कमजोरी, दर्द और सर्दी तीनों से लड़ता है ये ये हरा साग, टूटी हड्डियों में फूंक दे जान!
punjabkesari.in Tuesday, Dec 02, 2025 - 05:49 PM (IST)
नारी डेस्क: सर्दियों के दिनों में खेतों पर जब हरियाली की चादर फैलती है, उसी के बीच उगता है एक खास हरा साग बथुआ। मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र और आदिवासी इलाकों में इसे ताकत का प्रतीक माना जाता है। आदिवासी परिवार इसे भोजन का जरूरी हिस्सा बनाते हैं। दाल बथुआ, परांठे, रायता जो भी बनाओ, इसका स्वाद और स्वास्थ्य दोनों बेहतरीन माने जाते हैं।
आदिवासी समुदाय के भोजन का अहम हिस्सा
सीधी जिले के आदिवासी परिवार पीढ़ियों से बथुआ को सर्दियों की अनिवार्य सब्जी मानते आए हैं। उनके अनुसार, यह सिर्फ सामान्य हरा साग नहीं बल्कि ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला पौष्टिक भोजन है। खेतों में गेहूं, चना और मटर के साथ स्वाभाविक रूप से उगने वाला बथुआ किसी वरदान से कम नहीं माना जाता।

पोषण का भंडार: आयुर्वेद बताता है इसके औषधीय गुण
आयुर्वेदिक विशेषज्ञ बताते हैं कि बथुआ में विटामिन A, C, कैल्शियम, आयरन और फाइबर काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों के कारण यह शरीर को कई तरीकों से मजबूत बनाता है। यह हड्डियों को मजबूत करता है और कमजोरी दूर करता है। इम्यूनिटी बढ़ाता है, जिससे सर्दियों की बीमारियों से बचाव होता है। पेट की समस्याओं, गैस और कब्ज से राहत देता है। यूरिन इंफेक्शन में भी फायदेमंद माना जाता है। पुरानी आयुर्वेदिक पुस्तकों में बथुआ को रक्त शोधक यानी खून साफ करने वाला और ऊर्जा का स्रोत कहा गया है।
महिलाओं के लिए क्यों है बेहद लाभकारी?
बथुआ महिलाओं के लिए खासतौर पर जरूरी है, क्योंकि इसमें मौजूद आयरन मासिक धर्म के दौरान होने वाली कमजोरी और थकान में राहत देता है। इसके नियमित सेवन से एनिमिया जैसे लक्षण भी कम हो सकते हैं। सर्दियों में इसे आहार में शामिल करने से महिलाओं में पोषण की कमी दूर होती है और शरीर अधिक ऊर्जावान बना रहता है।

बाजार में 50–60 रुपये किलो, पर खेतों में मुफ्त
सीधी शहर के सब्जी विक्रेता सोमनाथ गुप्ता बताते हैं कि बथुआ खेतों में तो बिना बोए खुद ही उग आता है, लेकिन शहर में इसकी कीमत 50–60 रुपये किलो तक पहुंच जाती है। लोग इसके फायदे जानकर इसे महंगे दाम में भी खरीद लेते हैं। गांव की महिलाएं खेतों से इसे तोड़कर बाजार में बेचती हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय भी मिलती है। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है।
कृषि विभाग भी बढ़ा रहा खेती को प्रोत्साहन
विंध्य के आदिवासी इलाकों में बथुआ की पौष्टिकता को देखते हुए कृषि विभाग ने इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान शुरू किए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बथुआ जैसे देसी साग, आधुनिक महंगे "सुपरफूड" की तुलना में कहीं ज्यादा पौष्टिक, शुद्ध और किफायती होते हैं।

सर्दियों की सबसे बड़ी देन—स्वास्थ्य और स्वाद दोनों बथुआ विंध्य की धरती का उपहार है, जो न सिर्फ पेट भरता है बल्कि शरीर को आवश्यक पोषण भी देता है। सर्दियों की ठंड में यह हरी सब्जी शरीर को गर्मी, ताकत और रोगों से बचाव की प्राकृतिक ढाल प्रदान करती है।

