Handloom Day: देश-विदेश तक हाथों की बुनाई की पहचान, जानिए इस कपड़े की खासियत
punjabkesari.in Friday, Aug 06, 2021 - 05:22 PM (IST)
देशभर में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) मनाया जाता है। नेशनल हैंडलूम डे मनाने की शुरूआत उस दिन हुई, जिस दिन 1905 में स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया था। इस दिन को मनाने का उद्देशय स्वदेशी उद्योग और हैंडलूम क्राफ्ट को प्रोत्साहित करना है, ताकि देश की आर्थिक विकास में मदद मिल सके। वहीं, हाथों की कारीगरी देश की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। हथकरघा बुनकरों और कामगारों में 70% से अधिक महिलाएं हैं। ऐसे में यह महिला सशक्तिकरण की कुंजी के रूप में भी काम करता है।
कब मनाया गया पहला नेशनल हैंडलूम डे?
नेशनल हैंडलूम डे पहली बार 2015 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चेन्नई में आयोजित किया गया था। साल 2021 में सांतवा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाएगा। यह दिन बुनकरों और उद्योग में अन्य लोगों के लिए हस्तनिर्मित और हाथ से बुने हुए को बढ़ावा देने के लिए सेलिब्रेट किया जाता है।

हैंडलूम क्या है?
तमिलनाडु की प्रसिद्ध कांचीपुरम साड़ियां हों या असम की मुगा (सुनहरा रेशम) मेखला सदोर, महाराष्ट्र की पैठानी बुनाई या उत्तर प्रदेश के बनारसी ब्रोकेड, भारत में दुनिया का सबसे बड़ा और व्यापक बुनाई उद्योग है। सिर्फ देश ही नहीं बल्कि स्वदेशी कपड़े की डिमांड विदेश में भी खूब होती है। यहां तक कि कई फिल्में सितारें व बड़े-बड़े डिजाइनर्स भी हैंडूलम वर्क को काफी प्रमोट करते हैं।

हैंडलूम कपड़े की खासियत
कारखानों में कपड़ा बुनने का एक करघा (मशीन) होते है, जो हाथ से चलाया जाता है। उसी से बने कपड़े को हैंडलूम का नाम दिया जाता है। हैंडलूम कपड़े मुलायम, महीन और कलरफुल होते हैं।, जिसमें कपास और सिंथेटिक धागा मिक्स होता है। आमतौर पर हैंडलूम के कपड़े सस्ते होते हैं।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2021 थीम
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2021 का विषय "हैंडलूम - एक भारतीय विरासत" (Handloom – An Indian Legacy) है। वर्तमान की बात करें तो फिलहाल 150 प्रशिक्षित महिला व पुरुष बुनकर हैं। भारत के कोने-कोने में हाथों की बुनाई वाले कपड़े बेचे जाते हैं, जिनसे सलाना का टर्नओवर 49 लाख रुपए हो जाता है। इन कपड़ों की रंगाई इतनी बेहतरीन होती है कि यह सालों-साल चमकदार बने रहते हैं।

कोरोना काल में गहराया आर्थिक संकट
सालभर हाथों से बने कुर्ते, शर्ट, पायजामा, रूमाल, गमछा, दरी आदि कपड़ों की काफी डिमांड रहती है लेकिन कोरोना काल के चलते बुनकरों को काम मिलना मुश्किल हो गया। कोरोना काल में काम बंद होने के कारण बुनकरों के सामने गहरी आर्थिक आई।

