किन महिलाओं को नहीं रखना चाहिए छठ पूजा का व्रत? जानिए जरूरी नियम और सावधानियां
punjabkesari.in Tuesday, Oct 21, 2025 - 05:11 PM (IST)
 
            
            नारी डेस्क : छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख और पवित्र त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी मइया की उपासना के लिए मनाया जाता है। यह व्रत न सिर्फ आस्था से जुड़ा होता है बल्कि इसमें कठोर नियम और अनुशासन भी होते हैं। महिलाओं के लिए यह व्रत बेहद पवित्र माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में महिलाओं को छठ व्रत नहीं रखना चाहिए। आइए जानते हैं कौन-सी महिलाएं इस व्रत से दूर रहें और क्यों।
गर्भवती महिलाएं (Pregnant Women)
छठ पूजा का व्रत अत्यंत कठोर और अनुशासनपूर्ण माना जाता है, जिसमें 36 घंटे तक बिना भोजन और पानी के उपवास रखा जाता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत कठिन और जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इस दौरान शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे न केवल मां की सेहत प्रभावित होती है, बल्कि बच्चे के विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। लंबे समय तक भूखे और प्यासे रहने से कमजोरी, चक्कर आना या बेहोशी जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसलिए डॉक्टरों की सलाह के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को यह व्रत नहीं रखना चाहिए और अपनी श्रद्धा को केवल पूजा या सूर्य अर्घ्य के माध्यम से व्यक्त करना चाहिए।

स्तनपान कराने वाली महिलाएं (Breastfeeding Mothers)
जो महिलाएं हाल ही में मां बनी हैं और अपने शिशु को दूध पिला रही हैं, उन्हें छठ का निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए। इस व्रत के दौरान पानी तक न पीने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिससे दूध की मात्रा घट सकती है और बच्चे को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता। साथ ही, मां की कमजोरी का असर सीधे बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसे समय में महिला के शरीर को पर्याप्त पोषण और विश्राम की आवश्यकता होती है, इसलिए वे व्रत रखने के बजाय केवल पूजा, अर्घ्य और सूर्य देव की आराधना कर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सकती हैं।
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बीमार या कमजोर महिलाएं (Women with Health Issues)
यदि किसी महिला को ब्लड प्रेशर, शुगर, थायरॉइड, एनीमिया या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या की शिकायत है, तो उसे छठ का कठोर निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए। लंबे समय तक भूखे और प्यासे रहने से शुगर तथा बीपी का स्तर असंतुलित हो सकता है, जिससे चक्कर आना, थकावट या बेहोशी जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए बीमार या कमजोर महिलाएं केवल स्नान, ध्यान और सूर्य देव को अर्घ्य देकर श्रद्धा के साथ पूजा कर सकती हैं।

मासिक धर्म (पीरियड्स) में महिलाएं
छठ पूजा में शुद्धता और पवित्रता का विशेष महत्व होता है, इसलिए जिन महिलाओं को मासिक धर्म (पीरियड्स) चल रहे हों, उन्हें इस अवधि में व्रत या अर्घ्य देने से परहेज करना चाहिए। इस समय शरीर स्वाभाविक रूप से कमजोर रहता है, और निर्जला उपवास से थकावट, दर्द और अस्वस्थता बढ़ सकती है। साथ ही, पूजा के दौरान लंबे समय तक खड़े रहना या जल में अर्घ्य देना शरीर के लिए कठिन हो सकता है। इसलिए ऐसी महिलाएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए केवल मन से प्रार्थना करें और अगले वर्ष पूरी श्रद्धा के साथ छठ व्रत रख सकती हैं।
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मानसिक रूप से अस्वस्थ या तनावग्रस्त महिलाएं
छठ व्रत एक अत्यंत अनुशासन और मानसिक एकाग्रता से जुड़ा पर्व है। इसमें उपवास, स्नान, अर्घ्य और निरंतर पूजा जैसे नियमों का पालन करने के लिए धैर्य और मानसिक स्थिरता की आवश्यकता होती है। इसलिए जिन महिलाओं को तनाव, अवसाद या मानसिक अस्थिरता की समस्या है, उन्हें यह कठोर निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए। लंबे समय तक भूखे-प्यासे रहने से मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन और बेचैनी बढ़ सकती है, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ सकती है। ऐसी महिलाएं केवल पूजा, ध्यान या सूर्य देव की आराधना के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सकती हैं, क्योंकि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल उपवास नहीं, बल्कि मन की पवित्रता भी है।

छठ व्रत का महत्व केवल उपवास रखने में नहीं है, बल्कि सच्चे मन से सूर्य देव और छठी मइया की भक्ति में है। इसलिए यदि किसी महिला की शारीरिक या मानसिक स्थिति व्रत रखने की अनुमति नहीं देती, तो उसे बिना अपराधबोध के केवल पूजा-पाठ या आरती में भाग लेना चाहिए।
 


 
                     
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                            