गर्भपात को लेकर सरकार का नया कानून, सिंगल मर्दस को मिलेगा यह फायदा
punjabkesari.in Thursday, Jan 30, 2020 - 12:24 PM (IST)
महिलाओं की भलाई और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कैबिनेट की ओर से बुधवार को कुछ अहम कानूनों में बदलाव किया गया है जो कि महिलाओं के लिए बहुत ही खुशी की बात है। सरकार द्वारा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 2020 में हुए बदलावों को मंजूरी दी गई है और उसे आने वाले बिल स्तर में पेश किया जाएगा। नए नियम के तहद अगर गर्भ-निरोधक गोली काम नहीं करती तो महिलाएं हॉस्पिटल से अबॉर्शन करवा सकती हैं और इसे गैर-कानूनी नहीं माना जाएगा। वहीं यह नियम अनमैरिड महिलाओं यानि सिंगल मदर्स के लिए भी माननीय होगा।
24 हफ्ते तक करवा सकती है गर्भपात
इस नए कानून के तहत महिलाएं 24 हफ्ते तक कानूनी तौर पर गर्भपात करवा सकती है। अभी तक यह सीमा 20 हफ्ते यानि की 5 महीने तक ही थी। 5 महीने के बाद कानूनी तौर पर कोई भी महिला अपना गर्भपात नहीं करवा सकती थी। वहीं किसी विशेष परिस्थिति में उन्हें कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती थी।
असुरक्षित गर्भपात से 8 प्रतिशत महिलाओं की होती है मृत्यु
सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेंकर ने कहा कि यह बिल महिलाओं की मांग को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है क्योंकि असुरक्षित गर्भपात से 8 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु होती है। वहीं कई बार बलात्कार पीड़िताओं और बीमार महिलाओं या नाबालिग लड़कियों को गर्भधारण के बारे में पता नहीं लगता है जिस कराण उन्हें असुरक्षित ढंग से गर्भपात करवाना पड़ता है। वहीं एमटीपी नियमों में संशोधन द्वारा बताया गया है कि इस नियम में दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएं (विकलांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी।
देर से पता चलती है अविकसित बच्चों की समस्या
वहीं मेडिकल के अनुसार बच्चों में कुछ शारीरिक और मानसिक समस्याओं के बारे में देर से पता चलती है। खास कर दिल से जुड़ी दिक्कत 22 से 24 में पता चलती है। जिस कारण गर्भपात की समय सीमा बढ़ाना बहुत ही जरुरी थी। वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने एक आदेश में बताया था कि हर साल तकरीबन 2 करोड़ 70 लाख बच्चे जन्म लेते है, जिनमें से 17 लाख बच्चे जन्म से विकलांग होते है। वहीं ग्रामीण इलाकों में यह मामले काफी देरी से सामने आते है जिस कारण 20 हफ्तों के बाद गर्भपात करवाना संभव नहीं हो पाता था।
मुंबई से नियम में बदलाव की हुई थी मांग
गर्भपात के इस निमय में बदलाव की मांग बॉम्बे हाईकोर्ट से हुई थी। जहां पर 3 महिलाओं ने याचिका दायर कर 20 हफ्तों के बाद गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। जिसमें महिलाओं का मामला और डॉक्टर की राय जानने के बाद उन्हें गर्भपात की अनुमति दे दी गई थी। इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट ने एक खबर के आधार पर भारत सरकार से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेंगनेंसी एक्ट 1971 में बदलाव करने को कहा था।
यह रहेगी चुनौती
20 हफ्ते के बाद बच्चे बड़ा हो जाता है लेकिन वह मरा हुआ पैदा होता है वहीं 24 हफ्ते के बाद गर्भपात करवाने की सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि उसमें बच्चा जिंदा भी पैदा हो सकता है। ऐसे में उस बच्ची की जिम्मेदारी माता-पिता द्वारा न लेने पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 24 हफ्ते के बाद पैदा हुए बच्चे की अगर अच्छे से परवरिश और देखभाल की जाए तो वह कुछ समय तक जिंदा रहता है लेकिन अधिक समय तक नहीं।