"महिला पत्रकारों की स्थिति आज भी खराब", Gender Equality पर बोलीं पत्रकार Barkha Dutt
punjabkesari.in Tuesday, Mar 08, 2022 - 11:53 AM (IST)
बरखा दत्त को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह अनुकरणीय भारतीय पत्रकारिता का पर्याय रही हैं। जब देश में पत्रकारिता के विकास की बात आती है तो महिला एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जानी जाती है और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा रही है। फेमस पत्रकार और न्यूज एंकर बरखा दत्त ने अपनी पत्रकारिता सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नाम कमाया है। उनकी पत्रकारिता के चलते उन्हें अब तक कई अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है। हाल ही में वह पिंकविला की वुमन अप-S3 में गेस्ट बनकर पहुंची, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी और बायोपिक से जुड़ी कुछ बातें बताई।
अपनी बायोपिक में किसे देखना चाहती हैं बरखा
बरखा दत्त ने पिंकविला से बात कर हुए बॉलीवुड में पत्रकारिता के चित्रण और उनके द्वारा बनाए गए पात्रों के बारे में बात की थी। बरखा ने यह भी खुलासा किया कि अगर कभी उन पर बायोपिक बनती है तो वह आलिया भट्ट को उस रोल में देखना चाहेगी।
बरखा ने खुलासा किया कि वह अपनी बायोपिक में आलिया भट्ट को देखना चाहती हैं। उन्होंने कहा, "मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रही हूं क्योंकि उनकी अभी उनकी एक फिल्म चल रही है लेकिन मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि मुझे सच में लगता है कि वह सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। मेरा मतलब है कि कोई सवाल ही नहीं है ... रेंज, व्यापक रेंज, वह सहजता जिसके साथ वह सब कुछ खेलती है"।
कई चुनौतियों का किया सामना
1999 में बरखा को अपने तरीके से लड़ना पड़ा ताकि वह कारगिल युद्ध को फ्रंटलाइन से कवर कर सकें लेकिन वह पहली महिला युद्ध पत्रकार नहीं थीं। 1965 में उनकी मां प्रभा दत्त ने वही काम किया, जब उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध को एक साधारण नोटपैड और एक कलम के साथ कवर किया था।
महिलाओं के लिए कई और दरवाजे खुले होंगे लेकिन...
जब बरखा से पूछा कि क्या '99 से 2022 तक कुछ भी बदल गया है तो उन्होंने कहा कि आज भी महिला पत्रकारों को कम आंका जाता है। बरखा ने जवाब दिया, 'मुझे लगता है कि बहुत कुछ बदल गया है। मेरी मां की पीढ़ी की महिलाएं और हम में से कुछ, हम लड़े और हमने दरवाजा खोला और सक्षम किया है। मुझे आशा है कि हमारे बाद आने वाली महिलाओं के लिए कई और दरवाजे खुले होंगे। लेकिन अब भी अगर आप प्रबंधन और स्वामित्व की स्थिति को देखें तो वे अभी भी ज्यादातर पुरुष हैं। अगर आप देखें कि कौन न्यूजरूम चलाता है और कौन मीडिया संगठनों का मालिक है तो यह अभी भी ज्यादातर पुरुष हैं।"
"महिला पत्रकारों की स्थिति आज भी खराब"
वह आगे कहती हैं, "इसके दो पहलू हैं। एक, जिन स्थानों पर आप रिपोर्ट कर रहे हैं वे अक्सर पुरुष प्रधान होते हैं लेकिन समाचार कक्षों में जहां बहुत कुछ बदल गया है, मेरा मानना है कि प्रबंधन और स्वामित्व की स्थिति अभी भी पुरुषों के अधीन है।"