नरक चतुर्दशी की रात क्यों जलाया जाता है यम का दीपक?
punjabkesari.in Tuesday, Oct 07, 2025 - 05:02 PM (IST)

नारी डेस्क : दीपोत्सव के दूसरे दिन, नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन यमराज की पूजा और यम दीपदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति यमराज के नाम का दीपक जलाता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
यम दीपक जलाने की परंपरा
नरक चतुर्दशी की रात को मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाया जाता है, जिसे यम का दीपक कहा जाता है। ऐसा करने से माना जाता है कि यमराज प्रसन्न होते हैं और घर के सदस्यों की रक्षा करते हैं। यह दीपक मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होता है, जो व्यक्ति की आत्मा को सही मार्ग दिखाने में सहायक माना गया है।
पुराणों में उल्लेख
स्कंद पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि इस दिन यमराज की आराधना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। एक कथा के अनुसार, एक बार राजा हेम के पुत्र की मृत्यु का समय निश्चित था, लेकिन उसकी पत्नी ने नरक चतुर्दशी की रात यम दीपक जलाकर यमराज की आराधना की। इससे यमराज ने दया दिखाते हुए उसके पति को जीवनदान दिया। तभी से इस दिन यम दीपक जलाने की परंपरा शुरू हुई।
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यम दीपक कब और कैसे जलाएं
समय: नरक चतुर्दशी की रात प्रदोष काल में, यानी सूर्यास्त के बाद दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
स्थान: घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में दीपक रखना चाहिए।
दीपक का प्रकार: मिट्टी का दीपक जिसमें सरसों का तेल और एक बाती हो, सबसे शुभ माना जाता है।
दीपक जलाने से पहले यमराज और यमुना देवी का नाम लेकर प्रार्थना करनी चाहिए।
धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, यम दीपक जलाने से मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और घर में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो दीपक जलाने से वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है, और सरसों के तेल से निकलने वाली सुगंध वातावरण को शुद्ध करती है।
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नरक चतुर्दशी का दिन नकारात्मक शक्तियों के नाश और सकारात्मक ऊर्जा के स्वागत का प्रतीक है। इस दिन यम दीपक जलाना केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन, सुरक्षा और शांति का प्रतीक भी है।