आंखों का रंग पीला होना सिर्फ पीलिया नहीं, कैंसर का भी संकेत हो सकता है , एक्सपर्ट से जानें

punjabkesari.in Sunday, Sep 07, 2025 - 12:11 PM (IST)

 नारी डेस्क: हममें से अधिकतर लोग जब किसी की आंखों का रंग पीला देखते हैं, तो तुरंत पीलिया (Jaundice) या एनीमिया (Anemia) जैसी बीमारियों के बारे में सोचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंखों का रंग पीला होना सिर्फ इन्हीं बीमारियों का नहीं, बल्कि ल्यूकेमिया (Leukemia) जैसे ब्लड कैंसर का भी संकेत हो सकता है? इस संकेत को नज़रअंदाज़ करना कभी-कभी जानलेवा साबित हो सकता है। आइए जानते हैं कि कैसे यह लक्षण कैंसर की ओर इशारा करता है, इसके अन्य संकेत क्या हैं, और इससे कैसे बचा जा सकता है।

आंखों का पीला पड़ना कैसे जुड़ा है ब्लड कैंसर से?

जब किसी व्यक्ति को ब्लड कैंसर होता है और उसका असर लिवर (यकृत) पर पड़ता है, तो शरीर में बिलिरुबिन नामक तत्व का स्तर बढ़ने लगता है। यह तत्व खून में पाया जाता है और इसका काम शरीर में मौजूद मृत लाल रक्त कोशिकाओं को हटाना होता है। जब कैंसर सेल्स खून को दूषित कर देते हैं, तो बिलिरुबिन का प्रोसेस धीमा या बाधित हो जाता है, जिससे वह शरीर से बाहर नहीं निकल पाता। इसके कारण आंखों के सफेद हिस्से (sclera) का रंग पीला होने लगता है। यही नहीं, कई मामलों में त्वचा का रंग भी पीला दिखने लगता है। यह एक ऐसा लक्षण है जिसे देखकर सिर्फ पीलिया नहीं, बल्कि कैंसर की संभावना पर भी गौर करना चाहिए।

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 ल्यूकेमिया क्या है और कितना खतरनाक होता है?

ल्यूकेमिया एक प्रकार का कैंसर होता है जो रक्त और अस्थि मज्जा (bone marrow) को प्रभावित करता है। अस्थि मज्जा वह स्थान होता है जहां रक्त की कोशिकाएं बनती हैं रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स। जब इन कोशिकाओं का उत्पादन अनियंत्रित हो जाता है और वे सामान्य कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं, तो यह कैंसर बन जाता है। ल्यूकेमिया का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह शरीर की इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है, जिससे व्यक्ति बार-बार बीमार पड़ने लगता है और छोटी बीमारियां भी गंभीर रूप ले सकती हैं। यदि इस कैंसर का समय पर पता न चले और इलाज न हो पाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।

 किन लोगों को ल्यूकेमिया का खतरा सबसे अधिक होता है?

ल्यूकेमिया का खतरा खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों को अधिक होता है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी अपेक्षाकृत कमजोर होती है। इसके अलावा, जिन लोगों के परिवार में किसी को पहले ब्लड कैंसर या ल्यूकेमिया हो चुका है, उनमें यह बीमारी होने की संभावना अधिक होती है। रेडिएशन के संपर्क में रहने वाले लोग जैसे कि एक्स-रे तकनीशियन, रेडियोथेरेपी के मरीज़, या किसी न्यूक्लियर वातावरण में काम करने वाले लोग भी इस कैंसर के जोखिम में होते हैं। कीमोथेरेपी ले चुके मरीज़ों को भी ल्यूकेमिया होने की संभावना रहती है। इसके अलावा, AIDS जैसे रोगों से पीड़ित लोग, जिनकी इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होती है, वे भी इसके शिकार हो सकते हैं। धूम्रपान करने वाले, विशेष रूप से जो लंबे समय से तंबाकू का सेवन कर रहे हैं, वे भी इस कैंसर के जोखिम में आते हैं।

