पद्मश्री से सम्मानित हुई भूरी बाई, कैसे दिहाड़ी मजदूर से बनी इंटरनेशनल Painter?
punjabkesari.in Wednesday, Nov 10, 2021 - 01:35 PM (IST)
राष्ट्रपति कोविंद ने कला क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए श्रीमती भूरी बाई को पद्मश्री से सम्मानित किया। वह मध्य प्रदेश की जानी-मानी आदिवासी चित्रकार हैं। उन्होंने पारंपरिक भील चित्रों को पढ़ाने और संरक्षित करने में बहुत योगदान दिया है। मगर, मजदूरी से कलाकार बनने तक भूरी बाई का सफर काफी संघर्ष भरा रहा है, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
President Kovind presents Padma Shri to Smt. Bhuri Bai for Art. She is a well-known tribal painter from Madhya Pradesh. She has contributed immensely to teaching and preserving the traditional Bhil paintings. pic.twitter.com/VyAm6f3mex
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 9, 2021
कौन है भूरी बाई?
मध्य प्रदेश, झाबुआ जिले की रहने वाली भूरी बाई आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करनी शुरू की। उन्हें बचपन से ही कला व चित्रकारी से लगाव था। बचपन में केवल स्थानीय भीली बोली जानती थी और उन्हें हिंदी बोलनी नहीं आती थी। मगर, धीरे-धीरे उन्होंने अपने चित्रकारी के शौक को आगे बढ़ाया और एक नई मिसाल पेश की। देखते ही देखते विदेशों में भी उनकी कला के प्रशंसक बन गए।
बेहद गरीबी में बीता बचपन
भूरी बाई का बचपन काफी गरीबी में बीती। कई बार तो उनके घर में भोजन के लिए भी पैसे नहीं होते थे। जीवन बसर के लिए वह भोपाल आकर मजदूरी करने लगी और तभी जिलेभर में उनकी पेटिंग की पहचान होने लगी। इसी दौरान उन्हें संस्कृति विभाग की तरफ से पेटिंग बनाने का काम दिया गया। उनका नाम बढ़ा और फिर उन्हें राजधानी भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने का ऑफर मिला।
पिता से सीखी पिथौरा कला
भूरी बाई ने अपने पिता से पिथौरा से कला सीखी। अपनी कला में उन्होंने प्राचीन विरासत को सहेज कर रखा, जोकि उनकी पेटिंग की खासियत भी है। पारंपरिक कला के माध्यम से आज उनका नाम विदेशों में भी फेमस है। यही नहीं, अब वह अपने बच्चों, नाती, पोतों को पिथौरा पेंटिंग बनाना सिखाती हैं।
शिखर पुरस्कार से सम्मानित
भारत भवन में पेटिंग के बाद उन्हें 1986-87 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा "शिखर पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। वहीं, 1998 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ही उन्हें "अहिल्या सम्मान" दिया गया। अब वह भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में बतौर कलाकार काम करती हैं।
अमेरिका तक पहुंची भूरी बाई की पेटिंग
उनकी पेटिंग के कदरदान सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। इसके अलावा वह देश के अलग-अलग जिलों में आर्ट और पिथोरा आर्ट पर वर्कशॉप भी लगाती हैं। भूरी भाई की पेटिंग वर्कशॉप अमेरिका में भी लग चुकी है। चित्रकारी के क्षेत्र में भूरी भाई आज एक जाना पहचाना नाम है।
कागज व कैनवस पर उकेरती हैं अनोखी कहानियां
वह ज्यादातर भील देवी-देवताएं, जंगली जानवर, झोपडि़यां, वन, स्मारक स्तंभ, पोशाक, गहने व टैटू, उत्सव व नृत्य, अन्नागार, हाट और मौखिक कथाओं से जुड़े चित्र बनाती हैं। हालांकि उन्होंने अब वायुयान, टेलीविजन, कार व बसों की चित्रकारी भी शुरू कर दी है।