Mother's Day: मां तेरे जज्बे को सलाम, दिल को छू लेगी इन 8 मांओं की कहानी

punjabkesari.in Sunday, May 12, 2019 - 09:04 AM (IST)

मां, दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा है इसलिए कहा जाता है कि 'मां के आंचल में जन्नत' है। वो मां ही है, जो बिना कहे बच्चे की खुशी, भूख-प्यास और दुख जान लेती है। मां, बच्चे की खुशी के लिए अपने दुख को भी बयां नहीं होने देती। आज 'मदर्स डे' के मौके पर हम आपको ऐसी ही कुछ आम मांओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने जिंदगी के कड़े संघर्ष को झेलते हुए ना सिर्फ अपने बच्चों की परवरिश की बल्कि उन्हें बेहतर भविष्य भी दिया।

 

माला गुप्ता: चाट का ठेला लगाकर की 4 बेटियों की परवरिश

आजमगढ़ शहर के पांडेय बाजार निवासी माला गुप्ता पूरे समाज के लिए अनूठी मिसाल है। इन्होंने ठेले पर पानी-पूरी बेचकर न केवल अपने बच्चों की परवरिश की बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा दी। जब उनके पति की मौत हुई तो उनकी चारों बेटियां खुशबू, सुगंध, ममता व मोनी की जिम्मेदारी माला के कंधों पर आ गई। इसके बाद उन्होंने पति के ठेले को अपने रोजी का माध्यम बना लिया और बच्चियों की परवरिश की।

सिंधुताई: 1400 अनाथ बच्चों को लिया गोद

एक महिला के 3 या 4 बच्चे हो सकते हैं लेकिन सिंधुताई सपकाल एक या दो नहीं बल्कि 1400 बच्चों की मां है। दरअसल, इन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लिया, जिसके कारण उन्हें 'अनाथों की मां सिंधुताई' भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि उनका पति उन्हें गालिया देता और मरता-पिटता था। उन्हें 3 बेटे और 1 बेटी लेकिन उनके पति को बेटी नहीं चाहिए थी इसलिए जब वह गर्भवती थीं तो सिंधुताई को छोड़ दिया। मगर इसके बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अनाथ बच्चों को गोद ले लिया। इन्हें पालने के लिए पहले तो सिंधुताई ने भीख मांगी लेकिन अब स्पीच देकर पैसे जमा करती हैं। वह उन्हें पढ़ाने का साथ लड़कियों की शादी भी कराती हैं। उनकी बेटी भी एक अनाथालय चलाती है। इस काम के लिए सिंधुताई को 273 अवार्ड से नवाजा भी जा चुका है।

आरजे वीरा: सिंगल मदर बन कर रही हैं बेटी की परवरिश

लखनऊ की रहने वाली आरजे वीरा की आवाज जितनी मधुर है उतनी गही अच्छी वह सिंगल मदर भी है। उन्होंने शादी नहीं की लेकिन वह एक बेटी मां जरूर बन गई। दरअसल, उन्होंने 'चाइल्ड एडॉप्शन सेंटर' से एक लड़की को गोद लिया है। बच्ची नार्मल नहीं था इसलिए उसके माता-पिता ने उसे सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया। हालांकि वह बच्ची आज बिल्कुल स्वस्थ और नार्मल है, जोकि वीरा की मेहनत और ममता का नतीजा है। वीरा बताती हैं कि उन्होंने इसलिए शादी नहीं की क्योंकि वो दहेज के सख्त खिलाफ हैं।

जान पर बनी तो मां ने 'किडनी' देकर दी नई जिंदगी

मां का स्नेह अपने बच्चों से इस कदर होता है कि वो उनके लिए कुछ भी कर गुजरने को हमेशा ही तैयार रहती है। ऐसा ही मामला है मुरैना की रहने वाली ममता का, जिन्होंने अपनी किडनी देकर बेटी को नई जिंदगी दी। दरअसल, ममता राठौर के बेटे नरसिंह की दोनों किडनी बचपन में ही खराब हो गई थी, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लान करवाने की सलाह दी। ऐसे में अपनी परवाह ना करते हुए ममता ने अपने बेटे को किडनी देकर उसकी जान बचाई।

