बेबस सास की कहानीः न खत्म होने वाला इंतजार

punjabkesari.in Saturday, Feb 01, 2025 - 06:20 PM (IST)

नारी डेस्कः अपने 10X10 के कमरे में रोते-रोते जमीन पर पोंछा लगा रही गीता अचानक वहीं जमीन पर बैठकर बिलख-बिलख कर रोने लगी। बच्चों की तरह होके भरते-भरते उसे खुद को अहसास हुआ कि इस अधेड़ उम्र में इस तरह अकेले चीखने चिल्लाने या रोने से कुछ हासिल न होगा। कोई आंसू तो पोंछने आएगा नहीं बल्कि तबीयत अलग से बिगड़ जाएगी। वो किसी तरह उठी और बिस्तर पर जा गिरी। आंखें छत पर लगे जाले और छिपकलियां गिनने लगी। सारा दिन तो ब्यूटी पार्लर में काम करते निकल जाता है पर रात से सुबह तक का वक्त निकालना बेहद मुश्किल हो जाता है। न कमरे में कोई टी.वी. है और न ही सुविधा की अन्य कोई चीज। आज रविवार होने के कारण दोपहर से दुकान भी बंद है।

आंखें बंद करके वो पुराने दिनों के बारे में सोचने लगी कि कैसे 25 साल पहले पति के गुजर जाने के बाद उसने अपनी 8 साल की बेटी और 6 साल के बेटे को लोगों के घरों में पार्लर का काम करके किसी तरह पाल-पोसकर पढ़ाया-लिखाया और उन्हें इस लायक बनाया कि वो कमा कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें। घर तो सारी उम्र किराए का ही रहा पर किसी तरह एक छोटी सी दुकान खरीद ली थी पार्लर के लिए। बेटी को अपने साथ काम सीखाकर ब्याहने  के बाद बड़े अरमानों से बेटे की भी शादी की तो सोचा था कि अब  बाकी जीवन  आराम से बितेगा। पर कुछ दिन बाद ही हर घर की तरह उसके घर में भी सास बहु वाली तकरार शुरू हो गई। गीता चाहती थी कि इतने संघर्षों और अरमानों से पला उसका बेटा उसके साथ भी कुछ समय व्यतीत करें और बहु ऩई नई शादी के सभी अरमान पूरे करना चाहती थी बस यही से तकरार शुरू हुई और बढ़ती फिर बढ़ती ही चली गई। लाख तकरारों के बावजूद भी गीता ने अपनी बहू को पार्लर का सब काम सीखा दिया ताकि उसके बाद वो पार्लर को चला सके और चार पैसे कमा ले।
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Image Credit:IStock 

एक बार वो कॉलोनी की औरतों के साथ दो दिन के लिए हरिद्वार से स्नान करके जब वापिस आई तो अपनी दुकान का बोर्ड देखकर हैरान हो गई जिस पर गीता ब्यूटी पार्लर की जगह स्वाति ब्यूटी पार्लर लिखा था। यह देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने अंदर आकर अपनी बहु और बेटे से आक्रोश में जब बोर्ड बदलने का कारण पूछा तो बेटे ने जवाब दिया कि आज नहीं तो कल कभी तो पार्लर स्वाति का ही होना है तो बोर्ड बदल देने से नाराज होने वाली क्या बात है। यह सुनकर उसका मन यह सोच कर रो पड़ा कि कैसे उसके जीते जी उसकी मेहनत की कमाई को हड़पने की तैयारी उसके बहू बेटा कर रहे हैं। गीता ने चिल्लाकर कहा कि यह दुकान उसकी थी और उसके जीते जी बस उसकी ही रहेगी तो इस पर बेटे ने बेशर्मी से उत्तर दिया, "दुकान तो कब से स्वाति के नाम हो चुकी मां तुम्हारे हाथों कागजों पर साईन भी कर चुका हूं। अब तो बस बोर्ड ही बदलना रह गया था, सो वो भी बदला गया। मुझे पता था कि आप स्वाति को पसंद नहीं करती , तो हो सकता है आप दीदी को यह दुकान दे देती। आप कुछ भी उल्टा सीधा ना करो इसलिए मैंने पहले ही सब ठीक कर लिया।"

बेटे की बात सुनकर वो गुस्से से भड़क गई और उसी क्षण अपना जरूरी समान उठाकर घर से निकल गई और बेटी के घर चली गई। उसे उम्मीद थी कि उसका बेटा और बहू उसे मनाने जरूर आएंगे लेकिन उन्होंने उसे न घर से निकलते रोका और ना ही पीछे से उसे मनाने आए। बेटी के घर भी कितने दिन रहती। वो अपने कारण उसका घर भी बर्बाद नहीं होने देना चाहती थी। कुछ दिन बाद जान पहचान वालों की मदद से कुछ ही दूर एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली। यही उसने अपना एक छोटा सा बिस्तर भी लगा लिया। उसकेबच्चे अपनी जिंदगी में मस्त हैं और वो यहां इस छोटे से कमरे में हर रोज एक नई उम्मीद जगाती हैं कि शायद उसके बच्चों को कभी उसके द्वारा किए बलिदानों की याद आ जाए और वो उसे घर वापिस लेने आ जाएं। बस इसी उम्मीद में उसका इंतजार लंबा होता जा रहा है। 

लेखिका - चारू नागपाल 


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Content Writer

Vandana

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