ये लक्षण दिखें तो समझें आपकी बच्चेदानी बहुत छोटी है? क्या है Uterus के छोटे होने की वजह
punjabkesari.in Tuesday, Nov 25, 2025 - 06:09 PM (IST)
नारी डेस्कः बच्चा पैदा करने के लिए महिला की बच्चेदानी का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है लेकिन बच्चेदानी से जुड़ी भी बहुत सी समस्याएं होती है जो गर्भधारण में दिक्कत पैदा कर सकती है जैसे बच्चेदानी में रसौलियां होना, सूजन और बच्चेदानी का मोटी और छोटी होना। बहुत सी महिलाओं की बच्चेदानी छोटी होती है जिसकी जानकारी महिला को तब तक नहीं होती जब तक यूट्रस की स्कैन ना हो,बहुत सी महिलाएं तो छोटी बच्चेदानी की समस्या के बारे में कोई जानकारी भी नहीं रखती लेकिन ये होती क्यों है और इससे क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं? चलिए इस बारे में ही आपको बताते हैं।
छोटी बच्चेदानी (Small Uterus) की समस्या को समझें
Small uterus जिसे चिकित्सा भाषा में एमेनोरिया कहा जाता है। छोटी बच्चेदानी का मतलब है कि गर्भाशय का आकार सामान्य से छोटा है। ऐसे में कंसीव करने से लेकर पीरियड्स तक बहुत सारी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसा होने के बहुत से कारण हो सकते हैं जिसमें कुछ जन्म के समय तो कुछ बिगड़े लाइफस्टाइल के चलते भी रह सकते हैं।
बच्चेदानी छोटी होने (Small Uterus) के लक्षण
बच्चेदानी छोटे होने पर महिला को भारी मासिक धर्म रह सकता है या अनियमित या कम भी हो सकते हैं।
पेट में दर्द की शिकायत तो पीरियड्स के दिनों में ज्यादा हो सकती है।
बार-बार यूरिन आना या लगातार कब्ज की शिकायत रह सकती है।

बच्चेदानी (Uterus) के छोटे होने के मुख्य कारण
बच्चेदानी का छोटा होना अक्सर जन्मजात या आनुवंशिक कारणों से होता है लेकिन कई बार हार्मोनल गड़बड़ी और बचपन की स्वास्थ्य स्थितियों की वजह से भी ऐसा होने की संभावना रहती है।
1. जन्मजात या आनुवंशिक कारण
गर्भ में रहते हुए बच्चेदानी पूरी तरह विकसित न होना। म्यूलेरियन एजेनेसिस, टर्नर सिंड्रोम जैसी स्थितियाँ, जिनमें जन्म से ही प्रजनन अंग ठीक से विकसित नहीं होते।
2. हार्मोनल असंतुलन
किशोरावस्था के समय एस्ट्रोजन की कमी होने पर गर्भाशय सामान्य आकार तक नहीं बढ़ पाता। यह पीरियड की अनियमितता और विकास से जुड़े अन्य लक्षण भी पैदा कर सकता है।
हॉर्मोनल असंतुलन: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन का असंतुलन फाइब्रॉइड के विकास का कारण हो सकता है।
जेनेटिक फैक्टर्स: अगर परिवार में किसी को फाइब्रॉइड है, तो आपके भी होने की संभावना बढ़ जाती है।
3. बचपन की स्वास्थ्य समस्याएं
बचपन में गंभीर या पुरानी बीमारियां। कुपोषण, जिससे शरीर को विकास के लिए जरूरी पोषण नहीं मिल पाता। बचपन में कीमोथेरेपी या रेडिएशन लेने से गर्भाशय का विकास रुक सकता है।
4. प्रजनन प्रणाली की असामान्यताएं
आनुवंशिक या संरचनात्मक समस्याएँ (जैसे सिस्ट या अन्य असामान्यताएँ) भी गर्भाशय के आकार को प्रभावित कर सकती हैं।
5. हार्मोन और उम्र का असर
हार्मोन स्तर में बदलाव के कारण गर्भाशय का आकार बढ़ता या घटता है।
बहुत कम उम्र या देरी से हार्मोनल विकास होने पर भी आकार छोटा रह सकता है।
6. लाइफस्टाइल से जुड़ी कुछ दिक्कतें
कुछ शोध में मोटापा, विटामिन D की कमी और अन्य जीवनशैली कारकों का भी छोटा गर्भाशय होने से संबंध बताया गया है।
यह भी पढ़ेंः सर्दी में आपको भी होता है Depression ? तो ये 5 काम जरूर करें
छोटी बच्चेदानी (Small Uterus) के इलाज के तरीके
अगर नेचुरल इलाज की बात करें तो पहले अपना लाइफस्टाइल सही करें।
संतुलित आहार खाएं, नियमित एक्सरसाइज करें और जितना हो सकें हर्बल औ ऑर्गेनिक सप्लीमेंट्स ही लें।
सलाह के साथ हॉर्मोनल थेरेपी ले सकते हैं। हॉर्मोनल असंतुलन को ठीक करने के लिए थेरेपी का उपयोग किया जा सकता है।
जीवनशैली में बदलाव बहुत जरूरी है। पूरी नींद लें और जितना हो सके स्ट्रैस से दूर रहे।
कब डॉक्टर से मिलें?
यदि आपको लगता है कि आपकी बच्चेदानी सामान्य से छोटी है या अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में ऐसा लिखा है तो सही कारण जानने और उपचार के लिए डॉक्टर से परामर्श ज़रूरी है ताकि आपको सही कारण और इलाज मिल सकें।

