शांति जब छू जाती है

punjabkesari.in Wednesday, Nov 19, 2025 - 06:05 PM (IST)

नारी डेस्क: एक बिल्कुल साधारण-सी रविवार की सुबह थी वैसी सुबह जो शांत होती है, सरल होती है और दिखने में कुछ भी खास नहीं लगती लेकिन कभी-कभी जीवन इन्हीं साधारण क्षणों में अचानक आपको आपके भीतर का एक नया दरवाज़ा खोलकर दिखा देता है। मैं सोफ़े पर बैठी थी, दिन की नर्मी में धीरे-धीरे ढलती हुई, जब एक पल के लिए ऐसा लगा मानो दिल धड़कना भूल गया हो और पूरी दुनिया स्थिर हो गई हो। एक हल्की-सी निःशब्दता मुझे घेरने लगी, डराने वाली नहीं बल्कि किसी अनकही सुकून की तरह। शरीर जैसे थम गया था, लेकिन मन अपनी ही धारा में बहता जा रहा था।

उसी मौन में फोन पर एक संदेश आया एक पुरानी दोस्त 10 साल बाद मिलना चाहती थी। 10 साल… एक पूरा जीवन, जिसमें बदलने, टूटने, सीखने और समझने के अनगिनत अनुभव समाए हों। लेकिन उस संदेश में मुझे उत्साह नहीं, बल्कि एक गहरी जिज्ञासा महसूस हुई: इतने वर्षों बाद यह मिलने की इच्छा कैसे जागी? और उसी क्षण मैंने महसूस किया कि मेरे अंदर वह पुराना आग्रह अब नहीं बचा। वह मैं, जो रिश्तों को पकड़कर रखने में विश्वास रखती थी, धीरे-धीरे समय की धूप में पिघल चुकी थी। अब न मिलने का अर्थ रूखाई नहीं था बस मेरे भीतर का संसार बदल चुका था। एकांत अब बोझ नहीं था, बल्कि पोषण करने वाला विश्राम बन गया था। मेरी दिनचर्या, मेरी साधना, मेरा मौन ये सब किसी भी पुराने शोर से कहीं अधिक संतोष देते थे।

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उसी ठहराव में एक प्रश्न उठा सुख की असल गहराई क्या है? और यह क्यों बदलती रहती है?

बचपन और युवावस्था में सुख कितना सरल होता है। अच्छे अंक लाना, माता-पिता की आंखों में गर्व की चमक देखना, शिक्षकों का स्नेह पाना, ऐसे मित्र बनाना जिन्हें हम जीवनभर के लिए मान लेते हैं ये  सब ही सुख के रंग थे। नई मित्रताएं, पहली प्रेम की धड़कन, यात्राओं का रोमांच, नई चीज़ें सीखने की खुशी इन सब में हमें जीवन स्थायी लगता था। हम समझ नहीं पाते कि अस्थिरता ही जीवन का स्वभाव है लेकिन समय धीरे-धीरे अपनी गूढ़ शिक्षा देता है।
दोस्तियाँ धुंधली होने लगती हैं।
जो लोग कभी घर जैसे लगते थे, वे परिचित अजनबी बन जाते हैं।
कुछ अपने दूर चले जाते हैं, कुछ दूर के लोग अचानक बहुत पास आ जाते हैं।
करियर बदलते हैं, रिश्ते बदलते हैं, प्राथमिकताएँ बदलती हैं और इन सबके बीच हमें समझ आता है कि जिस सुख को हम पकड़कर चलते थे, वह सिर्फ एक अध्याय था, पूरी किताब नहीं।

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने लिखा था- “समय का साथी बदलता है, मन का सागर भी बदलता है।” और सच यही है हमारे भीतर का समुद्र लगातार बदलता रहता है। हमारा उत्साह, हमारी उपलब्धियां, हमारी खुशी सब लहरों की तरह उठती और बैठती रहती हैं। विचार बदलते हैं, इच्छाएँ बदलती हैं, और हम स्वयं भी हर दिन थोड़ा-थोड़ा बदलते रहते हैं। इस परिवर्तन को रोक न पाना ही जीवन की पहली सच्चाई है।

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- “जीवन में जो बदल नहीं सकता, वही स्थिर नहीं रह सकता।” उनकी यह बात हमेशा याद दिलाती है कि परिवर्तन कोई बाधा नहीं जीवन का स्वभाव है।

ओशो इसी को और सुंदर ढंग से समझाते हैं। वे कहते हैं कि जीवन एक नदी है जिसका हर क्षण नया है। दुख तब आता है जब हम बीते हुए पानी को आज की मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश करते हैं। हम बदलते हैं, हमारा संसार बदलता है, हमारा ‘मैं’ भी पल-पल बदलता है। जब हम इस बदलाव का विरोध करते हैं, तब भय उत्पन्न होता है लेकिन जब हम इसे स्वीकार कर लेते हैं, तब भीतर एक अद्भुत स्वतंत्रता जन्म लेती है।

शायद सुख की गहराई पाने का पहला कदम ही यही है स्वीकार करना।
सुख तब गहराता है जब हम उसे उपलब्धि नहीं, एक अनुभूति की तरह जीना सीखते हैं।
जब हम यह समझ लेते हैं कि एकांत अकेलापन नहीं, बल्कि स्वयं से मिलने का समय है।
जब हम बिना अपराध-बोध के लोगों, जगहों, स्मृतियों और पहचानों को पीछे छोड़ना स्वीकार कर लेते हैं।
जब हम सीखते हैं कि किसी चीज़ का स्थायी होना ही उसकी कीमत नहीं तय करता क्षण भी अनमोल होते हैं।

शायद उस रविवार की सुबह जीवन ने मुझे यही सिखाया, सुख बीते हुए कल की तीव्रता में नहीं और न ही कल की किसी आशा में छिपा है।
सुख इस पल में है। इस बात में कि हम आज की धारा को बिना भय, बिना प्रतिरोध बहने दें।
सुख किसी खोज का अंत नहीं, किसी समझ की शुरुआत है।
यह कोई मंज़िल नहीं जीने की एक शैली है।यह बाहरी दुनिया का अहसास नहीं भीतर की सहजता है।और शायद यही है सुख की असली गहराई हर बदलते क्षण को कोमलता, स्वीकृति और एक खुले मन से जी पाना।

 लेखिका - तनु जैन
  

 


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Content Editor

Priya Yadav

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