यहां 12 बजते ही श्रीकृष्ण को दी जाती है 21 तोपों की सलामी, 352 साल से चलता आ रहा है ऐसा
punjabkesari.in Sunday, Aug 17, 2025 - 01:21 PM (IST)

नारी डेस्क: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ और विश्वप्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर में श्रीनाथजी को जन्म पर 21 तोपों की सलामी दी गई। नाथद्वारा (राजस्थान) स्थित श्रीनाथजी मंदिर वल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्ग) की प्रधान पीठ है और यहां जन्माष्टमी पर बेहद विशेष और ऐतिहासिक परंपराएं निभाई जाती हैं। यहां करीब 352 साल से जन्माष्टमी के मौके पर 21 तोपों की सलामी दिए जाने की परंपरा है।

श्रीनाथजी मंदिर और जन्माष्टमी की परंपरा
जन्माष्टमी की रात ठीक बारह बजे श्रीनाथजी (बालरूप श्रीकृष्ण) का जन्म उत्सव मनाया जाता है। मंदिर में मंगल ध्वनि, घंटे-घड़ियाल, शंख और नगाड़ों की गूंज होती है। श्रीनाथजी के जन्म के पावन क्षण पर ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार 21 तोपों की सलामी दी जाती है। यह परंपरा राजस्थानी राजघराने और मंदिर प्रशासन द्वारा सदियों से निभाई जा रही है। माना जाता है कि यह शाही सम्मान भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण की महिमा को दर्शाता है।
सदियों ने निभाई जा रही है ये परंपरा
इस परंपरा की शुरुआत उस समय हुई थी जब मेवाड़ राज्य के शासकों और स्थानीय राजपूत वीरों ने श्रीनाथजी की सेवा को अपनी जिम्मेदारी माना और उनके जन्मदिवस को राजकीय सम्मान के साथ मनाने का निर्णय लिया, तभी से नाथद्वारा में आधी रात को जब श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीकात्मक समय होता है, तब तोपों की सलामी दी जाती है। इस बार भी रात 12 बजते ही श्रीरसाला चौक पर स्थानीय प्रशासन, मंदिर मंडल और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में श्रीनाथ गार्ड ने “नर और मादा तोपों” से 21 बार सलामी दी।

अभिषेक और श्रृंगार
जन्म के समय श्रीनाथजी का विशेष जल-अभिषेक किया जाता है। इसके बाद भगवान को पीताम्बर पहनाकर बालकृष्ण के रूप में सजाया जाता है। जन्माष्टमी पर यहाँ माखन-मिश्री, धनिया पंजीरी, पुष्टिमार्गीय प्रसाद और अनेक प्रकार के मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु इस दिन श्रीनाथजी मंदिर पहुंचते हैं। रातभर भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक आयोजन और आरती का क्रम चलता रहता है।