रोजाना बेवक्त जान गंवा रहे भारत के करीब 500 मासूम बच्चे, अभी से संभल जाओ नहीं तो...
punjabkesari.in Tuesday, Aug 05, 2025 - 09:32 PM (IST)

नारी डेस्क (वंदना डालिया): भारत में वायु प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है कि इसके कारण हर वर्ष 5 साल से कम आयु के 169,400 बच्चों की असमय मौत हो रही है। इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण के कारण गर्भ में ही बच्चों का संघर्ष शुरू हो जाता है और कुछ बच्चे पैदा होते ही दम तोड़ देते हैं जबकि कुछ 5 वर्ष की आयु के भीतर ही वायु प्रदूषण के कारण असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। इन आकंड़ों को 365 दिनों से विभाजित किया जाए तो भारत में ही रोजाना 5 वर्ष से कम आयु के 464 बच्चों की मौत हो रही है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर की 2024 में जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक़ 2021 में वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 5 वर्ष से कम आयु के 7 लाख 9 हजार बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में कुल 81 लाख लोग मारे गए जिनमे से 21 लाख मौतें भारत में हुई। इस से पहले 2019 में जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में भारत में 1.16 लाख नवजात शिशुओं की मौत वायु प्रदूषण से हुई जो एक महीने से कम उम्र के थे।
बच्चों की मौत का कारण
वायु प्रदूषण के कारण बच्चों को आ रहा स्ट्रोक, हार्ट अटैक, डायबिटीज़, फेफड़ों का कैंसर और नवजात बच्चों की मौत का कारण बन रहा है । एशियाई देशों में घरेलू स्तर पर होने वाले वायु प्रदूषण (लकड़ी, कोयला, गोबर जलाने के कारण) के कारण 72 प्रतिशत बच्चों की मौत हुई जबकि 28 प्रतिशत बच्चे हवा में मौजूद पार्टिकल मटीरियल 2.5 से जुड़े प्रदूषण सबंधी बीमारियों का शिकार हुए
2024 में जारी रिपोर्ट के आंकड़े
भारत: 1,69,400 मौतें
नाइजीरिया: 1,14,100 मौतें
पाकिस्तान: 68,100 मौतें
इथियोपिया: 31,100 मौतें
बांग्लादेश: 19,100 मौतें
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक
दिल्ली में वायु प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि राजधानी के लोग एक वर्ष में अपना 61 प्रतिशत समय खराब हवा में सांस लेते हैं और खराब हवा के कारण दिल्ली में लोगों की आयु 5 से 6 वर्ष तक कम हो रही है।
गर्भ में ही शुरू हो जाता प्रदूषण का असर, रोजाना 25 सिगरेट जितना जहरीला धुआ अंदर ले रही गर्भवती
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली एवं अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, मुंबई के डेटा के अनुसार, भारत में लगभग 13% बच्चे समय से पहले जन्म ले रहे हैं, जबकि लगभग 17-18% नवजात शिशु कम वजन के साथ पैदा होते हैं। प्रदूषण का असर मां और भ्रूण दोनों पर होता है और दिल्ली में रहने वाली एक गर्भवती महिला खराब हवा में सांस लेने के कारण एक दिन में 25 से 30 सिगरेट पीने जितना जहरीला धुआं अपने फेफड़ों में भर लेती है और इस से बच्चे के वजन पर भी इसका असर हो रहा है। वायु प्रदूषण का सीधा असर नवजात के वजन पर पड़ता है क्योंकि बच्चा अपने मां के गर्भ से इसके संपर्क में आ रहा है जिसके चलते उसकी इम्यूनिटी मजबूत नहीं हो पाती। इसी के साथ फेफड़ों संबंधी समस्या, पीलिया, निमोनिया जैसी कई बीमारियों की चपेट में आ जाता है।
नन्हे मुन्ने बच्चों के फेफड़ों में बढ़ रही सूजन
'भारत के उत्तरी राज्य जैसे दिल्ली पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण स्पष्ट रूप से 6 महीने से 2 साल तक के बच्चों में अस्थमा के बढ़ते मामलों और छोटे बच्चों में ब्रोंकियोलाइटिस की गंभीरता का मुख्य कारण है। बच्चों के फेफड़ों की सूजन अधिक तेज हो रही है। इसका कारण वाहनों और इंडस्ट्रियल यूएंट्स से निकलने वाली प्रदूषित हवा है। इसके अलावा सर्दियों और फसलों की पराली जलाने के मौसम में स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है।पंजाब में पराली जलाने के सीजन में बच्चों में अस्थमा अटैक्स की संख्या 3-4 गुना बढ़ जाती है। हरियाणा में ग्रामीण और शहरी इलाकों में बच्चों में अस्थमा के मामलों में सालाना 25 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की जा रही है। बच्चों में वायरल ब्रोंकियोलाइटिस की गंभीरता वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही है।' डॉ. अभिराज पॉल (MBBS, DCH, FNNF) न्यू बॉर्न एंड चाइल्ट स्पैशलिस्ट
दुविधा में पर्यावरण मंत्रालय : हवा साफ़ करने के लिए 12636 करोड़ रूपए खर्च डाले और कोल पावर प्लांट को राहत भी दे दी
केंद्र सरकार का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वर्ष 2019 से नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम ( एन सी ए पी ) चला रहा है और इसके तहत अभी तक 12636 करोड़ रूपए खर्च भी किए जा चुके हैं इसके बावजूद भारत दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश है और दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 6 भारत में हैं। लेकिन इसी बीच केंद्र सरकार ने कोल पावर प्लांट्स को सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीक लगाने से छूट दे दी है लिहाजा मंत्रालय हवा साफ़ करने के मामले खुद ही दुविधा में नजर आ रहा है ।सरकार ने 2015 में कोल पावर प्लांट्स से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड को कम करने के लिए फ्लू गैस डी सलफराइजेशन सिस्टम लगाना जरुरी किया था। यह सिस्टम सल्फर डाइऑक्साइड को कम करता है। नई नीति के तहत अब 537 कोल पवार प्लांट्स को यह यूनिट लगाना जरुरी नहीं होगा। सल्फर डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेवार है और इस से सांस से संबंधित बीमारियां फैलती हैं और तेजाबी वर्षा भी होती है