क्या तीसरे बच्चे के जन्म पर मां को नहीं मिलेगी छुट्टी? जानिए Maternity Leave को लेकर हमारे देश का कानून
punjabkesari.in Friday, Jun 06, 2025 - 12:05 PM (IST)

नारी डेस्क: तमिलनाडु की एक शिक्षिका को उसके तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश नहीं दिया गया, और उसने इसका विरोध किया। अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि मातृत्व अवकाश केवल एक लाभ नहीं है, यह एक संवैधानिक अधिकार है। यह एक ऐसी जीत है जो हर महिला के सम्मान, समानता और आराम के अधिकार को पुष्ट करती है, चाहे उसके कितने भी बच्चे हों।
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यह वैश्विक स्तर पर क्यों मायने रखता है
यह एक प्रमुख लोकतंत्र में पहला स्पष्ट न्यायालय का फैसला है जो मातृत्व अवकाश को कार्यस्थल पर मिलने वाले लाभ के बजाय संवैधानिक अधिकार के रूप में पुष्टि करता है। यह ऐसे समय में आया है जब कई देशों (अमेरिका सहित) में गारंटीकृत संघीय मातृत्व अवकाश का अभाव है, जिससे यह फैसला वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हो गया है। यह श्रम न्याय को लैंगिक समानता से जोड़ता है, यह दर्शाता है कि कैसे न्यायालय नीतिगत बयानबाजी से परे महिलाओं के अधिकारों को बनाए रख सकते हैं।
मातृत्व अवकाश को लेकर देश का कानून
भारत में मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) से जुड़े नियमों को "मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961)" द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह कानून कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और बाद में वेतन सहित छुट्टी प्रदान करने का अधिकार देता है, ताकि वे सुरक्षित रूप से बच्चे को जन्म दे सकें और उसकी देखभाल कर सकें। वर्ष 2017 में संशोधन के बाद मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है। अधिकतम 8 सप्ताह प्रसव (delivery) से पहले ली जा सकती है।शेष 18 सप्ताह डिलीवरी के बाद ली जा सकती है।
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किन महिलाओं को मिलता है इसका लाभ
जिन्होंने कम से कम 80 दिन तक उस कंपनी/संस्था में काम किया हो। यह सुविधा उन संस्थानों में लागू होती है जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी हों। यदि महिला तीसरे बच्चे को जन्म देती है, तो उसे 12 सप्ताह का अवकाश ही मिलेगा। यदि कोई महिला 3 महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है तो उसे 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलता है।
कंपनी की जिम्मेदारी
इस दौरान पूरा वेतन देना अनिवार्य होता है। किसी भी महिला को मातृत्व अवकाश के कारण नौकरी से निकाला नहीं जा सकता। कंपनी चाहे तो छुट्टी पूरी होने के बाद वर्क फ्रॉम होम की सुविधा भी दे सकती है, यह आपसी सहमति पर निर्भर करता है। यदि कंपनी नियमों का पालन नहीं करती तो महिला श्रमिक लेबर कमिश्नर या कोर्ट में शिकायत कर सकती है। कंपनी पर जुर्माना या कानूनी कार्रवाई हो सकती है।