राम मंदिर के 500 वर्ष का संघर्ष, मंदिर तोड़कर बनाई गई थी बाबरी मस्जिद, जानिए Ayodhya Temple का इतिहास
punjabkesari.in Monday, Jan 22, 2024 - 07:09 PM (IST)
पूरे भारतवर्ष में आज उत्सव का दिन है। करीब 500 वर्ष के कठिन तप और संघर्ष के बाद प्रभु श्रीराम अपने नए और दिव्य मंदिर में विराजमान हो चुके हैं। लोगों में अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है। 22 जनवरी का शुभ दिन भारत का ऐतिहासिक दिन बन गया है लेकिन यह दिन भारत में इतनी आसानी से नहीं आया। राम मंदिर के निर्माण का सफर बहुत कठिन रहा है। इसके लिए दशकों तक कानूनी लड़ाई चली है। कई कठिन चुनौतियों का सामना करने के बाद ये भव्य नजारा आज भारतवासियों को देखने को मिल रहा है। बहुत से लोग राम मंदिर के इतिहास के बारे में नहीं जानते तो चलिए, आपको राम मंदिर से जुड़ी कुछ बातें आपको बताते हैं जिनके बारे में शायद आप ना जानते हो।
सन 1528-29 में राम जन्मभूमि पर बनाई गई थी बाबरी मस्जिद
अयोध्या नगरी भगवान श्री राम की जन्मभूमि रही है। अधिकतर लोगों को लगता है कि यह विवाद 70 सालों से चला आ रहा है लेकिन इसकी शुरुआत साल 1526 से हुई, जब मुगल शासक बाबर भारत आया था। 2 साल बाद 1528 में बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या में मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया था, जिसका नाम बाबर के सम्मान में बाबरी मस्जिद रखा। मुगल काल में इसे एक महत्वपूर्ण मस्जिद माना जाता था। साल 1932 में छपी किताब अयोध्या: ए हिस्ट्री' में भी बताया गया है कि बाबर ने मीर बाकी को हुक्म दिया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि है और यहां के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाना होगा।
1853 में शुरु हुआ विवाद राम मंदिर और मस्जिद का विवाद
जानकारी के मुताबिक, साल 1853 से 1855 के बीच में अयोध्या के मंदिरों को लेकर विवाद शुरु हुआ। परिसर में पहली बार हवन और पूजन करने को लेकर एफआईआर दर्ज हुई। किताब अयोध्या रिविजिटेड के अनुसार, दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि परिसर में चबूतरा बना है। ये पहला कानूनी दस्तावेज है जिसमें परिसर के अंदर राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं। इसके बाद ब्रिटिश प्रशासन ने कार्रवाई कर तार की बाड़ लगा कर भूमि का विभाजन कर दिया। विवादित भूमि के अंदर मुस्लिमों को नमाज की इजाजत दी गई और बाहरी परिसर में हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दी गई।
सन 1885 में अदालत पहुंची थी लड़ाई
सन 1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची। निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दर्ज किया। दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की। जिसके लिए जज ने अनुमति नहीं दी।
1949 राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई
देश की आजादी के बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। इसके बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों संगठनों द्वारा याचिकाएं दायर की गईं। एक ओर गोपाल सिंह विशारद ने भगवान की पूजा करने की अनुमति मांगते हुए फैजाबाद अदालत में याचिका दायर की तो वहीं दूसरी ओर अयोध्या के हाशिम अंसारी ने मूर्तियों को हटाने और उस स्थान को मस्जिद के रूप में संरक्षित करने की वकालत करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने परिसर में ताला लगाने का फैसला किया लेकिन पुजारियों द्वारा दैनिक पूजा की अनुमति दी गई।
1989 में रखी गई थी राम मंदिर की नींव
1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित जगह पर शिलान्यास करने की अनुमति दे दी थी। इसके बाद, पहली बार रामलला का नाम इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था, जिसमें निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने रामलला जन्मभूमि पर अपना दावा पेश किया।
2024 में भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
134 साल कानूनी लड़ाई चलने के बाद आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ। 22 जनवरी 2024 की वह ऐतिहासिक तारीख है, जब मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 23 जनवरी से मंदिर आम लोगों के लिए खुल जाएगा।