भगवान कृष्ण जी तीसरी आंख क्यों रखते थे बंद और दो बार जब खुली तो मच गया हाहाकार!
punjabkesari.in Saturday, Aug 16, 2025 - 02:28 PM (IST)

नारी डेस्क: Janmashtami 2025 के मौके पर अक्सर भगवान कृष्ण से जुड़ी कहानियां और रहस्य चर्चा में आ जाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा रहस्य है कृष्ण की तीसरी आंख। बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान कृष्ण के पास भी एक तीसरी आंख (दिव्य नेत्र) थी, जिसे वह कभी आसानी से नहीं खोलते थे। मगर जब उन्होंने सिर्फ दो बार इसे खोला, तब ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे कायनात हिल गई।
क्या सच में कृष्ण के पास थी तीसरी आंख?
कृष्ण को हम अक्सर शांत, चतुर और प्रेम से भरे हुए भगवान के रूप में जानते हैं। लेकिन उनकी दिव्यता सिर्फ उनके ज्ञान या प्रेम तक सीमित नहीं थी उनमें अपार ब्रह्मांडीय शक्तियां भी थीं। कई ग्रंथों और लोक कथाओं में बताया गया है कि उनके पास एक तीसरी आंख भी थी जैसी भगवान शिव के पास होती है जो जब खुलती, तो विनाशकारी ऊर्जा निकलती।
पहली बार कब खुली कृष्ण की तीसरी आंख? (कर्ण-अर्जुन युद्ध)
यह प्रसंग महाभारत के कर्ण पर्व में आता है। जब कर्ण और अर्जुन के बीच घमासान युद्ध हो रहा था, तब कर्ण के पास इंद्र द्वारा दिया गया एक शक्तिशाली अस्त्र था, जिसे वह अर्जुन पर चलाने वाला था। कृष्ण, जो अर्जुन के रथ के सारथी थे, जानते थे कि अगर ये अस्त्र चला, तो अर्जुन की मृत्यु निश्चित है। ऐसे में कृष्ण ने अपनी तीसरी आंख खोली। इस आंख से निकली तेज रोशनी और दिव्य ऊर्जा से कर्ण का ध्यान भटक गया। उस क्षण का फायदा उठाकर अर्जुन ने कर्ण पर प्रहार किया और उसका वध कर दिया। अगर उस वक्त कृष्ण ने तीसरी आंख न खोली होती, तो शायद महाभारत का नायक अर्जुन युद्ध में मारा जाता।
दूसरी बार कब खुली कृष्ण की तीसरी आंख? (अश्वत्थामा और ब्रह्मास्त्र)
महाभारत के सौप्तिक पर्व में एक और खतरनाक स्थिति आई। अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों की हत्या के बाद, पांडव वंश को पूरी तरह नष्ट करने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया। यह ब्रह्मास्त्र अगर गर्भ तक पहुंच जाता, तो पांडवों का वंश समाप्त हो जाता। तब कृष्ण ने दोबारा अपनी तीसरी आंख खोली और उस दिव्य ऊर्जा से ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय कर दिया। इस प्रकार कृष्ण ने पांडवों की अगली पीढ़ी को बचाया और परीक्षित जन्म लेकर आगे चलकर हस्तिनापुर का राजा बना।
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कृष्ण अपनी तीसरी आंख हमेशा क्यों बंद रखते थे?
भगवान कृष्ण का तीसरा नेत्र एक ऐसा दिव्य अस्त्र था, जो केवल अत्यंत गंभीर और विनाशकारी परिस्थितियों में ही खोला जाता था। इस आंख से निकलने वाली ऊर्जा इतनी शक्तिशाली होती कि पूरे ब्रह्मांड को भस्म कर सकती थी। उनकी यह शक्ति भगवान शिव के तीसरे नेत्र और विष्णु के सुदर्शन चक्र का समन्वित रूप मानी जाती थी। कृष्ण हमेशा यही सिखाते थे कि शक्ति का प्रयोग तभी करें जब बहुत जरूरी हो, अन्यथा नहीं।
भगवान शिव और तीसरी आंख का रहस्य
भगवान शिव की तीसरी आंख का उल्लेख तो आप ने सुना ही होगा। कामदेव को भस्म करना: जब शिव तपस्या में थे और कामदेव ने उनका ध्यान भंग करने की कोशिश की, तब शिव ने तीसरी आंख खोल दी और कामदेव जलकर भस्म हो गए। समुद्र मंथन के विष के बाद: हलाहल विष पीने के बाद शिव ने अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए तीसरी आंख का सहारा लिया।
अंधकासुर का वध: इस असुर के हर रक्त की बूंद से एक नया असुर पैदा होता था, जिसे रोकने के लिए शिव ने तीसरी आंख से ऊर्जा निकालकर उसके रक्त को सोख लिया और उसका वध किया।
तीसरी आंख का आध्यात्मिक रहस्य
तीसरी आंख केवल विनाश का प्रतीक नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना, दिव्य ज्ञान और अंतर्यामी दृष्टि का भी प्रतीक है। कृष्ण और शिव जैसे देवता जब इसे खोलते हैं, तो यह संदेश देते हैं "सच्ची शक्ति वही है जो नियंत्रण में रहे।"
भगवान कृष्ण की तीसरी आंख उनकी दिव्यता और ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक थी।
उन्होंने इसे केवल दो बार खोला
अर्जुन की रक्षा के लिए
पांडव वंश को बचाने के लिए
और दोनों बार उन्होंने यह साबित किया कि शक्ति वही सार्थक है जो सही समय पर सही कारण के लिए इस्तेमाल हो।