दिवाली वाले दिन ये खाना खाकर ना करें अपशगुन! मन और घर दोनों हो जाएंगे अशुद्ध
punjabkesari.in Monday, Oct 20, 2025 - 01:37 PM (IST)

नारी डेस्क : दिवाली का पर्व सिर्फ रोशनी और मिठाइयों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर के स्वागत का भी समय है। इस दौरान भोजन और आचार-विचार का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
त्यौहार में नॉनवेज वर्जित क्यों है
भारतीय परंपरा में दिवाली, धनतेरस, भैया दूज और छठ जैसे त्योहारों में नॉनवेज खाने की परंपरा नहीं है।
इस दौरान शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करने की सलाह दी जाती है।
ऐसा इसलिए क्योंकि ईश्वर और देवी-देवताओं के वास के लिए मन और शरीर का शुद्ध होना आवश्यक है।
नॉनवेज खाने से मन की शुद्धता प्रभावित होती है और आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ सकती हैं।
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आसुरी प्रवृत्ति और देवताओं की कृपा
पंडित अनुसार: दिवाली से भैया दूज तक घर में देवताओं का वास माना जाता है।
यदि इस दौरान नॉनवेज या मदिरा का सेवन किया जाए, तो मन अशुद्ध रहेगा और आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ेगा।
अशुद्ध मन वाले घर में देवताओं का वास नहीं हो सकता।
शरीर और मन का संबंध
शरीर को कुंड की तरह माना गया है। जैसे कुंड में डाली गई चीज़ों का प्रभाव जल पर पड़ता है, वैसे ही शरीर में डाले गए भोजन का प्रभाव मन और विचारों पर पड़ता है।
सात्विक भोजन करने से मन शुद्ध रहता है, बुद्धि का विकास होता है और अच्छे कर्मों की प्रवृत्ति बढ़ती है।
नॉनवेज या राक्षसी भोजन करने से मन और बुद्धि अशुद्ध हो जाती है, और बुरे कर्म करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
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भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी का वास
धनतेरस के दिन से घर में पूजा-पाठ शुरू होता है।
शुद्ध मन और सात्विक भोजन के साथ पूजा करने पर घर में भगवान कुबेर का वास होता है और माता लक्ष्मी अपने आप आती हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि दिवाली के समय मन और शरीर दोनों शुद्ध रहें।
दिवाली पर नॉनवेज न खाने की परंपरा केवल नियम नहीं, बल्कि धार्मिक, आध्यात्मिक और मानसिक कारणों से जुड़ी है। यह मन और शरीर को शुद्ध रखता है, देवताओं की कृपा प्राप्त होती है, घर में सौभाग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। सात्विक भोजन और शुद्ध मन से ही दिवाली का पर्व सम्पूर्ण रूप से फलदायी और शुभ बनता है।