शारदीय नवरात्रि 2025: कन्या पूजन का महत्व और शुभ समय, पढ़ें पूरी जानकारी

punjabkesari.in Sunday, Sep 28, 2025 - 12:51 PM (IST)

नारी डेस्क: शारदीय नवरात्रि का पर्व इस बार 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2025 तक चलेगा। नवरात्रि का समापन महानवमी और दशहरे के साथ होगा। इस पावन पर्व में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन नौ कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उनका पूजन और भोजन कराने से जीवन की हर बाधा दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।

कन्या पूजन का महत्व

नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है। व्रतधारी लोग कन्याओं को भोजन कराकर ही अपना व्रत पूर्ण करते हैं। कन्याओं को मां दुर्गा का जीवंत रूप माना जाता है। मान्यता है कि भोजन कराने से जीवन में खुशहाली और धन-धान्य की वृद्धि होती है। खास बात यह है कि यदि कन्याएं 10 वर्ष से कम आयु की हों, तो जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती और जातक का जीवन उन्नतिशील बना रहता है।

अष्टमी और नवमी पर कन्या भोज

शास्त्रों में बताया गया है कि कन्या भोज अष्टमी और नवमी दोनों तिथियों पर किया जा सकता है। श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार इन दोनों में से किसी भी दिन या दोनों दिन कन्या पूजन करते हैं। 2 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन कराना शुभ माना गया है। भोजन से पहले कन्याओं के चरण धोना, उन्हें टीका लगाना और कलावा बांधना आवश्यक होता है।

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कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त

महाअष्टमी: 29 सितंबर शाम 4:31 बजे से 30 सितंबर शाम 6:06 बजे तक। महानवमी: 30 सितंबर शाम 6:06 बजे से 1 अक्टूबर रात 7:01 बजे तक। इस बार अष्टमी पर शोभन योग बन रहा है, जो रात 1:00 बजे तक रहेगा। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इसी दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र भी रहेगा, जो मां दुर्गा की उपासना के लिए विशेष फलदायी होगा।

देवी और शस्त्र पूजन

अष्टमी तिथि को मां दुर्गा की विशेष पूजा और देवी के शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। इस दिन हवन और विशेष आहुतियां देने से देवी प्रसन्न होती हैं। साथ ही नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर भोजन कराया जाता है। इसके बाद रात्रि में जागरण, भजन और कीर्तन का आयोजन भी शुभ माना गया है।

हर आयु की कन्या का महत्व

नीतिका शर्मा के अनुसार, हर उम्र की कन्या की पूजा का अलग महत्व है 2 साल (कौमारी): दुख और दरिद्रता का अंत। 3 साल (त्रिमूर्ति): धन-धान्य और परिवार का कल्याण। 4 साल (कल्याणी): सुख-समृद्धि की प्राप्ति। 5 साल (रोहिणी): रोग-मुक्ति। 6 साल (कालिका): विद्या और राजयोग। 7 साल (चंडिका): ऐश्वर्य। 8 साल (शांभवी): लोकप्रियता। 9 साल (दुर्गा): शत्रु विजय और कार्य सिद्धि। 10 साल (सुभद्रा): मनोरथ पूर्ति और सुख।

कन्या पूजन से मिलती है समस्याओं से मुक्ति

विवाह में देरी: 5 साल की कन्या को खाना खिलाकर श्रृंगार सामग्री भेंट करें। धन संबंधी समस्या: 4 साल की कन्या को खीर खिलाएं और पीले कपड़े दें। शत्रु बाधा/काम में रुकावट: 9 साल की तीन कन्याओं को भोजन व वस्त्र दें। पारिवारिक क्लेश: 3 और 10 साल की कन्याओं को मिठाई खिलाएं। बेरोजगारी: 6 साल की कन्या को छाता और कपड़े भेंट करें। सभी समस्याओं का निवारण: 5 से 10 वर्ष की कन्याओं को भोजन सामग्री, फल, दूध और श्रृंगार सामग्री दें।

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कन्या पूजन की सही विधि

कन्या पूजन के दिन कन्याओं का घर में स्वागत करना चाहिए। सबसे पहले उनके पैरों को स्वच्छ जल से धोकर आशीर्वाद लेना चाहिए। फिर उन्हें आसन पर बैठाकर माथे पर टीका और हाथ में कलावा बांधें। कन्याओं को भोजन कराने से पहले उसका पहला हिस्सा मां दुर्गा को अर्पित करें। मां दुर्गा को परंपरागत रूप से हलवा, चना और पूरी का भोग लगाया जाता है। भोजन के बाद कन्याओं को दक्षिणा और भेंट अवश्य दें। अंत में उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें और माता दुर्गा से क्षमा प्रार्थना करें।

पौराणिक महत्व

धर्मग्रंथों और पुराणों के अनुसार, कन्या पूजन के बिना नवरात्रि व्रत अधूरा माना जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को यह पूजन श्रेष्ठ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि नवमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया था। इसलिए यह दिन विजय, शक्ति और मंगलकारी माना जाता है।

इस प्रकार शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि देवी दुर्गा के आशीर्वाद पाने का अद्भुत साधन है। सही विधि से किया गया कन्या भोज हर संकट को दूर कर जीवन को सुख-समृद्धि और शांति से भर देता है।   

  


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Content Editor

Priya Yadav

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