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 ल्यूकेमिया के 9 शुरुआती लक्षण जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए

रात में पसीना आना या अत्यधिक थकान महसूस होना – ल्यूकेमिया के मरीज़ अक्सर बिना किसी मेहनत के भी अत्यधिक थकान महसूस करते हैं और रात में पसीने से तर हो जाते हैं। यह शरीर में हो रही असामान्य गतिविधियों का संकेत है।

सांस का फूलना – मामूली गतिविधियों के बाद भी सांस चढ़ना या थकावट होना एक चेतावनी संकेत हो सकता है। इसका कारण खून में ऑक्सीजन ले जाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं की कमी है।

रात के समय बुखार आना – यदि बिना किसी संक्रमण के आपको रोज़ रात में बुखार आता है, तो यह इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी का संकेत हो सकता है जो ल्यूकेमिया से जुड़ा है।

बार-बार इंफेक्शन होना – जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, तो व्यक्ति को अक्सर सर्दी-जुकाम या अन्य संक्रमण हो सकते हैं जो सामान्य दवाओं से भी ठीक नहीं होते।

अचानक वजन घटना – अगर बिना किसी डाइटिंग या मेहनत के वजन तेजी से घटने लगे, तो यह ब्लड कैंसर का एक गंभीर लक्षण हो सकता है।

हड्डियों और जोड़ों में लगातार दर्द रहना – अस्थि मज्जा में कैंसर सेल्स का इकट्ठा होना हड्डियों और जोड़ों में दर्द का कारण बनता है, जो सामान्य दर्द से अधिक गहरा और लगातार होता है।

गर्दन या बगल की लिम्फ नोड्स में सूजन आना – लिम्फ नोड्स में सूजन तब होती है जब शरीर किसी संक्रमण से लड़ रहा होता है। लेकिन अगर ये सूजन लंबे समय तक बनी रहे और दर्द न हो, तो यह कैंसर का संकेत हो सकता है।

मसूड़ों या नाक से खून आना – ब्लड प्लेटलेट्स की कमी के कारण खून जमने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे मसूड़ों या नाक से बिना किसी कारण के खून बह सकता है।

हल्की चोट पर स्किन का नीला या काला पड़ जाना – यह संकेत देता है कि प्लेटलेट्स की संख्या कम है और खून आसानी से बह सकता है, जिससे शरीर में नीले निशान बन जाते हैं।

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 ल्यूकेमिया से बचने के प्रभावी उपाय

ल्यूकेमिया से बचाव के लिए सबसे जरूरी है कि आप अपनी जीवनशैली को सुधारें और नियमित जांच करवाएं। सबसे पहले, धूम्रपान और तंबाकू से पूरी तरह से दूरी बनाएं क्योंकि ये रक्त कोशिकाओं पर सीधा असर डालते हैं। ऐसे वातावरण में काम करने वाले लोग जहां रेडिएशन या हानिकारक केमिकल्स हों, उन्हें सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए। अपनी डाइट में हरी सब्जियां, फल, और आयरन, विटामिन C और फोलिक एसिड से भरपूर चीजें शामिल करें। योग, ध्यान और पर्याप्त नींद लेने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। साथ ही, तनाव कम करने के प्रयास भी बहुत जरूरी हैं क्योंकि मानसिक तनाव भी कई बार इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है।

आंखों का पीला पड़ना सिर्फ एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह ब्लड कैंसर जैसे गंभीर रोग का संकेत भी हो सकता है। इसलिए जब भी ऐसे लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें नज़रअंदाज़ न करें और तुरंत किसी योग्य डॉक्टर से परामर्श लें। अगर समय रहते लक्षणों को पहचान लिया जाए और उचित इलाज शुरू कर दिया जाए, तो ल्यूकेमिया जैसी खतरनाक बीमारी से भी जीवन को बचाया जा सकता है।
 
 

 
 


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Content Editor

Priya Yadav

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