करवाचौथ पर इसलिए देखा जाता है छलनी से चांद, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा
punjabkesari.in Wednesday, Oct 12, 2022 - 12:43 PM (IST)
हर साल महिलाओं को सिर्फ एक दिन का इंतजार होता है और वो है करवाचौथ का। सनातन परंपरा के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को करवाचौथ का व्रत मनाया जाता है। इस साल करवाचौथ का व्रत 13 अक्टूबर यानी की कल पड़ रहा है। हिंदू धर्म के अनुसार, इस महत्वपूर्ण दिन में महिलाएं 16 श्रृंगार करके अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। 16 श्रृंगार करके पूजा में चांद को छलनी के साथ देखती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चंद्र देव को अर्घ्य देते समय सुहागिन महिलाएं चंद्रमा को क्यों देखती हैं? तो आइए आपको बताते हैं इस पौराणिक रीति-रिवाज के बारे में...
करवाचौथ की व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है एक साहूकार के 7 बेटे और 1 बेटी करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब घर आए तो सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे लेकिन बहन ने बताया कि उसका करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खाएंगी। चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी। सबसे छोटे भाई से बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। बाद में भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन चांद को देखकर उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत करवाती है कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है। करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी उंगली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
इसलिए देखा जाता है छलनी से चांद
माना जाता है कि साहूकार की बेटी ने छल से अपना व्रत खोलने की मां करवा से क्षमा मांगी और अपनी भूल को सुधारने के लिए उसने अगले साल पूरे विधि-विधान के साथ करवाचौथ का व्रत रखा। दूसरी बार व्रत के दौरान उसने अपने हाथ में छलनी और दीपक लेकर चंद्र देव के दर्शन किए और उन्हें अर्घ्य दिया। छल से बचने के लिए उसने छलनी के साथ चंद्रमा के दर्शन किए। इसलिए करवाचौथ पर छलनी से चांद देखा जाता है। साहूकार की बेटी के द्वारा की गई पूजा से मां करवा प्रसन्न हुई और उन्होंने उसकी बेटी के पति को फिर से जीवित कर दिया।