वहीं दूसरा मामला है रतलाम की रहने वाली माला अहिरे का, जिन्होंने किडनी देकर अपने जवान बेटे को नया जीवन दिया। दरअसल, माला के बेटे योगेश की किडनी खराब हो गई थी। इसके बाद उनका डायलिसिस चलता रहा लेकिन स्वास्थ्य में सुधार ना आने के कारण डॉक्टरों ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लान करवाने को कहा। इसके बाद मां माला ने बेटे को किडनी देकर उसे नई जिंदगी दी। 

देवी कौर: सड़कों पर कूड़ा बीनकर बेटे को बनाया डॉक्टर

जिंदगी में सामने आने वाली मुश्किलों से हार तो कोई भी मान लेता हैं लेकिन इंदौर के देवी कौर ने हर मुश्किल का डटकर सामना किया। कचरा बीनकर परिवार का पेट पालने वाला पति जब मिर्गी का शिकार हुआ तो देवी अपने बच्चों को पति की जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने खुद कचरा बीनने का काम शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश की। पूूरे परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठाकर उन्होंने राहुल और दो अन्य बेटे व बेटी को किसी बात की कमी का अहसास नहीं होने दिया। यह उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनका बेटा डॉक्टर बन गया है।

फरीदा: दोस्त बनकर की बेटी की परवरिश

बारडोली की सोनिया पटेल को आज लोग मेरी कॉम कहकर बुलाते हैं तो इसके पीछे उनका मां फरीदा डी बेसाणियां का ही हाथ है। वह सिंल मदर है लेकिन उन्होंने दोस्त बनकर अपनी बेटी की परवरिश की है। टी को पढ़ाई और बॉक्सिंग कराने के लिए फरीदा ने ब्यूटी पार्लर का काम शुरू किया। एक ऐसा समय भी आया जब सोनिया डिप्रेशन में चली गई लेकिन मां फरीदा ने उनका साथ नहीं छोड़ा और डिप्रेशन से निकलने में सोनिया की मदद की। सोनिया आज सिंगिंग, मॉडलिंग और बाइक रेसिंग करने में माहिर बन गई।

मीरा देवी: मेहनत-मजदूरी करके बेटियों को बनाया अवसर

राजस्थान के जयपुर जिले के सारंग का बास गांव में रहनेवाली 55 वर्षीय मीरा देवी नाम की एक विधवा महिला ने मेहनत-मजदूरी करके बेटियों को अवसर बनाकर पूरे समाज में मिसाल कायम की है। पति की मौत के बाद मीरा और उनके बेटे ने दिन-रात खेत में मेहनत मजदूरी की और 3 लड़कियों की पढ़ाई में गरीबी को आड़े नहीं आने दिया। यह उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनकी 3 बेटियां अवसर बन गई हैं।

मंजू यादव: कुली बन की बच्चों की परवरिश

पहली महिला कुली मंजू यादव जयपुर के रेलवे स्टेशन पर काम करती हैं। उनके तीन बच्चे हैं और पति को खोने के बाद उनकी पूरी जिम्मेदारी मंजू पर आ गई। उनके पति भी कूली थे और परिवार का गुजारा करने के लिए उन्होंने भी यही काम करने की ठानी। घर की चारदीवारी से निकलते हुए मंजू ने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए कुली का काम शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि उनकी 1 बेटी डॉक्टर तो बाकी के दो बच्चे पॉयलट बनना चाहते हैं।

किसी ने सच ही कहा है कि मां अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती हैं, जिसकी जीती-जाती मिसाल है ये माएं। मां के इस हौसले को हम ही नहीं बल्कि पूरा देश सलाम करता है।

Content Writer

Anjali Rajput

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