Friendship Day: दोस्ती की अच्छी-खासी मिसाल है भारतीय पौराणिक कथाओं की ये 5 जोड़ियां

punjabkesari.in Sunday, Aug 04, 2019 - 11:04 AM (IST)

दोस्ती कभी जात-पात का भेदभाव नहीं करती और न ही दोस्ती कभी पुरानी होती है बस दोस्ती के तो किस्से होते है जो पूरी दुनिया याद रखती है। इतिहास हमें बहुत सी कहानियां बताता है जो इस पवित्र रिश्ते को दर्शाती है। दोस्ती किसी भी वक्त और किसी से भी हो सकती है। वो कहते है न याराना दिल से होता है दिमाग से नहीं। आज दोस्ती का दिन है और इस फ्रेंडशिप डे पर हम आपको कुछ ऐसे ही भारतीय पौराणिक कथाओं के दोस्तों के बारे में बताएंगे जिनसे आपको दोस्ती का सही महत्तव पता चलेगा। 

 

कृष्ण और सुदामा 

"अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो ,कृष्ण के द्वार पे विश्वास लेके आया हूं। मेरे बचपन का यार है मेरा श्याम, यहीं सोच कर मैं आस कर के आया हूं।" यह गीत संगीतकारों ने सुदामा के भावों को दर्शाया है। सुदामा और कृष्ण बचपन में एक दूसरे के सहपाठी थे ,जहां कृष्ण एक राजा थे वहीं सुदामा एक गरीब ब्राह्मण ,मगर सुदामा बहुत इमानदार और सच्चे इंसान थे। उनकी यहीं बात कृष्ण के दिल में घर कर गई और कृष्ण सुदामा के हो गए। सुदामा ने कभी भी कृष्ण से कुछ नहीं मांगा पर उनकी पत्नी ने उन्हें जबरदस्ती कृष्ण के महल भेजा और उनसे मदद की गुहार करने को कहा पर कृष्ण सब कुछ पहले से ही जानते थे इसीलिए उन्होंने बिना कुछ सुने ही सुदामा की उलझन दूर कर दीं।  

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कर्ण और दुर्योधन 

यह तो आपको पहले से ही पता होगा कि कर्ण कुन्ती कि नाजायज औलाद थे। इसीलिए कुन्ती ने उनका त्याग करदिया था और उन्हें अपने से छोटे जात के एक बांझ दम्पति को दे दिया था। यही कारण था की कर्ण के इतने प्रतिभाशाली होने के बाद भी कोई उन्हें उच्च दर्जा नहीं देता था। मगर दुर्योधन ने उनसे दोस्ती की और उन्हें बराबर का दर्जा दिया। उस  समय में जब हस्तिनापुर में जाति और भेदभाव की असलियत के साथ लोग जी रहे थे, तब दुर्योधन ने अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध करवाया और कर्ण को राजा के रूप में  घोषित करके पुरे समाज को दोस्ती की मिसाल दी थी।

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राम और सुग्रीव 

रामायण के अनुसार, राम और सुग्रीव के बीच तब दोस्ती हुई थी जब भगवान राम को अपनी प्यारी पत्नी, सीता की तलाश थी और यह भगवान हनुमान थे जिन्होंने उन दोनों का परिचय कराया था। वास्तव में, यह भगवान राम ही थे जिन्होंने सुग्रीव को अपने छोटे भाई वली से किष्किन्धा के सिंहासन को वापस लाने में मदद की थी। बाद में सुग्रीव ने भगवान् राम की भी मदद की थी। यह दोस्ती को निभाने का सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि जो मुसीबत में काम आए वही सच्चा दोस्त होता है। 

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कृष्ण और अर्जुन 

जब अर्जुन यह समझ नहीं पा रहे थे की धर्म को चुने या परिवार को तब कृष्ण ने उनके सार्थी बनकर उनकी समस्या को हल किया था। उन्होंने सच का महत्त्व बता कर अर्जुन के लिए सब कुछ सरल कर दिया। कृष्ण सिर्फ महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सार्थी नहीं थे बल्कि वो उनके पुरे जीवन के सार्थी थे। उनका रिश्ता मेंटरशिप और सच्चाई को भी दर्शाता है। 

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कृष्ण और द्रौपदी 

कई लोग रक्षाबंधन की परंपरा को कृष्ण और द्रौपदी के बीच साझा किए गए सखा-सखी रिश्ते से जोड़ते हैं। कहते है कि शिशुपाल पर चक्र चलाते वक़्त उनकी उंगली पर चोट लग गई थी, जिसे देखते ही द्रोपदी ने कपड़े का एक टुकड़ा ले कर उनकी चोट पर बांध दिया था और यह देख कर कृष्ण भावुक हो गए और कहा की जब भी तुम्हे मदद की जरुरत होगी तब मैं  जरूर मदद करूंगा। इसी वचन को निभाने के लिए भरी प्रजा में जब द्रोपदी का चिर हरण हो रहा था तो वो वहां मौजूद थे, उन्होंने द्रोपदी का चिर हरण होने से बचाया। 

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Content Writer

Sunita Rajput

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