प्रेग्नेंट महिलाओं में बढ़ा Lotus चाइल्ड बर्थ क्रेज, जानिए क्या है यह नए बर्थिंग ट्रेंड
punjabkesari.in Sunday, Sep 20, 2020 - 03:15 PM (IST)
जब बच्चे के जन्म की बात आती है तो ज्यादातर मांएं प्राकृतिक यानि नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी का सहारा लेती हैं। हालांकि आजकल वॉटर बेबी बर्थ तकनीक भी काफी फेमस हो रही हैं लेकिन क्या आपने कभी लोटस बेबी बर्थ तकनीक (Lotus childbirth) के बारे में सुना है? प्रेग्नेंट महिलाओं में आजकल 'Lotus Birth' का काफी क्रेज देखने को मिल रहा है। चलिए आपको बताते हैं कि क्या है लोटस बेबी बर्थ तकनीक...
क्या है लोटस बेबी बर्थ तकनीक?
जब शिशु के जन्म केस समय उसका गर्भनाल नहीं काटा जाता तो उसे 'Lotus Birth' कहते हैं। दरअसल, गर्भनाल बच्चे को प्लेसेंटा से तब तक बांधे रखता है जब तक कि वह खुद से गिर न जाए। प्लेसेंटा शिशु से जुड़ा होता है और गर्भनाल का बाकी भाग गांठ में बंधा होता है। बच्चे को जन्म देने के लिए पुराने समय में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि दुनिया के कुछ जगहों में ये अभी भी प्रचलित हैं।
प्लासेंटा और गर्भनाल को नहीं किया जाता अलग
यह प्रक्रिया उन तकनीक से अलग है, जिसमें गर्भनाल को बच्चे के जन्म के समय काट दिया जाता है। इस तकनीक में प्लासेंटा और गर्भनाल को अलग नहीं किया जाता बल्कि 8-10 दिनों के बीच वह खुद ही सूख कर अलग हो जाता है। हालांकि इस दौरान गर्भनाल को किसी टब, मटके या थैली में बहुत संभाल से रखना होता है। नहीं तो इसमें किटाणु लग सकते हैं और बदबू भी आती है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
एक्सपर्ट की मानें तो डिलीवरी के लिए यह प्रक्रिया बिल्कुल सुरक्षित नहीं है क्योंकि इससे शिशु में इंफैक्शन का खतरा रहता है। दरअसल, जन्म के बाद Umbilical Cord एक मृत अंग बन जाता है जो सड़ने लगता है। यह न केवल बदबूदार हो सकता है बल्कि संक्रमण का खतरा भी बढ़ा सकता है। हालांकि कुछ डॉक्टर्स के मुताबिक, इससे मां व बच्चे के बीच का रिश्ता अच्छा होता है।
ब्लड सर्कुलेशन
ऐसा कहा जाता है कि गर्भ में बच्चे को कुछ दिनों तक रखने से जन्म के बाद उसका रक्त संचार बढ़ जाता है। वहीं, यह नाल से छुटकारा पाने का एक प्राकृतिक तरीका है, जिससे नाल में मौजूद सभी लाल रक्त कण, आयरन, पोषक तत्व और हीमोग्लोबिन के स्तर में वृद्धि होती है। इसके अलावा शिशु के शरीर को गर्भनाल के अंदर मौजूद स्टेम कोशिकाओं को अवशोषित करने में मदद मिल सकती है।
समय-समय पर उचित सफाई जरूरी
एक नवजात शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली अत्यधिक संवेदनशील होती है और कुछ ही समय में मृत अंग सेप्टिक हो सकता है। यही कारण है कि प्लेसेंटा स्वच्छ रहने के लिए दिन में कई बार उचित स्वच्छता जरूरी होती है।
ध्यान रखें कि इस तकनीक को आजमाने से पहले आप अपनी गायनकोलॉजिस्ट या किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।