंद्र की यादें कभी नहीं मिटेंगी हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगें
punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 02:51 PM (IST)
नारी डेस्क: हिंदी फिल्मों में कई शानदार हीरो आए हैं, लेकिन धर्मेंद्र जैसी पर्सनालिटी कोई और नहीं ला सका। रुमानी नौजवान से लेकर ठेठ गांव के फौजी या घोड़े पर बैठ डाकू तक, हर रोल में वे बिल्कुल फिट बैठे। उनकी भूमिका ‘सत्यकाम’ में भी यादगार रही, जिसमें आदर्शवाद और समय के साथ पीढ़ियों की चपलता को बेहतरीन तरीके से उकेरा गया।
धर्मेंद्र की हर भूमिका उनके फैंस को बेहद पसंद आई। हालांकि वे बड़े अभिनेता थे, लेकिन इंसान के रूप में उनसे भी बड़े थे। यही उनकी खूबसूरती थी – पर्दे पर उनकी शख्सियत लोगों को छू जाती थी। हिंदी सिनेमा में दारा सिंह, विनोद खन्ना, फिरोज खान और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे अभिनेता भी आए, लेकिन किसी का पर्दे पर प्रभाव धर्मेंद्र जितना नहीं रहा। इसकी वजह थी उनकी जिंदादिली और सहजता, जो उनके अभिनय और व्यक्तित्व दोनों में झलकती थी।
पीढ़ियों के हीरो
करीब आधी सदी से ज्यादा के करियर में धर्मेंद्र दो पीढ़ियों के चेहेते अभिनेता रहे। उनकी जिंदादिली और आत्मविश्वास ने उन्हें रूमानी किरदारों में भी फिट बनाया। विनोद खन्ना और फिरोज खान रूमानी रोल कर सकते थे, लेकिन कॉमेडी या एक्शन में धर्मेंद्र जैसा असर किसी का नहीं था। उनकी ऊर्जा, सहजता और मनोरंजन की भावना उन्हें दर्शकों का फेवरेट बनाती रही।
😢 भावुक विदाई! यह हो सकती है बड़े पर्दे पर धर्मेंद्र जी की आखिरी उपस्थिति! फ़िल्म 'Ikkis' का है बेसब्री से इंतज़ार।
— Nari (@NariKesari) November 24, 2025
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शरारती लेकिन ईमानदार
धर्मेंद्र अपनी जिंदगी में शरारती और ईमानदार दोनों थे। वे हंसी-मज़ाक के साथ छेड़छाड़ करते, लेकिन कभी किसी के दिल को चोट नहीं पहुंचाते। उन्होंने अपनी पहली पत्नी प्रकाश कौर से शादी की थी, और बाद में हेमा मालिनी से भी। धर्मेंद्र ने अपनी निजी जिंदगी को हमेशा ईमानदारी और सहजता के साथ संभाला। उनके फैंस के लिए यह साबित करता है कि उनकी महानता सिर्फ फिल्मों में नहीं, बल्कि असली जिंदगी में भी थी।
ठेठ पंजाबी गांव से बॉलीवुड तक
पंजाब के गांव से निकलकर धर्मेंद्र ने फिल्मों में कई यादगार रोल किए। घोड़े पर बैठ डाकू, जेंटलमैन या रुमानी हीरो – हर किरदार में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। 1960 में मुंबई आकर उन्हें पहली फिल्म “दिल भी तेरा, हम भी तेरे” मिली। इसके बाद बंदिनी, पूजा के फूल, हकीकत, अनुपमा जैसी फिल्में उनके करियर को ऊंचाई पर ले गईं। 1966 में “फूल और पत्थर” ने उन्हें रूमानी हीरो के रूप में पहचान दिलाई।
सत्यकाम और अन्य यादगार रोल
धर्मेंद्र की भूमिका ‘सत्यकाम’ ने उनकी एक्टिंग की छाप को और गहरा कर दिया। फिल्म की कहानी आदर्शवादी युवा और उनके संघर्ष को बारीकी से दिखाती है। धर्मेंद्र ने अपने किरदार में उतार-चढ़ाव और गहरी भावनाओं को शानदार ढंग से पेश किया। इसके बाद उन्होंने ‘शोले’ और अन्य फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाकर दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाई। उनकी एक्टिंग की विविधता और ऊर्जा ने उन्हें हर रोल में अलग और यादगार बना दिया।
धर्मेंद्र सिर्फ फिल्मों के हीरो नहीं थे, बल्कि उनके अभिनय, शख्सियत और जिंदादिली ने उन्हें पीढ़ियों के दिलों में अमर बना दिया। चाहे रुमानी रोल हो, कॉमेडी हो या एक्शन, धर्मेंद्र की छाप हमेशा बनी रहेगी।

