महिलाओं के लिए तालिबान ने बनाए नियम, एक छोटी सी गलती और मिलेगी खौफनाक सजा
punjabkesari.in Wednesday, Aug 18, 2021 - 04:58 PM (IST)
अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। तालिबान के कब्जे के बाद सबसे ज्यादा खौफ महिलाओं और बच्चों को लेकर है, उन्हें लेकर नए-नए फरमान जारी किए जा रहे हैं इसीलिए तो वहां लोग देश छोड़ कर भाग रहे हैं जिसकी कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। एक बार फिर से महिलाओं की दशा दयनीय हो गई है। ऐसे हालात साल 2001 में थे जब अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था । उस समय की बर्बरता अब तक उनके दिमाग से नहीं गई और एक बार फिर से वहीं पिंजरे में कैद जैसी जिंदगी दोबारा उनके आगे आन खड़ी हुई है।
तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी नर्क बनाने वाले कुछ ऐसे कानून बना दिए गए हैं जिसे सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे।
जरा सुनिए उनके फरमान..
- बिना किसी करीबी रिश्तेदार के नहीं सड़कों पर नहीं निकल सकतीं।
- बाहर जाना है तो बुर्का पहनना ही होगा।
- पुरुषों को महिलाओं की आहट ना सुनाई दे इसलिए हाई हील्स के सेंडल नहीं पहन सकती।
- सावर्जनिक जगह पर किसी अजनबी को सुनाई नहीं देनी चाहिए महिला की आवाज।
- घर के ग्राउंड फ्लोर में खिड़किया पेंट होनी चाहिए ताकि महिलाएं दिखाई ना दें।
- महिला तस्वीर नहीं खिंचवा सकतीं, न ही उनकी तस्वीरें अखबारों, किताबों और घर में लगी हुई दिखनी चाहिए।
- महिलाएं नेल पेंट नहीं लगा सकती हैं ना ही वे मर्जी से शादी कर सकती हैं।
- महिलाएं टाइट कपड़े नहीं पहन सकतीं।
- घर की बालकनी या खिड़की पर भी महिलाएं दिखाई नहीं देनी चाहिए।
- महिलाएं किसी भी सार्वजनिक एकत्रीकरण का हिस्सा नहीं होनी चाहिए।
- महिला शब्द को किसी भी जगह के नाम से हटा दिया जाए।
अगर महिलाएं ये नियम कायदे तोड़ेंगी तो उन्हें खौफनाक सजाओं का सामना करना पड़ेगा। तालिबान राज में महिला को सरेआम बेइज्जत करना, पीट-पीटकर मार देने की सजा पहले से ही आम थी। अगर कोई महिला अवैध संबंध रखती है तो उसे सरेआम मौत दे दी जाती है। कपड़े अगर टाइट हुए तो भी सजा मिलेगी। अरेंज मैरिज से अगर लड़की भागने की कोशिश करती हैं तो उसकी नाक और कान काटकर उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है और नेलपेंट लगाने पर उंगलियां काटने जैसी क्रूर सजा दी जाती है।
ऐसे में क्या अस्तित्व रहा महिलाओं का जब वो वह बाहर नहीं जा सकती, नौकरी नहीं कर सकती, पढ़ नहीं सकती ...सच में ये तो वजूद खत्म होने जैसा है। हालांकि बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन से अब के माहौल से डरी महिलाओं के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, ''हम उनकी इज़्ज़त, संपत्ति, काम और पढ़ाई करने के अधिकार की रक्षा करने के लिए समर्पित हैं। ऐसे में उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें काम करने से लेकर पढ़ाई करने के लिए भी पिछली सरकार से बेहतर स्थितियां मिलेंगी।''
अब यह आश्वासन सच्चा है या झूठा यह तो आगे चलकर ही पता चलेगा जबकि अफगानिस्तान की महिलाओं का तबका चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय जगत उनकी मदद के लिए आगे आए। इसी के साथ एक बार फिर से 60 और 70 के दशक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रही हैं और लोग उस समय की महिला की इस समय की महिला से तुलना कर रहे हैं।
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली और अफ़ग़ानिस्तान में चुनाव आयोग की पूर्व सदस्य ज़ारमीना काकर ने बीबीसी को कहा, ''यहां सबसे ज़्यादा महिलाएं और बच्चे डरे हुए हैं और ऐसी युवा पीढ़ी जो पिछले 20 सालों में यहां पली-बढ़ी है, वो तालिबान से खौफ में हैं। काबुल में मौजूद महिलाएँ डर के मारे वहाँ से अब भाग रही हैं। अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएँ तालिबान के शासन के दौरान उन पर होने वाली ज़्यादतियां और कोड़े मारने की घटनाओं को भूली नहीं हैं।'' उनका कहना है कि ''पिछले 20 सालों में अफ़ग़ान महिलाओं ने देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए बहुत कोशिशें की है लेकिन आज तालिबान की वापसी से ये लगता है कि हमने इतने सालों में जो हासिल किया था, वो बर्बाद हो गया क्योंकि तालिबान महिला अधिकारों और महिलाओं की निजी स्वतंत्रता को लेकर प्रतिबद्ध नहीं है।''
अफगानिस्तान में महिलाएं खासतौर पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकारिका से जुड़ी महिलाएं पल-पल मौत को देख रही हैं और अब वो पूरी तरह से नाउम्मीद महसूस कर रही हैं। वहीं स्वतंत्र फ़िल्ममेकर सहरा क़रीमी ने सिनेमा और फ़िल्मों को प्यार करने वाले लोगों और फ़िल्म कम्युनिटी को चिट्ठी लिखी है और मदद की गुहार लगाई है और लिखा है कि 'दुनिया हमें पीठ ना दिखाए, अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं, बच्चों, कलाकारों और फ़िल्ममेकर्स को आपके सहयोग की ज़रूरत है।