निर्जला एकादशी पर ज़रूर करें ये 5 काम, मिलेगा भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद
punjabkesari.in Friday, Jun 06, 2025 - 12:17 PM (IST)

नारी डेस्क: निर्जला एकादशी हिंदू धर्म के सबसे कठिन और पुण्यदायक व्रतों में से एक मानी जाती है। यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। 'निर्जला' शब्द का अर्थ है बिना जल के, यानी इस दिन भक्तगण बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास करते हैं और पूरे दिन भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते हैं। जो भक्त पूरे साल एकादशी व्रत नहीं कर पाते, उनके लिए यह एकादशी विशेष होती है क्योंकि केवल इस एक व्रत को रखने से सालभर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी 2025 कब है?
इस वर्ष निर्जला एकादशी शुक्रवार, 6 जून 2025 को मनाई जाएगी।
एकादशी तिथि प्रारंभ: 6 जून को सुबह 2:15 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 7 जून को सुबह 4:47 बजे
इस व्रत में कुछ विशेष कार्य करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। आइए जानें, इस दिन कौन-कौन से काम अवश्य करने चाहिए।
व्रत और जल त्याग का संकल्प लें
निर्जला एकादशी का व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं पी जाती। सुबह स्नान कर के व्रत का संकल्प लें और मन, वचन, और कर्म से भगवान विष्णु का ध्यान करें। इस व्रत को रखने से जीवन में संयम और आत्मबल बढ़ता है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है।
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भगवान विष्णु की पूजा तुलसी से करें
निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। भगवान को पीले फूल, चना दाल, पीली मिठाइयाँ और तुलसी पत्र चढ़ाएं। ध्यान रखें, तुलसी के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाकर पूजा करें और दीपक जलाएं।
दान का विशेष महत्व – गाय का दान अवश्य करें
इस दिन दान करना अत्यंत पुण्यदायक होता है। विशेष रूप से निम्न चीजों का दान करें पानी से भरे घड़े, पंखा, छाता, जूते-चप्पल, वस्त्र और अन्न, इन वस्तुओं का दान गर्मी में जरूरतमंदों की मदद करने वाला कार्य है और इससे दानकर्ता को हजार गुना फल प्राप्त होता है। यदि संभव हो तो गाय का दान करें, यह सर्वोच्च पुण्य देने वाला कार्य माना गया है।
कथा, भजन और मंत्र जाप करें
व्रत के दौरान दिनभर भगवान की भक्ति में लीन रहें। भगवान विष्णु की कथाएं और निर्जला एकादशी की महिमा सुनें या पढ़ें। भागवत गीता का पाठ करें और भजन-कीर्तन करें।
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
इनसे मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
जल का दान करें – व्रत का सबसे खास हिस्सा
इस दिन खुद जल नहीं पिया जाता, लेकिन दूसरों को जल पिलाना बेहद पुण्यदायी होता है। प्यासे को पानी पिलाकर आप व्रत का सबसे महान कार्य कर सकते हैं। सड़क किनारे पानी की व्यवस्था या किसी ज़रूरतमंद को ठंडा जल देना श्रेष्ठ माना गया है।
भीमसेनी एकादशी – व्रत की पौराणिक कथा
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में भीमसेन भोजन के बिना व्रत नहीं रख सकते थे। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें सलाह दी कि वे सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत रखें, तो उन्हें सालभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य मिलेगा। तभी से यह व्रत खास माना जाता है।
पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले फूल, चंदन, तुलसी पत्र और पंचामृत से पूजन करें।
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
भगवान को भोग अर्पित करें और आरती करें।
द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
व्रत के लाभ (निर्जला एकादशी के फल)
इस व्रत को रखने से सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। स्वास्थ्य, समृद्धि, मानसिक शांति और ईश्वर कृपा प्राप्त होती है। कठिन परिस्थितियों में भी मनुष्य में धैर्य और सहनशीलता का विकास होता है।