प्रेग्नेंसी जारी रखनी है या नहीं, ये अधिकार सिर्फ मां का..अबॉर्शन को लेकर दिल्ली HC का बड़ा फैसला
punjabkesari.in Wednesday, Jan 25, 2023 - 06:24 PM (IST)
एक गर्भवती महिला के अबॉर्शन का अधिकार दुनिया भर में बहस का विषय रहा है। पिछले साल दिल्ली उच्च न्यायालय ने 33 सप्ताह की गर्भवती महिला को चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति देजते हुए बड़ा फैसला सुनाया था जिसका अब वकीलों ने भी समर्थन किया है। गर्भावस्था के अंतिम महीनों में चिकित्सकीय देखरेख में गर्भ गिराने की अनुमति देने वाले न्यायिक आदेश का समर्थन करने वाले वकीलों ने कहा है कि इस तरह के मामलों में अदालतों के निर्देश महिलाओं के जीवन के मौलिक अधिकारों और गरिमा के साथ जीने के हक को मान्यता देते हैं।
चिकित्सकीय देखरेख में किया जाएगा अबॉर्शन
अधिवक्ता अमित मिश्रा ने कहा कि यदि भ्रूण की स्थिति असामान्य है या माता के आसपास का माहौल ऐसा है कि अजन्मा शिशु जन्म के बाद गरिमापूर्ण जीवन नहीं जी सकता है, तो अदालतें गर्भ गिराने की अनुमति देने में सही हैं। गर्भपात की मांग कर रही कई महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे मिश्रा ने कहा कि प्रत्येक मामले को उसमें मौजूद परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर देखा जाना चाहिए, हालांकि भारतीय कानून माता के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। उन्होंने कहा, ‘‘चिकित्सकीय देखरेख में गर्भपात (एमटीपी) की अनुमति सभी महिलाओं को आम तौर पर 20 हफ्ते तक के भ्रूण के लिए दी जाती है।
महिलाओं को है फैसला लेने का अधिकार
भारत में कोई भी महिला ऐसा कर सकती है। कानून में, एक विशेष श्रेणी है, जहां एमटीपी अधिनियम में बलात्कार पीड़िता सहित सात श्रेणियों की महिलाओं को 24 हफ्ते तक का गर्भ गिराने की अनुमति देता है...अब अविवाहित महिलाओं को भी इसके दायरे में ला दिया गया है।'' बंबई उच्च न्यायालय ने एक विवाहित महिला को 23 जनवरी को अपना 32 हफ्तों का गर्भ गिराने की अनुमति दी थी क्योंकि भ्रूण में कई विकृतियां पाई गई थीं। उच्च न्यायालय ने कहा था कि एक महिला को यह तय करने का अधिकार है कि वह अपनी गर्भावस्था जारी रखे या नहीं।
गर्भ गिराने का फैसला केवल माता का: कोर्ट
अदालत ने कहा कि गर्भ गिराने का फैसला केवल माता का ही होगा। कुछ दिन पहले, उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ नीत पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को इंजीनियरिंग की एक छात्रा के सुरक्षित गर्भपात की संभावना तलाशने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिया हिंगोरानी ने कहा कि अदालतें गर्भवती महिला की भलाई और उनकी मानसिक एवं शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए गर्भपात के अधिकार पर आदेश जारी कर रही हैं।
हर महिला को गरिमा के साथ जीने का अधिकार: कोर्ट
अदालतें इसकी प्रेरणा सीधे संविधान से ले रही हैं, जो जीवन का अधिकार और गरिमा के साथ जीने की गारंटी प्रदान करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘बच्चे के लिए भी समस्या हो सकती है, खासकर बलात्कार के मामलों में... बच्चे माता की तरह ही सामाजिक कलंक का सामना कर सकते हैं...।'' मिश्रा ने कहा कि एमटीपी अधिनियम खुद ही किसी भी चरण में गर्भ गिराने का प्रावधान करता है, बशर्ते कि माता की जान को खतरा हो या भ्रूण में गंभीर विकृति पाई जाए।