14 साल के बच्चे ने किया 5 साल की बच्ची का रेप, अब लड़की ही नहीं लड़के के पेरेंट्स को भी अलर्ट रहने की जरूरत
punjabkesari.in Friday, Oct 24, 2025 - 02:24 PM (IST)
नारी डेस्क: पश्चिम बंगाल पुलिस ने 5 साल की बच्ची से बलात्कार के आरोप में 14 साल के एक लड़के को हिरासत में लिया। आरोप है कि इस बच्चे ने पीड़िता को उसके साथ हुए यौन अपराध के बारे में अपने माता-पिता सहित किसी को भी बताने पर जान से मारने की धमकी दी थी।पीड़िता के माता-पिता द्वारा दर्ज कराई गई पुलिस शिकायत के अनुसार, आरोपी ने घर पर परिवार के अन्य सदस्यों की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर अपने घर पर उनकी बेटी के साथ बलात्कार किया।
पीड़िता को दी थी कुछ ना बताने की धमकी
पुलिस शिकायत के अनुसार, शुरुआत में पीड़िता ने अपने साथ हुए यौन अपराध के बारे में अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया। हालांकि, जब उसे कुछ शारीरिक बेचैनी महसूस होने लगी, तो उसने अपने माता-पिता को पूरी बात बताई। जैसा कि पीड़िता के माता-पिता ने पुलिस को बताया, आरोपी के माता-पिता ने न केवल उनके आरोपों को खारिज किया, बल्कि उनकी पिटाई भी करवाई। अब सवाल यह है कि छोटी उम्र में रेप जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है?
घर का माहौल और परवरिश का असर
बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं। अगर घर में *महिलाओं के प्रति अपमानजनक रवैया, हिंसा या गाली-गलौज का माहौल होता है, तो बच्चा गलत व्यवहार को "सामान्य" समझने लगता है। माता-पिता का संवाद की कमी, बच्चों के सवालों को नज़रअंदाज़ करना या यौन शिक्षा पर चुप्पी भी उन्हें भ्रम में डाल देती है। भारत में अब भी यौन शिक्षा को “शर्म” या “पाप” से जोड़कर देखा जाता है। इससे वे इंटरनेट या गलत साथियों से “सेक्स” के बारे में गलत जानकारी हासिल करते हैं। यह जिज्ञासा या विकृत धारणा बाद में गलत व्यवहार में बदल सकती है।
सोशल मीडिया और अश्लील सामग्री का प्रभाव
कम उम्र में पॉर्नोग्राफी, हिंसक कंटेंट या ऑनलाइन यौन चैट्स का एक्सपोजर मस्तिष्क को प्रभावित करता है। बच्चा "संबंध" को केवल शारीरिक सुख से जोड़ना सीखता है, भावनाओं और सहमति का महत्व नहीं समझता। इसके अलावा “मर्दानगी” या “शक्ति दिखाने” की गलत परिभाषा समाज में अब भी मौजूद है। दोस्तों के बीच “हीरो बनने” या “मर्द साबित करने” की भावना भी ऐसे अपराधों को जन्म दे सकती है। कुछ मामलों में बच्चों में आक्रोश, उपेक्षा या दबी भावनाएं इतनी गहरी होती हैं कि वे उन्हें गलत तरीके से निकालते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे बच्चों को **काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक सहायता** की बहुत आवश्यकता होती है।
इसे रोकने का समाधान
घर में खुली बातचीत: बच्चों से सेक्स, सहमति और सम्मानजनक व्यवहार पर खुलकर बात करें।
स्कूलों में अनिवार्य यौन शिक्षा: ताकि बच्चे सही जानकारी सही स्रोत से सीखें।
डिजिटल निगरानी: बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार पर ध्यान दें।
भावनात्मक शिक्षा: बच्चों को गुस्सा, अस्वीकार और निराशा को संभालना सिखाएं।
समाज में संवेदनशीलता: मीडिया, फिल्मों और विज्ञापनों में महिला सम्मान की सकारात्मक छवि दिखाना जरूरी है।

