भारत की एक और बेटी की सेमीफाइनल में एंट्री, जानिए कमजोरी को अपनी ताकत बनाने वाली मनीषा की कहानी
punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2024 - 06:23 PM (IST)
नारी डेस्क: भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी मनीषा रामदास ने रविवार को पैरा ओलंपिक खेलों में एसयू5 वर्ग में महिलाओं के एकल सेमीफाइनल में जगह बनाई जहां उनका सामना हमवतन तुलसीमति मुरुगेसन से होगा जिससे भारत का इस स्पर्धा में पदक पक्का हो गया। मनीषा के दाहिने हाथ में जन्म से ही विकार था। इस 19 वर्षीय खिलाड़ी को क्वार्टर फाइनल में जापान की मामिको टोयोडा को 21- 13 21-16 से हराने में कोई परेशानी नहीं हुई।
मनीषा ने पहला पदक किया पक्का
दूसरी वरीयता प्राप्त भारतीय खिलाड़ी ने अपनी गैरवरीय प्रतिद्वंद्वी को केवल 30 मिनट में बाहर का रास्ता दिखाया। अंतिम चार में मनीषा का मुकाबला शीर्ष वरीयता प्राप्त तुलसीमति से होगा, जिन्होंने शनिवार को ग्रुप ए में पुर्तगाल की बीट्रिज़ मोंटेइरो को हराया था। एसएल4 वर्ग में पुरुष एकल सेमीफाइनल में दो भारतीय खिलाड़ी सुहास यतिराज और सुकांत कदम आमने-सामने होंगे। इस तरह से इन दोनों ने बैडमिंटन में भारत का पहला पदक पक्का किया था।
पिता ने मनीषा को किया प्रेरित
मनीषा रामदास की बात करें तो वह जन्म से ही शारीरिक रूप से अक्षम थीं, जिससे उन्हें चलने-फिरने और सामान्य गतिविधियों को करने में कठिनाई होती थी। समाज और उनके आस-पास के लोगों ने उन्हें कमजोर और असमर्थ समझा, लेकिन मनीषा ने कभी हार नहीं मानी। उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्हें सामान्य बच्चों की तरह खेल में भाग लेने का मौका नहीं मिला, लेकिन उन्होंने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में बदलने का फैसला किया।
पैरा-बैडमिंटन में प्रवेश
मनीषा ने पैरा-बैडमिंटन में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। शुरुआत में उनके पास उचित ट्रेनिंग और सुविधाएं नहीं थीं। उनके लिए एक अच्छा कोच ढूंढना और अभ्यास के लिए सुविधाएं जुटाना भी एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन मनीषा ने कठिन परिश्रम किया और अपने खेल में सुधार लाने के लिए हर संभव प्रयास किया। मनीषा को हमेशा यह प्रेरणा मिली कि शारीरिक अक्षमता उनकी सफलता की राह में बाधा नहीं बनेगी। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई टूर्नामेंट्स में भाग लिया और अपने बेहतरीन प्रदर्शन से सबको चौंका दिया।
उपलब्धियां
मनीषा ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पदक जीते हैं और भारत का नाम रोशन किया है। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में अपनी कड़ी मेहनत और अद्वितीय खेल कौशल के दम पर कई स्वर्ण पदक जीते हैं। मनीषा की संघर्ष की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हमारे पास आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और मेहनत करने की इच्छा हो, तो कोई भी बाधा हमें सफलता पाने से रोक नहीं सकती। उन्होंने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में बदलकर यह साबित किया कि असल सफलता मानसिक और आत्मिक शक्ति में निहित होती है।