नवरात्रि में भीलवाड़ा के शक्तिपीठों दर्शन से पूरी होती हर मनोकामना और रोग होते दूर

punjabkesari.in Tuesday, Sep 23, 2025 - 05:21 PM (IST)

 नारी डेस्क:  शारदीय नवरात्रि नजदीक आते ही राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शक्तिपीठों और माता मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी है। इस दौरान पूरे जिले में भव्य सजावट, अखंड ज्योति, दुर्गा सप्तशती पाठ और गरबा-डांडिया जैसे धार्मिक आयोजन विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं। यहां स्थित प्राचीन मंदिर न सिर्फ अपनी आस्था और मान्यता के लिए प्रसिद्ध हैं बल्कि अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के कारण भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।

बंक्यारानी माता मंदिर, आसींद

भीलवाड़ा जिले के आसींद में स्थित बंक्यारानी माता मंदिर करीब 1100 साल पुराना है। यह मंदिर पहाड़ की ऊंची चोटी पर बसा हुआ है। मान्यता है कि यहां आने से प्रेत बाधा दूर हो जाती है और रोगियों के आचार-विचार तक बदल जाते हैं। मंदिर परिसर में हनुमानजी और भगवान भैरव के मंदिर भी स्थित हैं। नवरात्रि के दौरान कई परिवार यहां पूरे 9 दिन रुककर पूजा-अर्चना करते हैं। शनिवार और रविवार को विशेष भीड़ उमड़ती है। आसपास का तालाब भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। यहां दर्शन के लिए भीलवाड़ा ही नहीं बल्कि चित्तौड़गढ़, अजमेर और राजसमंद समेत प्रदेश भर से भक्त पहुंचते हैं।

खेड़ा कूट माताजी मंदिर, जूनावास

भीलवाड़ा शहर के पुराना भीलवाड़ा क्षेत्र के जूनावास में स्थित खेड़ा कूट माताजी का मंदिर 500 से 600 साल पुराना है। यहां माता रानी के साथ उनकी बहनें भी विराजमान हैं। मान्यता है कि माता की अरदास से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
नवरात्रि के समय यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति को लकवे जैसी बीमारी हो जाए तो मंदिर की परिक्रमा करने से उसकी हालत में सुधार होने लगता है। यही कारण है कि यह मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है।

चामुंडा माता मंदिर, छोटी हरणी

भीलवाड़ा शहर के छोटी हरणी क्षेत्र में ऊंचे पहाड़ पर स्थित चामुंडा माता मंदिर अपनी अनोखी मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में मां चामुंडा आसपास के गांवों में चोरों के आने पर लोगों को पहले ही सचेत कर देती थीं। मां पहाड़ी से ही आवाज लगाकर गांववालों को सतर्क करती थीं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-पाठ और श्रृंगार किए जाते हैं, जिससे मंदिर का दृश्य और भी भव्य हो उठता है।

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भरका देवी मंदिर, गंगापुर

भीलवाड़ा जिले के गंगापुर से 10 किमी दूर भरक गांव की पहाड़ी पर स्थित भरका देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बड़ा केंद्र है। यहां तक पहुंचने के लिए पहले 763 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं। मंदिर समिति ने अब श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विश्राम गृह का निर्माण कराया है। मंदिर परिसर में एक साथ लगभग 3000 लोगों के बैठने की क्षमता है। खास बात यह है कि गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों के व्यापारी अपनी कंपनियों का नाम भरका देवी के नाम पर रखते हैं। यह देवी उनके ईष्ट मानी जाती हैं।

धनोप माता मंदिर, शाहपुरा

भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के धनोप गांव में स्थित धनोप माता का मंदिर 1100 साल पुराना है। मान्यता है कि यहां एक टीले की खुदाई से सात बहनें प्रकट हुई थीं, जिन्हें धनोप माता के रूप में पूजा जाता है।
संवत 1194 में राजा पृथ्वीराज चौहान और जयचंद ने यहां सभा मंडप और एकलिंगनाथ की स्थापना कराई थी, जिसका उल्लेख शिलालेखों में मिलता है। मंदिर में अष्टभुजा, अन्नपूर्णा, चामुंडा, महिषासुर मर्दिनी और कालिका रूप में माता की मूर्तियां विराजमान हैं।

बाण माता मंदिर, मांडलगढ़

भीलवाड़ा जिले के मांडलगढ़ क्षेत्र में पहाड़ी पर स्थित बाण माता का मंदिर भक्तों के बीच विशेष आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के दौरान यहां प्रतिदिन माता का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर की भव्यता और प्राकृतिक परिवेश इसे और भी आकर्षक बनाता है।

घाटा रानी माताजी मंदिर, जहाजपुर

भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर में स्थित घाटा रानी माताजी का मंदिर अपनी विशेष परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दौरान यह मंदिर सात दिन तक बंद रहता है और अष्टमी के दिन पट खोले जाते हैं। तभी भक्त माता के दर्शन कर पाते हैं।
मान्यता है कि दोनों नवरात्रि में घट स्थापना से पहले अमावस्या की संध्या आरती के साथ ही मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। अष्टमी को पट खुलने पर यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।

यह सभी शक्तिपीठ नवरात्रि के दौरान भीलवाड़ा को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से जीवंत बना देते हैं। हर मंदिर की अपनी अलग मान्यता और आस्था की कहानी है, जो भक्तों को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति कराती है।
 


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Content Editor

Priya Yadav

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