दिवाली की अगली सुबह क्यों बजाई जाती है सूप? जानिए इस प्राचीन परंपरा का रहस्य

punjabkesari.in Tuesday, Oct 21, 2025 - 11:45 AM (IST)

नारी डेस्क : उत्तर भारत के कई हिस्सों में दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन के बाद अगली सुबह ‘सूप बजाने’ की परंपरा निभाई जाती है। यह रस्म देखने में भले ही सरल लगे, लेकिन इसके पीछे गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यता जुड़ी हुई है।

दिवाली की अगली सुबह सूप क्यों बजाया जाता है?

जब दिवाली की रात घर-आंगन दीपों की रोशनी से जगमगा उठते हैं, तो अगली सुबह ग्रामीण इलाकों में एक अलग ही दृश्य दिखाई देता है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड के कई गांवों में महिलाएं भोर होते ही बांस के सूप या झाड़ू लेकर घर के हर कोने में उसे हल्के-हल्के बजाती हैं। माना जाता है कि इस क्रिया से दरिद्रता और अलक्ष्मी घर से बाहर जाती हैं और माता लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है।

PunjabKesari

इस दौरान महिलाएं पारंपरिक वाक्य कहती हैं –

“अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रता बाहर जाए।”

सूप या झाड़ू को बाद में घर से बाहर गली या चौराहे पर रख दिया जाता है, जो नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य को त्यागने का प्रतीक माना जाता है।

यें भी पढ़ें : दिल्ली में दिवाली पर दमघोंटू हवा! AQI 550 के पार, आसमान में छाई जहरीली धुंध; AQI 550 के

इस परंपरा का प्रतीकात्मक अर्थ

सूप, जो अनाज को भूसे से अलग करता है, उसे शुद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। जैसे सूप अन्न से अशुद्धि को अलग करता है, वैसे ही यह क्रिया जीवन से कष्ट, गरीबी और दुर्भाग्य को दूर करने का संकेत देती है। यह केवल एक लोकाचार नहीं बल्कि यह सन्देश देती है कि हर शुभ आरंभ से पहले नकारात्मकता का निष्कासन जरूरी है।

PunjabKesari

शहरों में घटती परंपरा, गांवों में अब भी जीवित आस्था

भले ही शहरी जीवन में यह प्रथा अब कम देखने को मिलती है, लेकिन ग्रामीण समाज में यह आज भी आस्था और लोकसंस्कृति का जीवंत हिस्सा है।
यह हमें याद दिलाती है कि दिवाली केवल दीप जलाने और मिठाई खाने का त्योहार नहीं, बल्कि नकारात्मकता को बाहर निकालने और नए शुभारंभ का उत्सव है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Monika

Related News

static