कैंसर का खतरा करना है दूर तो साल में एक बार जरूर कराएं ये टेस्ट
punjabkesari.in Wednesday, Jun 18, 2025 - 11:42 AM (IST)

नारी डेस्क: आज के दौर में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का नाम सुनते ही डर लगने लगता है। लेकिन अगर समय रहते इसका पता चल जाए, तो इलाज आसान और सफल हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर का खतरा कम करने और समय पर इसका पता लगाने के लिए नियमित रूप से मेडिकल टेस्ट कराना बेहद जरूरी है। विशेष रूप से कुछ जांचें ऐसी हैं जो साल में एक बार करवा लेने से कैंसर का शुरुआती स्टेज में ही पता लगाया जा सकता है।
क्यों जरूरी हैं सालाना कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट?
कैंसर की शुरुआत अक्सर शरीर में बिना कोई लक्षण दिए होती है। जब तक लक्षण दिखते हैं, तब तक यह बीमारी गंभीर रूप ले चुकी होती है। ऐसे में नियमित जांच न सिर्फ कैंसर को रोकने में मदद करती है, बल्कि शुरुआती स्टेज में ही इसे पकड़कर सफल इलाज का रास्ता भी खोलती है।
पैप स्मीयर टेस्ट (Pap Smear Test)
यह टेस्ट खासतौर पर महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है। यह जांच गर्भाशय के मुंह (सर्विक्स) पर होने वाले कैंसर का समय रहते पता लगाने में मदद करती है। यह टेस्ट 21 से 65 साल की महिलाओं को हर 3 साल में एक बार जरूर कराना चाहिए। अगर किसी महिला को हाई-रिस्क ग्रुप में माना जाता है, यानी उनके परिवार में किसी को कैंसर रहा हो या कुछ लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें यह टेस्ट हर साल कराना चाहिए। इससे सर्विक्स में मौजूद असामान्य कोशिकाएं शुरुआती स्तर पर पकड़ में आ जाती हैं, जो आगे चलकर कैंसर का रूप ले सकती हैं।
मैमोग्राफी (Mammography)
यह जांच महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए की जाती है। खासतौर पर 40 साल की उम्र के बाद, महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए इस उम्र के बाद हर महिला को साल में एक बार मैमोग्राफी करवानी चाहिए। इस टेस्ट के जरिए स्तनों में किसी गांठ, सूजन या टिशू में किसी भी बदलाव की जानकारी मिलती है। यदि समय पर कैंसर का पता चल जाए तो इसका इलाज बहुत प्रभावी होता है और पूरी तरह ठीक होने की संभावना रहती है।
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पीएसए टेस्ट (PSA Test)
यह टेस्ट पुरुषों के लिए बहुत जरूरी है, खासतौर पर 50 साल से ऊपर के पुरुषों को इसे सालाना कराना चाहिए। यह जांच प्रोस्टेट ग्रंथि में होने वाले कैंसर की पहचान के लिए होती है। इस टेस्ट में प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन (PSA) नामक एक प्रोटीन की मात्रा मापी जाती है। अगर इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ी हुई पाई जाती है, तो प्रोस्टेट कैंसर की संभावना हो सकती है। समय पर जांच से बीमारी की पहचान आसान हो जाती है और इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है।
कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy)
यह टेस्ट बड़ी आंत (कोलोन) और रेक्टम के कैंसर की पहचान के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए जरूरी है। आमतौर पर यह टेस्ट 10 साल में एक बार कराया जाता है, लेकिन अगर किसी को आंत से जुड़ी समस्याएं पहले से रही हों या उनके परिवार में कैंसर का इतिहास हो, तो उन्हें सालाना यह जांच करानी चाहिए। इस जांच में पॉलिप्स या कैंसर जैसी समस्याओं का शुरुआती स्तर पर पता चल जाता है, जिससे इलाज आसान हो जाता है।
सीटी स्कैन और लो-डोज चेस्ट स्कैन (Low-Dose CT Scan)
यह टेस्ट फेफड़ों के कैंसर की शुरुआती जांच के लिए किया जाता है। खासकर जो लोग धूम्रपान करते हैं या पहले लंबे समय तक स्मोकिंग कर चुके हैं, उनके लिए यह टेस्ट बहुत जरूरी है। यह जांच 50 से 80 साल की उम्र के लोगों को हर साल करानी चाहिए। लो-डोज चेस्ट स्कैन से फेफड़ों में होने वाले छोटे-छोटे बदलाव और गांठों का जल्दी पता लगाया जा सकता है। इससे फेफड़ों के कैंसर का इलाज समय पर शुरू किया जा सकता है और जान बचाई जा सकती है।
अन्य महत्वपूर्ण जांचें
ब्लड टेस्ट और बायोप्सी: अगर शरीर में कोई गांठ या लक्षण दिखें, तो इन टेस्ट्स की मदद से कैंसर की पुष्टि की जाती है।
एचपीवी टेस्ट: यह महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के लिए जरूरी है।
स्किन कैंसर स्क्रीनिंग: जिनकी त्वचा पर बार-बार बदलाव होते हैं, उन्हें यह जांच करानी चाहिए।
बचाव ही सबसे बड़ा इलाज है
कैंसर का डर केवल तभी तक है, जब तक हम लापरवाह रहते हैं। अगर हम साल में एक बार जरूरी टेस्ट करा लें, तो इस जानलेवा बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। यह जांचें न केवल कैंसर को जल्दी पकड़ सकती हैं, बल्कि आपकी जिंदगी को सुरक्षित भी बना सकती हैं। इसलिए, किसी भी लक्षण का इंतजार न करें — रोकथाम करें, सतर्क रहें और सालाना जांच जरूर करवाएं।