कलश स्थापना के लिए कुछ ही घंटों का मुहूर्त, नवरात्रि से पहले अच्छे से जान लें ये नियम
punjabkesari.in Saturday, Mar 22, 2025 - 09:37 AM (IST)

नारी डेस्क: नवरात्रि का पर्व देवी दुर्गा की आराधना का सबसे पावन समय होता है। इस दौरान घर में कलश स्थापना करने का विशेष महत्व होता है। कलश को समृद्धि, शक्ति और शुभता का प्रतीक माना जाता है। सही विधि और नियमों के अनुसार कलश स्थापना करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचारहोता है और माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। राहुकाल समय में घटस्थापना करने की गलती कभी ना करें।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और दिशा का रखें ध्यान
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि को होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत 30 मार्च (रविवार) को हो रही है। पंचांग के अनुसार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 13 मिनट से 10 बजकर 22 मिनट तक रहने वाला है। इस दौरान आप कलश स्थापना कर सकते हैं। अभिजित मुहूर्त सुबह 11:59 से दोपहर 12:49 तक है। इस दौरान कुल 4 घंटे और 40 मिनट के 2 मुहूर्त रहेंगे। कलश को पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में स्थापित करें। यदि घर में मंदिर उत्तर-पूर्व में न हो, तो पूजा स्थल को इसी दिशा में सजाएं।
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री:
-मिट्टी या पीतल का कलश
- गंगाजल या शुद्ध जल
-आम या अशोक के पत्ते (5 या 7)
-नारियल (रोली और कलावा से लपेटा हुआ)
- लाल चुनरी या कपड़ा
- सिक्के, सुपारी और साबुत चावल
-हल्दी, कुमकुम और रोली
-आम के पत्ते और फूल
- सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)
-मिट्टी (जौ बोने के लिए)
कलश स्थापना की सही विधि
कलश स्थापना करते समय सबसे पहले गणपति जी का ध्यान करें और फिर देवी दुर्गा का आवाहन करें। "ॐ आं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः।", "ॐ देवी दुर्गायै नमः।" यह मंत्रोच्चार करते हुए कलश स्थापित करें। मंत्र पढ़ते हुए जल, सुपारी, सिक्के और फूल कलश में डालें। नारियल को कलश के ऊपर रखें और पत्तों को कलश के चारों ओर सजाएं। जौ बोने के लिए मिट्टी में थोड़ा सा जल डालकर बीज बोएं । इसे जवारेकहते हैं, जो समृद्धि और उन्नति का प्रतीक होते हैं।

कलश स्थापना के बाद की पूजा विधि
- कलश के पास घी का दीपक जलाएं।
- देवी दुर्गा की आरती करें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- सफेद फूल या लाल गुलाब माता को अर्पित करें।
- नैवेद्य में फल, मिठाई या गुड़ का भोग लगाएं।
- अखंड ज्योति (दीपक) को जलता रखें और उसकी बाती को समय-समय पर ठीक करें।
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