जब ग़ुस्सा दरवाज़ा खटखटाए तो खुद को चुनिए: एक दोस्त की परेशानी और मेरी ज़िंदगी में आया बदलाव
punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 03:27 PM (IST)
नारी डेस्क: कई बार जीवन की सबसे गहरी सीख हमें किसी शांत पल में नहीं, बल्कि एक बिल्कुल साधारण सी शाम में मिलती है जब कोई फ़ोन करता है, और उसकी आवाज़ में ऐसा कंपन होता है जो आपके भीतर कुछ हिला देता है। एक ऐसी ही शाम मेरा फ़ोन बजा। कॉल एक ऐसे सहकर्मी की थी, जिसे हम सब उसकी शांत प्रवृत्ति, उसकी संतुलित सोच और हर स्थिति को मुस्कुराते हुए संभाल लेने की क्षमता के लिए बेहद सराहते थे। लेकिन उस दिन… वह बिल्कुल अलग व्यक्ति की तरह लग रहा था। उसकी आवाज़ चिड़चिड़ी, थकी हुई और निराश थी।
“अब मुझसे नहीं होता,” उसने लगभग टूटते हुए कहा। “स्टाफ की छोटी-छोटी गलतियों से इतना ग़ुस्सा आता है कि मैं खुद को रोक नहीं पाता। मैं बदल गया हूं… और मुझे यह पसंद नहीं।”
मैंने चुपचाप सुना। यह वही व्यक्ति था जो कभी ग़ुस्से को छूता भी नहीं था। आज वह खुद से ही लड़ रहा था। उसकी बातों ने मुझे एक दूसरी दोस्त की याद दिला दी वह भी यही शिकायत लेकर आई थी। रोज़ का चिड़चिड़ापन, अचानक भड़क उठना, छोटी-सी बात पर नियंत्रण खो देना… आज यह समस्या कितने लोगों की ज़िंदगी में फैल चुकी है, यह सोचकर दिल भारी हो गया।
और फिर मुझे एहसास हुआ मैं खुद भी कभी इसी दौर से गुज़र चुकी हूं।
वह छोटा-सा पल जिसने मुझे बदल दिया
कुछ दिन पहले ही, मेरा एक स्टाफ़ गलत ड्राफ्ट लेकर आ गया। उसने आधी बात समझी, आधी मिस कर दी। पहले की मैं होती, तो शायद आवाज़ ऊंची हो जाती, ग़ुस्सा हावी हो जाता, और यह सब “क्योंकि गलती उसकी थी” कहकर खुद को सही भी ठहरा लेती।
लेकिन उस दिन… भीतर कुछ रुक गया। मैंने बस शांत स्वर में कहा—“नहीं, इसे ऐसे नहीं, इस तरह बनाइए।”
न कोई डांट,
न कोई ताना,
न कोई irritation.
और सबसे अद्भुत बात—पूरा माहौल बदल गया। वह आराम से वापस गया और उसने काम सुधारकर लाया। और मैं पूरे समय शांत रही।
तभी एहसास हुआ कि मेरे पास दो रास्ते थे
1. ग़ुस्सा कर दूं, उसका दिन भी खराब कर दूं और अपना भी।
2. शांत रहकर उसे दिशा दूं, और अपनी शांति सुरक्षित रखूं।
मैंने दूसरा रास्ता चुना।
कोई प्रयास नहीं।
बस एक सहज प्रतिक्रिया।
और तब समझ में आया ग़ुस्सा सामने वाले को कितना चोट पहुँचाता है, इससे ज़्यादा ज़रूरी यह है कि वह हमें भीतर से कितना तोड़ देता है।
शो बताते हैं—ग़ुस्सा हमारे भीतर क्या करता है
ऐसे ही क्षणों में ओशो की बातें याद आती हैं। उनकी स्पष्टता हमेशा मन को दर्पण दिखाती है।
1. ग़ुस्सा हमारी ऊर्जा जला देता है
यह ऐसा है जैसे आप ज़हर पिएं और उम्मीद करें कि सामने वाला मर जाए। ग़ुस्सा सबसे पहले हमारी शांति को नष्ट करता है। सांसें हल्की हो जाती हैं, सिर गरम हो जाता है, मन भागने लगता है। एक पल का ग़ुस्सा पूरा दिन खा जाता है।
2. ग़ुस्सा हमारी बुद्धि को ढक देता है
ग़ुस्से में हम दिखते तो हैं, पर सोचते नहीं। निर्णय नहीं लेते बस फटते हैं। बुद्धि उस समय हमसे दूर चली जाती है।
3. ग़ुस्सा रिश्तों में दूरी ला देता है
ग़ुस्से में कही बातें हमेशा भारी होती हैं। काम लोग भूल जाते हैं, लेकिन चोट नहीं भूलते।
4. ग़ुस्सा हमें व्यक्ति नहीं, प्रतिक्रिया बना देता है
ओशो कहते हैं “जब तुम ग़ुस्सा होते हो, तो कोई और तुम्हारा बटन दबा रहा होता है।” इसका मतलब, हम आज़ाद नहीं होते। उत्तेजना हमें नियंत्रित करती है।
5. ग़ुस्सा प्रेम, आनंद और सृजनात्मकता को रोक देता है
जब भीतर तूफ़ान हो, तो भीतर सूरज कैसे चमके? ग़ुस्सा मन को बंद कर देता है और बंद मन में कुछ भी सुंदर जन्म नहीं लेता।
सीख — हल बनो, तूफ़ान नहीं
उस शाम मुझे यह समझ आया कि
अपनी शांति की सुरक्षा हमारी ही ज़िम्मेदारी है।
न स्टाफ़ की,
न स्थिति की,
न दुनिया की।
हम चाहे तो एक पल में माहौल बिगाड़ सकते हैं।
और चाहे तो एक पल में स्वयं को बचा सकते हैं।
शांत रहना कमजोरी नहीं है।
यह सबसे गहरी शक्ति है—जो आपकी ऊर्जा बचाती है, आपके मन को स्थिर रखती है, और आपके आस-पास की दुनिया को हल्का बना देती है।
मैंने उस दिन यह महसूस किया कि मैं सिर्फ़ सामने वाले के लिए समाधान नहीं बनी
मैं अपने ही भीतर के तूफ़ान के लिए समाधान बन गई।
अंत में
ग़ुस्सा आएगा। परिस्थितियां चुभेंगी। लोग निराश करेंगे। काम थकाएगा।
लेकिन हर बार हमारे पास दो रास्ते रहेंगे प्रतिक्रिया देकर खुद को खो देना… या जागरूकता से जवाब देकर खुद को बचा लेना। हर बार वह रास्ता चुनिए जो आपके भीतर की शांति को बचा सके। क्योंकि दुनिया आपके शांत स्वभाव से लाभ उठाएगी लेकिन आपकी आत्मा उस पर टिकी हुई है।
लेखिका - तनु जैन

