गरीब देशों में यौन संबंधों के लिए महिलाओं की नहीं पूछी जाती राय, पढ़िए चौकाने वाली रिपोर्ट

punjabkesari.in Friday, Apr 16, 2021 - 02:17 PM (IST)

इंटरकोर्स के टॉपिक पर महिलाएं अपने पार्टनर से खुलकर बात करना तो चाहती हैं लेकिन पुरूष इस बारे में सुनना पसंद नहीं करते, खासकर भारतीय। कुछ देश तो ऐसे हैं, जहां महिलाओं को यौन संबंधों के लिए मना करने तक का हक नहीं है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund) ने एक रिपोर्ट 'My Body Is My Own' शेयर कर बताया कि 57 देशों में महिलाओं की हालात बहुत चिंताजनक है।

शारीरिक हिंसा का सहारा ले रहे पुरुष

रिपोर्ट के अनुसार, गरीब देशों व आर्थिक रूप से तंग औरतों को अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स का इलाज व गर्भनिरोधक से लेकर इंटरकोर्स तक के फैसने लेने का भी हक नहीं होता और ना ही वो अपने निर्णय खुद कर पाती हैं। किसी के डर या प्रभाव के चलते वो फैसला लेने में असमर्थ रहती है और उनकी बजाए कोई ओर निर्णय करता है। 57 देशों में सिर्फ 55% महिलाओं को ही यह तय करने का हक है कि यौन संबंध बनाना है या नहीं।

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इन देशों की स्थिति सबसे खराब

रिपोर्ट में बताया गया है कि ये हैरान करने वाला आंकड़े 1/4 देशों के हैं, जिसमें सबसे ज्यादा अफ्रीकी देश शामिल है। इसके अलावा पूर्वी व दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन देशों में 76% औरतें इंटरकोर्स, गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य देखभाल पर फैसले ले सकती हैं। जबकि, अफ्रीका, मध्य व दक्षिण एशिया में यह आंकड़ा 50% से भी कम है। अफ्रीका के माली, नाइजर और सेनेगल देशों की स्थिति सबसे खराब है। यहां सिर्फ 10% महिलाएं ही ऐसे मामलों पर खुद फैसले लेती हैं।

महिलाओं के मानवाधिकारों का हो रहा उल्लंघन

कोष की कार्यकारी निदेशक का कहना है कि महिलाओं व लड़कियों को शारीरिक स्वायत्तता (Physical autonomy) न देना उनके मौलिक मानवीय अधिकारों का उल्लंघन करना है। साथ ही यह पुरुषों व महिलाओं के बीच असमानता को भी बढ़ावा देता है। वहीं, इससे लैंगिंक भेदभाव और हिंसा भी जारी रहती है।

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शिक्षा, मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य पर असर

रिपोर्ट के अनुसार, इसके कारण महिलाओं व लड़कियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, इसके कारण उन्हें कई मानसिक यातनाएं भी झेलने पड़ती है, जिसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। ऐसे में उन्हें अपने निर्णय खुद करने देना चाहिए। इससे महिलाओं में शिक्षा का स्तर भी ऊंचा होता है क्योंकि अपने निर्णय के अवगत रहने से वह ज्यादा सीखती हैं।

मौलिक अधिकार का हनन

भारत में UNFPA की प्रतिनिधि अर्जेंटीना मतावेल का इसपर कहना है कि इस मामले में निर्णय लेना महिलाओं का मूल अधिकार है। कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं के साथ होने वाले ना सिर्फ अपराध बढ़े हैं बल्कि उन्हें उचित चिकित्सा व देखभाल मिलना भी मुश्किल हुआ।

यौन हिंसा में शरीक लोगों को सूचीबद्ध करने की व्यवस्था दृढ़ हो: भारत

हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध संबंधित प्रशासन मजबूत की अपील की है, ताकि महिलाओ की स्थिति बेहतर हो सके। इसकी के साथ ही यौन हिंसा में शामिल लोगों व संस्थाओं को काभी भी काली सूची में डालने की की अपील की गई है।

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Content Writer

Anjali Rajput

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