तवायफ की बेटी थी नरगित दत्त, जिसके लिए दो ब्राह्मण बन गए थे मुस्लमान

punjabkesari.in Wednesday, Mar 29, 2023 - 04:05 PM (IST)

बॉलीवुड के दमदार एक्टर संजय दत्त और उनके परिवार के बारे मे कौन नहीं जानता? उनके पिता सुनील दत्त और मां नरगिस दत्त अपने जमाने के टॉप के स्टार रह चुके हैं। दोनों ही अपने दमदार एक्टिंग के लिए फेमस थे। नरगिस सिर्फ एक्टिंग ही नहीं बल्कि अपनी खूबसूरती के लिए भी बॉलीवुड पर राज करती थी। लेकिन खूबसूरती के मामले में नरगिस की मां भी कुछ कम नहीं थीं लेकिन नरगिस की मां एक तवायफ थी शायद आपको ये बात पता ना हो। चलिए आज उन्हीं के बारे में आपको बताते हैं।

PunjabKesari
कोलकाता में जन्मी नरगिस का पालन-पोषण एक कोठे में हुआ था। उनकी मां एक ऐसी तवायफ थी जिनके गाने सुनने का शौक, मुगलों की शान हुआ करता था और एक कोठे से ही भारत को पहली महिला संगीतकार भी मिलीं थीं। उस समय तवायफ के पेशे से भी ज्यादा बुरा लड़कियों का फिल्मों में काम करना माना जाता था। तब एक कोठे पर गाने वाली ही भारत की पहली फीमेल म्यूजिक डायरेक्टर बनी और वो कोई और नहीं बल्कि नरगिस की मां जद्दनबाई थी। उसी जद्दन बाई के नाती है संजय दत्त। संजय दत्त की नानी इतनी खूबसूरत और आवाज की जादूगर थी कि उनसे शादी करने के लिए दो ब्राह्मणों ने इस्लाम कबूला था। जद्दनबाई, खुद अपनी मां की बदौलत ही तवायफ बनी थीं।

PunjabKesari

 दरअसल, साल 1900 के दौर में जब भारत पर अंग्रेजों का राज था तो उन  दिनों भारत के इलाहाबाद के एक कोठे पर एक मशहूर तवायफ थीं दलीपाबाई। उसी दलीपाबाई की बेटी थी जद्दनबाई। इलाहाबाद की सबसे मशहूर तवायफ दलीपाबाई और पिता मियां जान की बेटी जद्दन का जन्म बनारस में साल 1892 में हुआ था लेकिन 5 साल की उम्र में ही जद्दन बाई ने अपने पिता को खो दिया। दलीपाबाई शुरू से ही कोठे से ताल्लुक नहीं रखती थी। दरअसल, अपनी शादी के दिन ही विधवा हो गई थी। एक हादसे ने उन्हें कोठे पर पहुंचा दिया था। दलीपाबाई का बाल-विवाह हुआ था और जब शादी के बाद उनकी विदाई लेकर बारात पंजाब के गांव के पास पहुंची तो डाकुओं ने हमला कर दिया। सारा दहेज और सोना लूट लिया गया और दूल्हे को गोली मार दी गई। किसी तरह दलीपा अपनी जान बचाकर तो भाग निकली लेकिन ससुराल वालों ने उन्हें अभागन कहा और विधवा प्रथा के कष्ट देने शुरू कर दिए।  एक दिन नदी किनारे वह गुनगुनाते हुए कपड़े धो रही थी तो गांव पहुंची मंडली की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने दलीपा की आवाज सुनकर उन्हें साथ चलने को कहा। दलीपा भी घरवालों से तंग थी, साहस कर वह भी राजी हो गई लेकिन उस मंडली के लोगों ने दलीपा को इलाहाबाद के एक कोठे पर बेच दिया जिसके बाद दलीपाबाई वहां से कभी निकल ही नहीं पाई।

PunjabKesari
उसी कोठे पर काम करते सारंगी वादक मियां जान से उनकी शादी करवा दी गई। दलीपाबाई जो कि ब्राह्मण परिवार से थी लेकिन जब मियां से शादी हुई तो वह मुस्लिम बन गई और शादी के बाद उनके घर जद्दनबाई हुसैन का जन्म हुआ। जद्दनबाई को परवरिश और गाने की फनकारी, गायिकी नाच गाना, सब अपनी मां से ही मिला। वह कोठे में ही पली बढ़ी लेकिन ये वो कोठे नहीं थे जहां देह व्यापार होता था बल्कि इन कोठों में सिर्फ ठुमरी और गजलें पेश की जाती थीं। मां के बाद जद्दन ने ही मां की जगह ली और जद्दन अपनी मां से ज्यादा फेमस हो गई। जद्दन की एक नजर के लोग इस कद्र दीवाने हो जाते थे कि अपना सबकुछ छोड़ने को राजी हो जाते थे। जद्दनबाई की एक नहीं 3 शादियां हुई। पहले पति गुजराती हिंदी बिजनेसमैन नरोत्तम दास थे जिन्हें बच्ची बाबू के नाम से जाना जाता था। जद्दन के लिए उन्होंने इस्लाम कबूला और शादी की। दोनो का एक बेटा हुआ अख्तर हुसैन लेकिन कुछ सालों बाद नरोत्तम, जद्दन को छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। जद्दन ने अकेले ही अपने बेटे को पाला, उसके बाद कोठे में ही हारमोनियम बजाने वाले मास्टर उस्ताद इरशाद मीर खान से जद्दन बाई की दूसरी शादी हुई और इस शादी से भी उन्हें बेटा हुआ जिसका नाम अनवर हुसैन रखा गया लेकिन ये शादी भी नहीं चली, दोनों अलग हो गए।

