कोल्हापुरी चप्पल: न फटती है न टूटती है, महाराष्ट्र की धरोहर से लेकर ग्लोबल फैशन तक का सफर
punjabkesari.in Tuesday, Jul 08, 2025 - 05:29 PM (IST)

नारी डेस्क: भारत की पारंपरिक हस्तकला और जूतों में से एक सबसे लोकप्रिय और पहचान वाली कोल्हापुरी चप्पल आज पूरी दुनिया में अपनी खास जगह बना चुकी है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर की देसी और ट्रेडिशनल कोल्हापुरी चप्पल को अब न केवल देश में बल्कि विदेशी सेलेब्रिटी और फैशन प्रेमी भी पहनकर अपना स्टाइल फ्लॉन्ट कर रहे हैं। करीना कपूर से लेकर नीना गुप्ता तक ये चप्पल पहनकर अपनी पसंद जाहिर कर चुकी हैं। लेकिन हाल ही में इस पारंपरिक चप्पल को लेकर एक बड़ा विवाद भी उठा है, जो भारतीय कारीगरों के अधिकार और पहचान से जुड़ा हुआ है।
कोल्हापुरी चप्पल की लोकप्रियता और सेलेब्रिटी फैशन
करीना कपूर ने सोशल मीडिया पर अपनी कोल्हापुरी चप्पल की फोटो शेयर करते हुए मजाक में लिखा, “सॉरी नॉट प्राडा बट माई ओजी कोल्हापुरी।” वहीं, अभिनेत्री नीना गुप्ता ने भी कहा कि "असली तो असली होता है।" ये दोनों ही स्टार्स ने स्पष्ट किया कि वे पारंपरिक और असली कोल्हापुरी चप्पल को ही पसंद करती हैं, जो सिर्फ फैशन का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
प्राडा का विवादित कदम: कोल्हापुरी चप्पल की नकल
इंटरनेशनल ब्रांड प्राडा ने हाल ही में अपनी नई कलेक्शन में कोल्हापुरी चप्पलों के डिजाइन्स को महंगे दामों पर शामिल किया। यह चप्पलें 1 लाख रुपये से भी अधिक की कीमत पर बिक रही हैं। इस मामले ने सोशल मीडिया पर भारी विवाद छेड़ दिया क्योंकि प्राडा ने न तो कारीगरों का कोई उल्लेख किया और न ही इस ट्रेडिशनल डिजाइन को क्रेडिट दिया।
लोगों ने प्राडा के इस कदम को सांस्कृतिक चोरी (Cultural Theft) बताते हुए #KolhapuriCopyByPrada और #CulturalTheft जैसे हैशटैग के साथ विरोध किया। इस विवाद के बाद प्राडा ने सफाई दी कि उनकी चप्पलें ‘कोल्हापुरी डिजाइन्स से इंस्पायर्ड’ हैं, लेकिन इससे कारीगरों और उनके अधिकारों की अनदेखी नहीं हुई।
कारीगरों की मांग: सम्मान और मुआवजा
कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले कारीगर दशकों से मेहनत और हुनर के दम पर यह हस्तशिल्प सम्भाल रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनके इस काम को सही सम्मान मिले और उनकी कड़ी मेहनत की कीमत उन्हें भी मिले। अब मांग उठ रही है कि प्राडा जैसे ब्रांड्स कारीगरों को उचित मुआवजा और सम्मान दें ताकि भारतीय हस्तशिल्प को बढ़ावा मिले और वह सुरक्षित रह सके।
कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास
कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं-13वीं सदी में हुई थी। कहा जाता है कि उस दौर में राजा के दरबार में यह प्रतिस्पर्धा होती थी कि कौन सबसे सुंदर, टिकाऊ और आरामदायक चप्पल बना सकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी इस चप्पल को बनाने वाले कारीगरों की तारीफ की थी।
1920 में सऊदागर परिवार ने सबसे पहले इस चप्पल को बड़े पैमाने पर बनाना शुरू किया, जिसे उस समय 'कानवाली' कहा जाता था। बाद में मुंबई के रिटेलर्स के ज़रिए इसकी बिक्री बढ़ी और पूरे महाराष्ट्र और देश में ‘कोल्हापुरी चप्पल’ के नाम से यह प्रसिद्ध हुई।
कानूनी पहचान और वैश्विक मान्यता
साल 2009 में कोल्हापुरी चप्पल को जीआई (Geographical Indication) टैग मिला, जिससे इस चप्पल को कानूनी सुरक्षा और वैश्विक मान्यता मिली। जीआई टैग के बाद यह साबित हो गया कि यह चप्पल सिर्फ एक फैशन आइटम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत है जो कोल्हापुर क्षेत्र से जुड़ी है।
कोल्हापुरी चप्पल की खासियत
ये चप्पल हाथ से बनाई जाती हैं, जो गर्म और सूखे मौसम के लिए बिल्कुल उपयुक्त होती हैं। हल्की और टिकाऊ होने के कारण ये पहनने में आरामदायक होती हैं। इनके डिज़ाइन में पारंपरिक भारतीय कला और कारीगरी झलकती है, जो इसे विशिष्ट बनाती है।
कोल्हापुरी चप्पल न केवल महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान है बल्कि भारतीय हस्तशिल्प की एक चमकती हुई विरासत भी है। इसे केवल एक फैशन आइटम के रूप में न देखें, बल्कि इसके पीछे कारीगरों की मेहनत, कला और इतिहास को समझें। प्राडा जैसे ब्रांड्स को चाहिए कि वे पारंपरिक कारीगरों को सम्मान और मुआवजा दें ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रह सके और विश्व में गर्व से चमकती रहे।
कोल्हापुरी चप्पल का सफर हमारे इतिहास से आधुनिक फैशन तक की कहानी है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है और विश्व स्तर पर भारतीय कला की पहचान बढ़ाती है।