मां दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी ने की थी कठोर तपस्या, जानिए उनकी पूजा की विधि
punjabkesari.in Monday, Sep 26, 2022 - 12:32 PM (IST)
मां के शारदीय नवरात्रि आज से प्रारंभ हो चुके हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं। मां के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कममंडल होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रुप में भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। मां ने पार्वती रुप में पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लिया था। तो चलिए आपको बताते हैं कि मां की पूजा कैसे करें और उन्हें प्रसाद के रुप में आप क्या अर्पित कर सकते हैं...
इसलिए पड़ा मां ब्रह्मचारिणी का नाम
हजारों वर्षों तक मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसलिए मां का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। मां को तपश्चरिणी भी कहते हैं। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी के रुप में माना जाता है। निरहार रहकर मां पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसलिए दूसरे नवरात्रि में उनकी पूजा की जाती है। पार्वती के रुप में भगवान शिव को पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी ने 1000 वर्षों तक सिर्फ वृक्ष से गिरे सूखे पत्ते खाकर कठिन तपस्या की थी।
मां की पूजा करने से प्राप्त होती हैं सिद्धियां
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से भक्तों को मां की अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार जैसी वृद्धि व्यक्ति को प्राप्त होती है। मां की कृपा से भक्तों को सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन की कई सारी परेशानियाां भी खत्म होती हैं।
पूजा की विधि
मां की पूजा करने के लिए सुबह उठकर नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति पूजा के स्थान पर रखें। हाथों में फूल लेकर मां का ध्यान करें। इसके बाद मां के मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप करने के बाद मूर्ति पर फूल चढ़ाएं। मां को चीनी और मिश्री बहुत ही पसंद है। आप उन्हें चीनी और मिश्री से बने पंचामृत का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा मां को दूध से बनी चीजें भी बहुत ही पसंद है। आप उन्हें दूध से बनी चीजों का भी भोग लगा सकते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
मां ने पूर्वजन्म में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था। इसके बाद भगवान नारदजी के उपदेश से उन्होंने भगवान शंकर जी को पति के रुप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्ता की थी। कठिन तपस्या के कारण उन्हें तपश्चारिणी भी कहते हैं। मां ने एक हजार वर्ष तक सिर्फ फूल और फल खाकर अपना जीवन बिताया था और सौ सालों तक जमीन पर रहकर जीवन व्यतीत किया था। मां ने कठिन तपस्या के साथ-साथ खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भी घोर कष्ट सहे थे। तीन हजार वर्ष तक मां ने टूटे बिल्व पत्र खाकर शंकर भगवान की आराधना की थी। कुछ समय के बाद उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। हजारों वर्षों तक निर्जल और बिना खाए रहकर तपस्या की। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण मां को अपर्णा भी कहते हैं। कठिन तपस्या के कारण मां का शरीर एकदम कमजोर हो गया था। कई देवतागणों, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या का अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया था। मां की तपस्या को सराहते हुए उन्होंने कहा हे देवी आज तक किसी ने भी इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की है। यह आप ही कर पाई हैं। आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होगी। भगवान शिव आपको जरुर प्पार्त होंगे। आप अब तपस्या छोड़कर घर चली जाएं। जल्दी ही आपके पिता पर्वतराज आपको लेने आ रहे हैं। मां की सेवा करने से भक्तों की सिद्धि की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें मां को खुश
मां ब्रह्मचारिणी को हरा रंग बहुत ही प्रिय है। यह रंग नवीकरण, प्रकृति और ऊर्जा का प्रति होता है। आप इस रंग का प्रयोग मां की पूजा में कर सकते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का स्त्रोत पाठ
तपश्चरिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्। ब्रह्मरुपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्। शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी। शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
इस मंत्र के साथ मां की आराधना करें। दधानां करपद्याभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा। मंत्र करने के बाद मां की आरती करके उन्हें प्रसाद का भोग लगाएं।