कब्र पर फूल या अगरबत्ती जलाना क्यों है गुनाह के बराबर? जानिए इसकी असली वजह

punjabkesari.in Thursday, Oct 30, 2025 - 11:44 AM (IST)

नारी डेस्क : मुस्लिम समाज में अक्सर देखा जाता है कि लोग अपने प्रियजनों की कब्र पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते हैं या कब्र को सजाते हैं। कुछ लोग इसे मोहब्बत और सम्मान का तरीका मानते हैं, लेकिन इस्लामिक दृष्टि से यह अमल सही नहीं माना जाता।

क्या कहता है इस्लाम?

इस्लाम में वही काम जायज़ है, जो कुरआन और सही हदीस से साबित हो। कोई भी ऐसा काम जो न पैग़ंबर मोहम्मदने किया और न कुरआन में उसका ज़िक्र है, उसे ‘बिदअत’ (नई रस्म) कहा जाता है, जो इस्लाम में नाजायज़ और गुनाह मानी जाती है।

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शरीयत में नहीं है यह परंपरा

कब्र पर फूल चढ़ाना, अगरबत्ती जलाना या सजावट करना इस्लामी शरीयत में कहीं भी दर्ज नहीं है। इस्लामी विद्वानों (उलमा) का कहना है कि कब्रों को सादगी से रखना चाहिए। दिखावा या सजावट करना गुमराही की ओर ले जा सकता है, क्योंकि यह इस्लाम की सादगी और तौहीद के उसूलों के खिलाफ है।

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दुआ करना है असली नेकी

रसूलुल्लाह ने कब्र के पास जाकर दुआ और माफी की दरख्वास्त करने की हिदायत दी है, न कि सजावट या फूल चढ़ाने की। इस्लाम में यह भी बताया गया है कि मरहूम के लिए सबसे अफज़ल चीज़ उसकी मग़फिरत (माफी) की दुआ करना है, न कि कब्र को सजाना या महकाना।

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दिल की तसल्ली के लिए न करें गुनाह

अक्सर लोग “दिल की तसल्ली” या “परंपरा” के नाम पर ऐसे काम कर बैठते हैं, लेकिन इस्लाम सिखाता है कि असली मोहब्बत यह है कि हम अपने प्रियजनों के लिए दुआ करें और खुद गुमराही से बचें। इसलिए, कब्रिस्तान में फूल या अगरबत्ती ले जाने के बजाय, वहाँ जाकर सादा तरीके से दुआ करना ही इस्लाम के मुताबिक सही और अफज़ल अमल माना गया है।


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Monika

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