महिलाएं हैं असली नायक: पुरुषों के मुकाबले उनके कंधों पर काम का बोझ है ज्यादा
punjabkesari.in Tuesday, Jun 28, 2022 - 04:43 PM (IST)

ऑस्ट्रेलियाई जनगणना के आंकड़े जारी किए गए हैं, जिनमें दिखाया गया है कि महिलाएं आमतौर पर पुरुषों की तुलना में प्रति सप्ताह कई घंटे अधिक अवैतनिक गृहकार्य करती हैं। यह कोई नयी बात नहीं है। 15 वर्षों में जब से ऑस्ट्रेलियाई जनगणना ने अवैतनिक गृहकार्य के समय की गणना करना शुरू किया, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में हर बार घर का काम ज्यादा करते पाया गया।
महिलाएं घर का काम पुरूषों से ज्यादा करती हैं
इससे पहले, 2006 की जनगणना से भी यही सामने आया था कि घरेलू काम का अधिक बोझ महिलाओं के कंधों पर है। इन नवीनतम जनगणना संख्याओं के बारे में अद्वितीय बात यह है कि ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने काम और घरेलू जीवन के सबसे बड़े व्यवधानों में से एक अर्थात कोविड के दौरान भी अपने सर्वेक्षणों को भरा।
महामारी का दबाव
शोध ये साबित करता है कि महामारी ने महिलाओं - विशेष रूप से माताओं के काम और पारिवारिक जीवन को विनाशकारी तरीकों से बाधित किया है। आर्थिक कारणों से बंद हुए काम धंधों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में उच्च दर पर रोजगार से बाहर कर दिया गया, जिससे उन्हें अपनी बचत और प्रोत्साहन भुगतान पर अधिक निर्भर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह सब गृहकार्य के बोझ, बच्चों की देखभाल और होमस्कूलिंग का प्रबंधन करते हुए किया गया।

पिता ने भी गृहकार्य में की वृद्धि
पिता ने घर में रहते हुए महामारी की शुरुआत में घर का काम ज्यादा किया और समय के साथ इसे बनाए रखा। पिता ने अपने गृहकार्य में वृद्धि की, लेकिन माताओं ने भी ऐसा किया, जिसका अर्थ है कि उस समय में लिंग अंतर बना रहा। इसलिए, जबकि पुरुषों की महामारी के दौरान अधिक काम करने के लिए सराहना की जानी चाहिए।
महामारी की सच्ची नायक थी माताएं
शोध में पाया गया कि माताएं महामारी की सच्ची नायक थीं, अपने स्वास्थ्य और कल्याण की कीमत पर उन्होंने काम का अतिरक्त बोझ उठाया।यह दशकों के शोध के समानांतर है, जिसमें दिखाया गया है कि महिलाएं अधिक गृहकार्य करती हैं, तब भी जब वे पूर्णकालिक रूप से कार्यरत होती हैं, अधिक पैसा कमाती हैं और विशेष रूप से एक बार जब बच्चे हो जाते हैं। पुरुषों ने समय के साथ अपने गृहकार्य और चाइल्डकेअर योगदान में वृद्धि की है और युवा पुरुष घर में अधिक उपस्थित, सक्रिय और चौकस रहना चाहते हैं।
(लिआ रुप्पनर द्वारा, मेलबर्न विश्वविद्यालय)
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