भोले शंकर के 12 प्रतीकः शिव के आंसू से बने थे रूद्राक्ष, गले में सर्प का जानिए महत्व

punjabkesari.in Saturday, Jul 31, 2021 - 12:37 PM (IST)

भगवान शिव अपने भक्तों से जल्दी ही खुश हो जाते हैं। शायद इसी लिए उन्होंने भूतों व प्रेतों को भी अपनी शरण दी है। इसके साथ ही उन्होंने गले में नाग, जटा में गंगा आदि चीजें धारण कर रखी है। मगर क्या आप जानते हैं इसके पीछे की असली वजह? तो चलिए आपको इसके पीछे से छिपे रहस्यों के बारे में बताते हैं...

शीश पर धारण किया चंद्रमा

शिव पुराण के अनुसार, चंद्रमा का विवाह महाराज दक्ष की 27 बेटियों से हुआ था। मगर चंद्रमा सबसे अधिक प्यार देवी रोहिणी से करते थे। ऐसे में बाकी की पुत्रियों ने दक्ष से इस बात की शिकायत करने पर उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग होने का शाप दिया। ऐसे में इससे शाप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की। फिर महादेव ने उन्हें अपने सिर पर धारण करके उनकी जान बचाई। मगर फिर आप भी महाराज दक्ष द्वारा दिए शाप के कारण चंद्रमा का आकार घटता-बढ़ता रहता है। 

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महादेव ने जटा में धारण की गंगा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाराज भागीरथ अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के इन चक्करों से मुक्ति दिलाने के लिए कठोर तप किया था। ऐसे में उनके तप से खुश होकर गंगा देवी ने धरती पर आने का फैसला किया। मगर गंगा ने अभिमान में आकर भागीरथ से कहा कि धरती उनका तेज वेग सहन नहीं कर सकती थी। ऐसे में उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की। फिर शिव जी ने देवी गंगा का अभिमान खत्म करने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया। मगर बाद में गंगा द्वारा माफी मांगने से भगवान शिव ने उन्हें आजाद कर दिया था। 

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गले में धारण किया नागराज वासुकी 

भगवान शिव ने अपने गले में नागराज वासुकी को धारण कर रखा है। मान्यता है कि नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्‍त थे। वे हमेशा शिव जी की भक्ति में लीन रहते थे। इसके साथ ही सागर मंथन के दौरान असुर व देवताओं ने रस्सी के रूप में वासुकी को इस्तेमाल किया था। उनकी भक्ति से खुश होकर भगवान शिव जी ने वासुकी को अपने गले में धारण करने व लिपटे रहने का वरदान दिया।

हाथों में पकड़ा त्रिशूल

शिव जी अपने हाथों में त्रिशूल धारण करते हैं। माना जाता है कि जब भोलेनाथ प्रकट हुए थे तो उनके साथ तम, अरज और असर गुण पैदा हुए थे। इनमें सामंजस्‍य बनाए रखने के कारण भगवान शिव ने तीनों को त्रिशूल का रूप दे दिया। 

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शरीर पर लगाते हैं भस्म

भगवान शिव भूतों व प्रेतों को भी शरण देते हैं। ऐसे में उन्हें मृत्यु का स्वामी माना जाता है। इसलिए भोलेनाथ शव जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। साथ ही वे इससे संसार को संदेश देते हैं कि हमारा शरीर नश्वर होने से एक दिन भस्म की तरह मिट्टी में ही मिलेगा। ऐसे में अपने शरीर पर कभी भी अभिमान ना करें। 

हाथ में धारण किया डमरू

भगवान शिव के हाथों में डमरू भी देखा जाता है। माना जाता है कि जब देवी सरस्वती जी प्रकट हुई थी तब उनके द्वारा वीणा के स्वरों से दुनिया में ध्वनि का संचार हुआ। मगर व ध्वनि सुर व संगीत से भरी हुई नहीं थी। तब भगवान शिव ने नृत्‍य करते हुए 14 बार डमरू बजाया। डमरू की आवाज से धुन और ताल का जन्म हुआ। साथ ही दुनिया को संगीत मिला। 

रुद्राक्ष 

मान्याताओं के अनुसार रूद्राक्ष भगवान शिव के आंसू से उत्पन्न हुआ था। पवित्रता का प्रतीक माना जाने वाला रूद्राक्ष की माला से जाप करने से शिव जी की असीम कृपा मिलती है। धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के अनुसार धरती पर 21 मुख तक रुद्राक्ष है। मगर इस समय तक 14 मुखी रुद्राक्ष ही पाएं गए। रूद्राक्ष के मनको की माला जपने या इसे पहनने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होने के साथ शरीर में पॉजीटिव एनर्जी का संचार होता है। 

त्रिपुंड तिलक

माथे पर तिलक से 3 लंबी धारियां खींचने को त्रिपुंड तिलक कहा जाता है। यह त्रिगुण, सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक माना जाता है। इसकी धारियों के बिल्कुल बीच शक्ति का प्रतीक कहे जाने वाला लाल रंग का गोल तिलक बनाया जाता है। इसे लगाने से मन को शांति मिलने के साथ एकाग्रता शक्ति बढ़ती है। मगर आम इंसान को लाल रंग की जगह सिर्फ 3 धारियों वाला तिलक लगाना चाहिए। 

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कमंडल 

शिव जी का कमंडल में पाएं जाने वाला जल अमृत के समान माना जाता है। यह संत और योगी द्वारा धारण किया जाता है। 

हस्ति चर्म और व्याघ्र चर्म

शिव जी अपने आसन के तौर हाथी और सेर की खाल का इस्तेमाल करते है। असल में हस्ती अभिमान और व्याघ्र हिंसा का प्रतीक कहलाता है। ऐसे में शिवजी इन दोनों अपने शरीर में धारण कर इन्हें दबाकर रखते हैं। बाघ को शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव इस पर बैठकर और इसकी खाल को पहनकर यह दर्शाते है कि शिव जी से ऊपर कोई शक्ति नहीं हैं। 

शिव कुंडल

हिंदु धर्म में कान को छिदवाया जाता है। प्राचीन समय में शैव, शाक्त और नाथ संप्रदाय में दीक्षा लेने के समय बालकों को कान छिदवाकर कुंडल धारण करने पड़ते थे। बात अगर भगवान की प्रतिमाओं की करें तो वहां भी उनके कान में कुंडल पहने दिखाई देते है। भगवान शिव, विष्णु सभी देवताएं कानों में कुंडल धारण करते है। 

नंदी

शिव जी के वाहन नंदी उनको अति प्रिय है। इसे वृषभ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है धर्म। वेद में धर्म को चार पैरों वाला यानि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष माना जाता है। भगवान शिव इन्हीं चार पैरों वाले नंदी की सवारी करते है। यह शिव जी को प्रिय गणों में से एक होने के साथ धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना करने वाले भी माने जाते है।

 

 


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neetu

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