पतिव्रता वृंदा ने नाराज होकर भगवान विष्णु को दिया था काला पत्थर बनने का श्राप, पढ़िए पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Nov 24, 2023 - 05:22 PM (IST)

हिंदू धर्म और आयुर्वेद में तुलसी के पौधे को विशेष स्थान प्राप्त है। तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र माना गया है। कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां पर खुशहाली और पॉजिटिव एनर्जी का ही वास रहता है लेकिन तुलसी के पौधे से जुड़े बहुत से नियम भी हैं। मान्यताओं के अनुसार, जिनका पालन करना जरूरी हैं। वहीं एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह करवाना भी शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान के बराबर फल प्राप्त होता है। तुलसी का विवाह शालीग्राम से किया जाता है। इसके पीछे भी पौराणिक कथा है चलिए उस बारे में ही आपको बताते हैं।

 

पौराणिक कथा के अनुसार, माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राप दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओगे। इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया था। शालीग्राम (shaligram vivah) को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और तुलसी को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि मां तुलसी की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है लेकिन तुलसी मां भगवान विष्णु से नाराज क्यों हुई थी।

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भगवान विष्णु से नाराज हो गई थी तुलसी माता

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, तुलसी को वृंदा भी कहा जाता है। वृंदा एक कन्या थी जिसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से करवाया गया था। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री भी थी। वृंदा की पवित्रता के कारण ही जलंधर और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गया था। मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। महादेव के अलावा तमाम देवताओं ने जलंधर को हराने का पूरा प्रयास किया लेकिन कोई कामयाब नहीं हुआ। देवों ने मिलकर भगवान विष्णु से इस बारे में  प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने जलंधर का भेष धारण किया और पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट कर दी।

 

वृंदा की पवित्रता समाप्त होते ही जलंधर की ताकत भी खत्म हो गई और भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। भगवान विष्णु की माया से क्रोधित वृंदा ने उन्हें काला पत्थर बनने का श्राप दे दिया था। उन्होंने श्राप दिया और कहा कि वह भी एक दिन अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे इसलिए कहा गया है कि राम के अवतार में भगवान माता सीता से अलग होते हैं। भगवान विष्णु को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवताओं में हाहाकार मच जाता है। माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की। इसके बाद वृंदा ने जगत कल्याण के लिए अपना श्राप वापस लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई।

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वृंदा की राख से हुआ था तुलसी के पौधे का जन्म 

फिर उसी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से मैं, तुलसी के बिना प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा। इस पत्थर को शालीग्राम के नाम से तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा। इसी वजह से कार्तिक मास में तुलसी जी का शालीग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है। जो लोग तुलसी विवाह करवाते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है। देव उठनी एकादशी पर केवल तुलसी विवाह ही नहीं होता है बल्कि इस दिन व्रत रखने से, विवाह में आ रही सारी रुकावटें भी दूर होती हैं और शुभ विवाह का योग जल्दी ही बन जाता है।

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तुलसी को धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व दिया गया है। यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना और उपासना आदि में तुलसी का इस्तेमाल पवित्र भोग, प्रसाद आदि के रूप में किया जाता है। भगवान के चरणामृत में भी तुलसी का उपयोग किया जाता है। अब तो आप जान गए होंगे कि तुलसी का विवाह शालीग्राम पत्थर से क्यों किया जाता है। तुलसी विवाह वाले दिन अगर आपके घर में तुलसी हैं तो उसे हार-श्रृंगार करके जरूर सजाए।


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Content Writer

Vandana

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