सीता माता के पिंडदान की कहानी, ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध करने के बाद क्यों दिया था श्राप?
punjabkesari.in Saturday, Sep 13, 2025 - 07:03 PM (IST)

नारी डेस्क: हिंदू धर्म में परंपरागत रूप से श्राद्ध और पिंडदान का अधिकार पुरुषों को दिया गया है, लेकिन शास्त्रों और पुराणों में ऐसे कई प्रसंग मिलते हैं जहां महिलाओं ने भी श्राद्ध और पिंडदान किया है। गरुड़ पुराण के अनुसार जिस व्यक्ति को पुत्र नहीं है, उनकी बेटी भी पिंडदान और तर्पण कर सकती है। वाल्मिकी रामायण में सीता माता द्वारा ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म करने का वर्णन है ।
गया धाम में हुआ राजा दशरथ का पिंडदान
शास्त्रों के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के वक़्त श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहां ब्राह्मण द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। ब्राह्मण देव ने माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का उत्तम समय निकलता जा रहा है। यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई, तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी।

राजा दशरथ ने स्वीकार कर लिया था पिंडदान
माता ने फल्गू नदी के साथ साथ वहां उपस्थित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया। इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार किया। माता सीता को इस बात से प्रफुल्लित हुई कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है, पर वह यह भी जानती थी कि प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है।
भगवान राम को हुई हैरानी
थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है। तब सीता जी ने कहा कि वहां उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा, तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया।
माता सीता ने दिया था श्राप
सिर्फ वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया। पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया। सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन पांचों में देखा जा सकता है। जहाँ इन पांचों को श्राप मिला वहीं सच बोलने पर माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी

श्राद्ध कर्म का असली महत्व
धर्मशास्त्रों के अनुसार यदि घर में कोई पुरुष न हो, या पुत्र अनुपस्थित हो, तो स्त्री भी पिंडदान और तर्पण कर सकती है। कुछ जगहों पर यह भी मान्यता है कि विधवा स्त्रियां विशेष परिस्थितियों में श्राद्ध कर सकती हैं। कई धार्मिक विद्वान मानते हैं कि श्राद्ध का मूल उद्देश्य पितरों को तृप्त करना और कृतज्ञता प्रकट करना है। यह सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं है। महिला भी उतनी ही श्रद्धा और अधिकार से श्राद्ध कर्म कर सकती है जितना पुरुष। श्राद्ध कर्म का असली महत्व भावना और श्रद्धा में है, न कि केवल लिंग में। माता सीता का उदाहरण महिलाओं के अधिकार और उनकी धार्मिक जिम्मेदारी दोनों को ही दर्शाता है।