तुलसी विवाह के दिन करें ये 6 विशेष नियम , इनके बिना अधूरा रहता है शालिग्राम संग पवित्र विवाह

punjabkesari.in Wednesday, Oct 29, 2025 - 12:07 PM (IST)

 नारी डेस्क:  हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का अत्यंत विशेष महत्व है। हर साल देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। यह तिथि इस बार 2 नवंबर 2025 को है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शालिग्राम स्वरूप में माता तुलसी से विवाह करते हैं। तुलसी विवाह करने से व्यक्ति को वही पुण्य प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है। लेकिन घर पर तुलसी विवाह करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन अनिवार्य है। कहा जाता है कि अगर ये नियम सही ढंग से पूरे नहीं किए जाएं, तो विवाह अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं तुलसी विवाह के 6 विशेष नियम और उनका धार्मिक महत्व।

विष्णु जी को शंख बजाकर निद्रा से जगाना सबसे जरूरी नियम

देवउठनी एकादशी के दिन सबसे पहले भगवान विष्णु को जगाना आवश्यक होता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शंख और घंटा बजाकर भगवान विष्णु की पूजा शुरू करें। ऐसा करने से न केवल वातावरण पवित्र होता है बल्कि तुलसी विवाह का शुभारंभ भी माना जाता है।
विष्णु जी शालिग्राम के रूप में तुलसी विवाह में उपस्थित होते हैं, इसलिए उन्हें निद्रा से जगाने के बाद ही विवाह संस्कार की शुरुआत करें। इस समय आरती उतारना और “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ होता है।

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गोधूलि बेला में करें तुलसी और शालिग्राम का विवाह

तुलसी विवाह करने का सबसे शुभ मुहूर्त गोधूलि बेला यानी सूर्यास्त के बाद का समय माना गया है। यह समय लगभग शाम 5 से 7 बजे के बीच का होता है, जब गायें लौटकर घर आती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इसी बेला में लक्ष्मी माता का आगमन होता है, इसलिए इस समय तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

गन्ने और केले के पत्तों से सजाएं विवाह मंडप

तुलसी विवाह के लिए साधारण सजावट नहीं, बल्कि गन्ने और केले के पत्तों से बना मंडप शुभ माना जाता है। इसे विवाह का अनिवार्य नियम बताया गया है। मंडप को गन्ने की डंडियों से चारों कोनों पर स्थापित करें और ऊपर केले के पत्ते लगाएं। इसके बीच में तुलसी का पौधा और भगवान शालिग्राम को चौकी पर विराजित करें। मंडप के बीच में एक कलश स्थापित करना न भूलें, क्योंकि यह मंगल का प्रतीक होता है।

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 विवाह के समय मंगल गीत और वैवाहिक गीत गाना अनिवार्य

तुलसी विवाह के दौरान केवल मंत्रोच्चारण ही नहीं, बल्कि मंगल गीत और विवाह गीत गाना भी बेहद जरूरी माना गया है। ऐसा करने से वातावरण में शुद्धता और आनंद बढ़ता है। यह भी कहा जाता है कि इस समय नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और घर में देवी लक्ष्मी का वास होता है। फेरों के बाद “मंगलाष्टक” या “विष्णु-तुलसी विवाह स्तोत्र” का पाठ करने से विवाह पूर्ण माना जाता है।

 आसन सहित कराएं तुलसी और शालिग्राम के फेरे

तुलसी विवाह से जुड़ा यह नियम सबसे प्रमुख है  फेरों के समय तुलसी माता को उनके आसन से न हटाएं। विवाह की प्रत्येक रस्म तुलसी जी को आसन सहित ही संपन्न करनी चाहिए। तुलसी और शालिग्राम को सात फेरे दिलवाएं, जैसे कि वास्तविक वैवाहिक संस्कार में होते हैं।
फेरों के बाद प्रतीकात्मक रूप से तुलसी जी की डोली भी सजाकर मंडप के पास रखें। यह विवाह की पूर्णता का संकेत माना जाता है।

आरती और प्रसाद से करें विवाह का समापन

फेरों के बाद भगवान शालिग्राम और तुलसी माता की आरती उतारना सबसे शुभ कर्म माना जाता है। इसके बाद पूरे परिवार को मिलकर भगवान विष्णु और माता तुलसी को प्रणाम करना चाहिए। आरती के पश्चात प्रसाद वितरण अवश्य करें। यह परिवार में प्रेम और एकता का प्रतीक है। तुलसी विवाह का प्रसाद खाने से मानसिक शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक संस्कार नहीं, बल्कि यह संसार में पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। इस दिन जो भी व्यक्ति नियमपूर्वक तुलसी विवाह करता है, उसके घर में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का स्थायी वास होता है। इसलिए यदि आप घर पर यह विवाह कर रहे हैं, तो इन छह नियमों का पालन अवश्य करें।
 

   


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Content Editor

Priya Yadav

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