महाकुंभ में पीरियड्स के दौरान महिला नागा साधु कैसे करती हैं स्नान? जानें उनका खास तरीका

punjabkesari.in Wednesday, Jan 15, 2025 - 04:18 PM (IST)

 नारी डेस्क: महिला नागा साधु के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन क्या आप उनके जीवन के उन पहलुओं के बारे में जानते हैं जो बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय होते हैं? महाकुंभ के दौरान महिला नागा साधु के स्नान करने का तरीका भी एक दिलचस्प विषय है, और आज हम आपको बताएंगे कि वे पीरियड्स के दौरान स्नान कैसे करती हैं और इस दौरान उनके व्यवहार में क्या बदलाव आता है।

महिला नागा साधु और उनका स्नान

प्रयागराज में हर साल महाकुंभ मेले का आयोजन होता है, जहां करोड़ों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाने आते हैं। इस दौरान पुरुष नागा साधु सबसे पहले स्नान करते हैं और फिर महिला साध्वी स्नान करती हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब महिला साधु को मासिक धर्म होता है, तो वे स्नान कैसे करती हैं?

महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान गंगा में डुबकी नहीं लगाती हैं, बल्कि वे गंगा जल के छींटे अपने ऊपर छिड़कती हैं। इसे माना जाता है कि महिला नागा साधु ने गंगा स्नान कर लिया है। इससे उनका धार्मिक कार्य पूरा हो जाता है। महिला नागा साधुओं को हर माह महाकुंभ के स्नान से जुड़े नियमों का पालन करना पड़ता है, जो कि अन्य साधुओं से थोड़ा अलग होता है।

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महिला नागा साधु के अन्य विशेष पहलू

महिला नागा साधु पुरुष साधुओं से थोड़ी अलग होती हैं। वे दिगंबर नहीं रहतीं, यानी उनके पास वस्त्र होते हैं। हालांकि, महिला नागा साधु केवल केसरिया रंग के वस्त्र पहनती हैं। ये वस्त्र बिना सिले होते हैं, जिससे पीरियड्स के दौरान कोई समस्या नहीं होती है।

महिला नागा साधु बनने से पहले इनका जीवन बेहद कठिन होता है। उन्हें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। यह प्रक्रिया और जीवन का तरीका उन पर गुरु के विश्वास और समर्पण के बाद तय होता है। वे अपनी पूरी ज़िंदगी ईश्वर को समर्पित करती हैं और नागा साधु बनने के बाद वे कठिन साधना करती हैं।

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महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया

महिला नागा साधु बनने से पहले उनके जीवन को बहुत बारीकी से परखा जाता है। उन्हें यह साबित करना होता है कि वे ईश्वर के प्रति समर्पित हैं और कठिन साधना करने के लिए तैयार हैं। इसके बाद ही वे गुरु से स्वीकृति प्राप्त करती हैं। महिला नागा साधु बनने के बाद उन्हें अपना पिंडदान भी करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है।

महिला नागा साधु को हर दिन भगवान शिव का जाप करना होता है और वे भगवान दत्तात्रेय की पूजा भी करती हैं। वे ज्यादातर कंदमूल, फल, जड़ी-बूटी और पत्तियां खाती हैं, जो उनकी साधना के लिए आवश्यक होती हैं।

महिला नागा साधु की पहचान और इतिहास

महिला नागा साधु की पहचान 2013 में कुंभ मेले के दौरान एक अलग अखाड़े के रूप में मिली थी। इस अखाड़े की नेता दिव्या गिरी थीं, जिन्होंने पहले एक मेडिकल टैक्नीशियन के रूप में काम किया था। बाद में उन्होंने साधु बनने का संकल्प लिया और जूना संन्यासिन अखाड़ा के साथ जुड़ीं।

महिला नागा साधु की पूजा पद्धतियां भगवान शिव और दत्तात्रेय के साथ जुड़ी होती हैं। उनकी पूजा में रिचुअल्स और मंत्र जाप बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, और वे अनुशासन के साथ इनका पालन करती हैं।

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कौन हैं माता अनुसूइया?

महिला नागा साधु भगवान दत्तात्रेय की मां अनुसूइया की पूजा करती हैं। माता अनुसूइया अपने पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध थीं। ब्रह्मा, महेश और विष्णु की पतिव्रता पत्नियों से कहीं अधिक उनका स्थान सम्मानजनक था। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उन्हें परीक्षा देने की योजना बनाई तो परिणाम यह हुआ कि माता अनुसूइया को देवी के दर्जे का सम्मान मिला। महिला नागा साधु की पूजा में माता अनुसूइया का भी महत्वपूर्ण स्थान है।

महिला नागा साधु के जीवन और उनकी पूजा विधियों में एक गहरी धार्मिक परंपरा और अनुशासन छुपा होता है। उनकी साधना और जीवन की यात्रा न केवल आध्यात्मिक होती है, बल्कि यह महिलाओं की शक्ति और समर्पण को भी दर्शाती है।
 
 

 

 


 


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Content Editor

Priya Yadav

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