पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए प्रसिद्ध है दक्षिण भारत का काशी रामेश्वरम तीर्थस्थान
punjabkesari.in Thursday, Sep 18, 2025 - 03:46 PM (IST)

नारी डेस्क : आज पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि है। इस समय को हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस दौरान लोग श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म करते हैं, ताकि अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दे सकें और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे पवित्र स्थान के बारे में बता रहे हैं, जिसे “दक्षिण भारत का काशी” कहा जाता है। रामेश्वरम। माना जाता है कि यहां पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है और पितृ दोष शांत होता है।
रामेश्वरम का धार्मिक महत्व
रामेश्वरम, तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह चार धामों में से एक है और यहां स्थित रामनाथस्वामी मंदिर को बारह ज्योतिर्लिंगों में गिना जाता है। यह स्थान न केवल भगवान शिव की भक्ति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि पितृ कर्म, जैसे कि श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के लिए भी एक अत्यंत पुण्य भूमि मानी जाती है।
श्रीराम ने भी किए थे पितृ कर्म
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी, तब उन्होंने ब्रह्म हत्या (रावण ब्राह्मण था) के दोष से मुक्त होने और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए रामेश्वरम में पूजा की थी। उन्होंने समुद्र तट पर एक शिवलिंग की स्थापना की और वहीं श्राद्ध कर्म किए। यही कारण है कि रामेश्वरम को पितृ दोष शांति के लिए सर्वोत्तम स्थान माना जाता है।
रामनाथ शिवलिंग की कथा
एक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को कैलाश भेजा था, ताकि वहां से शिवलिंग लेकर आएं। लेकिन जब हनुमान जी आने में देर कर बैठे, तब माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाकर उसकी स्थापना की। इस शिवलिंग को ही ‘रामनाथ’ कहा जाता है। आज यही शिवलिंग रामनाथस्वामी मंदिर में स्थापित है, जो अपनी भव्य वास्तुकला और लंबे गलियारों के लिए विश्वप्रसिद्ध है।
24 पवित्र तीर्थकुंडों में स्नान का महत्व
रामेश्वरम में 24 पवित्र तीर्थकुंड हैं। मान्यता है कि ये कुंड भगवान राम ने अपने बाणों से बनाए थे। इन कुंडों के जल को पवित्र और चमत्कारी माना जाता है। श्रद्धालु श्राद्ध या तर्पण से पहले इन कुंडों में स्नान करते हैं, ताकि वे शुद्ध होकर पितृ कर्म कर सकें।
तिल तर्पण और पिंडदान का महत्व
पितृ पक्ष के दौरान रामेश्वरम में तिल, जल और कुशा से तर्पण करना बहुत फलदायी माना जाता है। यह पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करता है और पितृ दोष के दुष्प्रभाव कम करता है। विशेष रूप से महालया अमावस्या पर यहां किया गया श्राद्ध और पिंडदान अत्यधिक पुण्यदायी होता है। माना जाता है कि इस दिन पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और यदि श्रृद्धा से कर्मकांड किया जाए, तो वे आशीर्वाद देकर जाती हैं।
राम सेतु का भी है विशेष महत्व
रामेश्वरम से सटी समुद्र की सीमा पर राम सेतु (आदि सेतु) के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। यही वह पुल है जिसे भगवान राम और वानर सेना ने लंका जाने के लिए बनाया था। यह स्थान आज भी आध्यात्मिक ऊर्जा और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। रामेश्वरम को दक्षिण का काशी यूं ही नहीं कहा जाता। यहां आकर किए गए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और शिव पूजा से न केवल पितरों को मोक्ष मिलता है, बल्कि श्रद्धालु को भी जीवन में शांति, सुख, समृद्धि और पारिवारिक सामंजस्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।