स्वतंत्रता दिवस के 75 साल बाद भी महिलाओं को नहीं मिली इन चीजों से आजादी?

punjabkesari.in Saturday, Aug 14, 2021 - 04:09 PM (IST)

साल 2021, 15 अगस्त को देशभर में आजादी का 75वां पर्व मनाए जाएगा। इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मार्च 2021 को 'आजादी का अमृत महोत्सव' अभियान भी शुरू किया था। 15 अगस्त यानि स्वतंत्रता दिवस, हर भारतीय के लिए खास होता हैं क्योंकि इसी दिन हम अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरे तोड़ आजाद हुए थे। मगर, बात अगर महिलाओं की स्थिति की करें तो आज भी कई ऐसी चीजें हैं, जो उनके लिए नहीं बदली।

हालांकि भारत को स्वतंत्र हुए 70 साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन महिलाएं, जो देश की 49% आबादी का गठन करती हैं अभी भी सुरक्षा, गतिशीलता, आर्थिक स्वतंत्रता, पूर्वाग्रह और पितृसत्ता जैसे मुद्दों से जूझ रही हैं।

पितृसत्ता से मुक्ति

हमारे जैसा पितृसत्तात्मक समाज पुरुषों को निर्णय लेने की शक्ति देता है लेकिन लड़कियों को नहीं। पढ़ने या काम करने के विकल्प से लेकर आर्थिक निर्णय और कमाई के इस्तेमाल तक, अक्सर महिलाओं को इन अहम मुद्दों पर आज भी अपनी राय करने से मना कर दिया जाचता है। शायद इसलिए, भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं में से एक है।

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शिक्षा का अधिकार

क्रम में अगला है शिक्षा। 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर 64.46% है जबकि पुरुष साक्षरता 82.14% है। बेशक कई माता-पिता अपने बेटी को हायर स्टडी दिलवाने में आगे आए हैं लेकिन देश के कुछ कोने में लड़कियां अभी भी पढ़ाई से अछूती हैं। बहुत-से देश ऐसे हैं, जहां लड़कियों को स्कूल देखने तक को नसीब नहीं होता।

हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न से मुक्ति

भारत में महिलाओं को हर दिन एहसास करवाया जाता है कि वे अपने घर, ऑफिस और पब्लिक प्लेस में कितनी असुरक्षित हैं। घर में दुर्व्यवहार, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न तक, सोशल मीडिया पर भद्दे कमेंट, सड़पर पर छेड़खानी, ब्लैंक कॉल्स, महिलाओं को नीचा दिखाने वाली ऐसी बहुत-सी टिप्पणियां हैं, जिनसे उन्हें हर दिन गुजरना पड़ता है।

अवैतनिक श्रम से मुक्ति

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं द्वारा किए गए 51% से अधिक काम अवैतनिक हैं यानि उन्हें काम के लिए वेतन नहीं मिला। बता दें कि इस रिपोर्ट में हाउसवाइफ की गिनती नहीं की गई और ना ही इसके लिए सकल घरेलू उत्पाद और अन्य आंकड़ों में गिना गया। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी (एफएलएफपी) में भारत 131 देशों में से 121वें स्थान पर है।

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शादी का फैसला

भारत चाहे कितनी भी प्रगति क्यों ना कर ले लेकिन यहां आज भी महिलाओं को अपनी शादी का फैसला खुद लेने की आजादी नहीं है। अगर कोई महिला अपनी मर्जी से शादी या तलाक जैसा बड़ा कदम उठाती भी है तो उसे गंदी नजरों से देखा जाता है। मगर, क्या खुद का जिंदगी के बारे में फैसला लेना इतना बड़ा जुर्म या गलत काम है।

शादी के बाद काम करने की आजादी

भारत में बहुत-सी महिलाएं आज भी हाउसवाइफ की तरह अपनी जिंदगी व्यतीत कर रही हैं। उनमें से बहुत-सी औरतें तो घर के काम से खुश है लेकिन कुछ मजबूरी के चलते बाहर काम नहीं करती। चूंकि आज भी कई जगहों पर महिलाओं को शादी के बाद काम करने की आजादी नहीं है। कुछ पुरुष आज भी पत्नी के काम को अपनी अपमान समझते हैं।

कपड़े पहनने की आजादी

अभी हाल ही में उत्तराखंड के CM तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं की फटी जींस को लेकर बयान देते हुए कहा था, 'आजकल महिलाएं फटी जींस पहनती हैं। उनके घुटने दिखते हैं, ये कैसे संस्कार हैं? ये संस्कार कहां से आ रहे हैं। इससे बच्चे क्या सीख रहे हैं और महिलाएं आखिर समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं।' अब जिस देश का सीएम ही ऐसी सोच रखता होगा वहां महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी भला कैसे मिलेगी।

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Content Writer

Anjali Rajput

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