PunjabKesari
इसी बीच जद्दन की मुश्किलें बढ़ गई थी अंग्रेजों को लगता था कि जद्दन अपने घर पर क्रांतिकारियों को जगह देती हैं जिसके चलते वह लगातार छापामारी करती थी। इससे तंग आकर जद्दन ने बनारस छोड़ा और कोलकाता आ गई और यहां एक कोठे पर गाना शुरू किया। यहां उन्हें लखनऊ के एक रईस परिवार का शख्स मिला जिनका नाम था मोहन बाबू जो पानी के जहाज के जरिए कोलकाता से लंदन डॉक्टरी करने जाने वाला था लेकिन जहाज के रवाना होने में देरी हुई तो वह शाम गुजारने के लिए जद्दन बाई के कोठे पर जा पहुंचे। जद्दन बाई को देखने के बाद मोहन बाबू ने उनसे शादी करने का मन बना लिया लेकिन मोहन बाबू एक अमीर खानदानी परिवार से थे इसलिए वह कभी इस शादी के लिए राजी ना होते जबकि जद्दनबाई दो नाकाम शादियां कर चुकीं थीं, दो बच्चों की मां और कोठेवाली थीं। उन्होंने मोहन बाबू को कहा कि वह पहले अपने परिवार को जाकर बताएं कि वह एक मुस्लिम तवायफ से शादी करना चाहते हैं फिर वह उनके प्रस्ताव के बारे में सोचेंगी। मोहन बाबू अपने परिवार से नाता तोड़ कर जद्दन के पास आए। मोहन बाबू ने शादी से पहले इस्लाम कबूला और अब्दुल राशिद बन गए। मोहन बाबू की सारी जिम्मेदारी भी जद्दनबाई ने ही उठाईं। साल 1929 में उनके घर बेटी हुई जिनका नाम था फ़ातिमा रशिद जो बाद में बॉलीवुड की फेमस हीरोइन नरगिस बनी।

PunjabKesari
कुछ सालों बाद जद्दनबाई सिंगर बनने के लिए बनारस से कोलकाता पहुंच गई जहां उन्होंने संगीत की शिक्षा ली और देखते ही देखते इनके गाए गाने देशभर में पसंद किए जाने लगे। ब्रिटिश शासक भी इन्हें अलग-अलग जगहों पर महफिल सजाने के लिए बुलवाते।  रेडियो स्टेशनों के जरिए इनके गाने देशभर तक पहुंचने लगे।  उन्हें  राजा गोपीचंद फिल्म में हीरो की मां रोल ऑफर हुआ इस तरह एक्टिंग की दुनिया में भी उनकी एंट्री हो गई उसके बाद उन्होंने इंसान और शैतान फिल्म की और कुछ सालों बाद परिवार को लेकर बॉम्बे शिफ्ट हो गईं। जद्दन ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला और फिल्में बनाना शुरू किया। अपने दोनों बेटों को फिल्मों में उतारा लेकिन वह फ्लॉप रहे और इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ। मोहन बाबू जो कि शादी के लिए डाक्टर बनने का सपना छोड़ चुके थे, वह चाहते थे कि उनकी बेटी नरगिस डॉक्टर बने लेकिन मां पर कर्ज ही इतना था कि उन्होंने बेटी नरगिस को फिल्मों में लाना जरूरी समझा।

PunjabKesari
6 साल की नरगिस को बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में आ गई और कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने के बाद नरगिस को 14 साल की उम्र में तकदीर फिल्म से पहचान मिली। वह अपनी बेटी नरगिस को सुपरस्टार बनते देखे लेकिन अफसोस ये सपना उनका पूरा नहीं हो पाया। 8 अप्रैल 1949 में कैंसर से जद्दन बाई का निधन हो गया। उन्हें मुंबई के बाबा कब्रिस्तान में दफन किया गया। नरगिस सुपरस्टार हीरोइन बनी और उन्होंने सुनील दत्त से शादी की। साल 1981 में नरगिस की मौत भी कैंसर से हुई और उन्हें भी अपनी मां जद्दनबाई की कब्र के पास ही दफनाया गया। यह थी मां बेटी के स्ट्रगलिंग लाइफ की खूबसूरत कहानी। आपको हमारा ये पैकेज कैसा लगा हमें बताना ना भूलें।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Vandana

Recommended News

Related News

static